वाराणसी: कहते हैं काशी में कोई भूखा नहीं सोता, क्योंकि यहां माता अन्नपूर्णा लोगों का पेट भरने के लिए स्वयं विराजमान हैं. इन सबके बीच मकर संक्रांति के मौके पर सड़क पर जब आपको हजारों की भीड़ एक मंदिर के बाहर खिचड़ी खाते नजर आ जाए तो समझ लीजिएगा, काशी का यह महात्म्य ऐसे ही नहीं वर्णित किया जाता. यहां माता अन्नपूर्णा के साथ कई ऐसे मंदिर भी स्थापित हैं जो साल के 365 दिन भक्तों का पेट भरने के लिए जाने जाते हैं. मकर संक्रांति के मौके पर खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. संक्रांति के दिन बनारस के खिचड़ी बाबा मंदिर में हजारों भक्त इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं.
1938 से चली आ रही प्रथा
बनारस के दशाश्वमेध घाट पर स्थित ढेडसी के पुल इलाके में स्थित खिचड़ी बाबा मंदिर की मान्यता अपने आप में अनूठी है. यह मंदिर हर रोज हजारों भक्तों का पेट भरता है. ऐसी मान्यता है कि 1938 में बनारस के इस इलाके में आकर एक बाबा बसे और वो इसी स्थान पर बैठते थे. जानकार बताते हैं कि लोग दान में बाबा को चावल दाल और सब्जियां भेंट करते थे, जिससे वह खिचड़ी बनाकर न सिर्फ खुद खाते थे, बल्कि भूखों का पेट भी भरते थे.
उनसे जुड़ी मान्यताएं धीरे-धीरे बढ़ने लगीं और भक्त दूर-दूर से बाबा के पास पहुंचने लगे. बाद में वो खिचड़ी बाबा के नाम से विख्यात हुए. बाबा द्वारा दिए जा रहे प्रसाद को ग्रहण कर लोग अपने आप को धन्य मानते थे. बाबा के शरीर त्यागने के बाद जब उन्होंने इस स्थान पर समाधि ली, तब उनके नाम से मंदिर का निर्माण हुआ और तब से लेकर अब तक यह परंपरा अनवरत चली आ रही है.
भक्तों के सहयोग से आज भी जारी है परंपरा
मकर संक्रांति के मौके पर खिचड़ी खाने का विशेष महत्व होता है और इस मंदिर में साल के 365 दिन खिचड़ी खाये जाने की परंपरा निभाई जाती है. भक्तों को गरमा गरम खिचड़ी प्रसाद के रूप में दी जाती है, जिसे खाकर भक्त खुद को धन्य मानते हैं. दूर-दूर से आने वाले भक्त यहां पर दान स्वरूप अनाज सब्जियां देते हैं, जिससे प्रतिदिन कई कुंटल खिचड़ी तैयार कर लोगों में बांटी जाती है.