वाराणसी: धर्म और आस्था की नगरी काशी में ऐसे तो आपको एक से बढ़कर एक किस्से कहानियां सुनने को मिलेंगे. लेकिन अनादिकाल से पृथ्वी पर मौजूद इकलौते जीवंत शहर के रूप में पहचान बनाने वाले इस शहर की गली-गली में ऐसी कहानियां हैं, जिसे सुनकर आप भी काशी की गलियों में खो कर रह जाएंगे. खैर, आज हम आपको एक ऐसी ही देश भक्ति की कहानी सुनाएंगे, जो सीधे बाबा विश्वनाथ से जुड़ी है. यह कहानी आजादी के संघर्षों के साथ बाबा की उस परंपरा से जुड़ी है, जिसे आज भी निभाया जाता है. वहीं, आज बाबा मां गौरी के गौने के लिए निकलेंगे.
दरअसल, आज रंगभरी एकादशी यानी अमला एकादशी का पर्व है. यह दिन काशी के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि लोक मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती को लेकर आज ही के दिन कैलाश पर्वत के लिए रवाना हुए थे. यानी आज माता पार्वती के विदाई का दिन है और काशी में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. बीते 358 सालों से काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार की तरफ से इस परंपरा को निभाया जा रहा है और आज विश्वनाथ मंदिर समेत महंत आवास इस अद्भुत परंपरा का एक बार फिर से साक्षी बनने जा रहा है.
शाम को बाबा भोलेनाथ भक्तों के कंधे पर रजत पालकी में सवार होकर माता पार्वती और श्रीगणेश के साथ नगर भ्रमण पर निकलेंगे और भक्त गुलाल चढ़ाकर होली की शुरुआत करेंगे. लेकिन इन सबके बीच आज हम आपको बाबा विश्वनाथ से जुड़ी एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आपके अंदर भी देशभक्ति का जज्बा जाग उठेगा.
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आज बाबा पहनेंगे खास टोपी
जी हां देश की आजादी के संघर्ष से बाबा विश्वनाथ का भी सीधा जुड़ाव है. इसकी बड़ी वजह यह है कि बाबा विश्वनाथ आज ही के दिन माता पार्वती और भगवान गणेश के साथ जो वस्त्र पहनते हैं. वह खादी के वस्त्र होते हैं और बाबा के सिर पर सुशोभित होने वाली खास टोपी जिसे अकबरी टोपी का नाम दिया गया है. यह वह टोपी होती है, जिसे काशी में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए एक मुस्लिम कारीगर तैयार करता है और हिंदू कारीगर उसे सजाकर बाबा के चरणों में अर्पित करता है.
पंडित नेहरू की मां ने की थी ये अपील...
इन सबके बीच जो महत्वपूर्ण परंपरा है उसके अनुसार बाबा विश्वनाथ माता पार्वती और भगवान गणेश को खादी के वस्त्र इसलिए पहनाए जाते हैं, क्योंकि देश की आजादी की लड़ाई के वक्त धर्म के साथ आजादी के संघर्ष को जोड़कर लोगों में राष्ट्रभक्ति की भावना जगाने के उद्देश्य से उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरु की माता जी स्वरूप रानी नेहरू ने काशी आकर इस त्यौहार के वक्त लोगों को देश भक्ति के आंदोलन से जोड़ने और राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करने के उद्देश्य से बाबा भोलेनाथ, माता पार्वती और भगवान गणेश जी को खादी के वस्त्र पहनाने की अपील की थी.
जिस पर महंत परिवार ने सहमति जताते हुए उस वक्त से अब तक खादी के वस्त्र ही बाबा को पहनाना जारी रखा है. महंत परिवार से जुड़े संजीव रत्न मिश्र का कहना है कि बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती के साथ ही भगवान गणेश के लिए खास तौर पर खादी ग्राम उद्योग से कपड़े आते हैं. इस कपड़े को बनारस के किशनलाल बीते 30 सालों से भी अधिक वक्त से सीते आ रहे हैं.
अकबरी टोपी बढ़ाती है शान
इतना ही नहीं वाराणसी के एक कारोबारी नंदलाल अरोड़ा की तरफ से बाबा भोलेनाथ के चरणों पर एक खास अकबरी टोपी समर्पित की जाती है. यह अकबरी टोपी वाराणसी के मुस्लिम कारीगर गयासुद्दीन की तरफ से तैयार होती है और नंदलाल इसे अपनी तरफ से सजाकर बाबा को हर साल भेंट करते हैं, जो देश में हिंदू-मुस्लिम एकता की भी अद्भुत मिसाल पेश करती है. यानी बाबा विश्वनाथ एक तरफ जहां देशभक्ति का जज्बा जगाते हुए खादी के कपड़े पहनकर भक्तों के बीच जाएंगे तो वहीं उनके सिर पर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती अकबरी टोपी उनकी आभा और शोभा को चार चांद लगाने का काम करेगी.
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