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पैसों की तंगी में कैंसर से मां की मौत हुई तो शुरू की मुहिम, अब तक 1300 लोगों को दिला चुके 16 करोड़ की मदद

काशी के बबलू बिंद (Kashi ke Bablu Bind) की मां कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से इलाज में पैसों के अभाव में मौत हो गई. इसके बाद से बबलू प्रदेश भर के 1300 लोगों की मदद कर चुके हैं. आइये जानते हैं उन्होंने अपने मिशन के बारे में क्या बताया...

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 22, 2023, 12:28 PM IST

Updated : Dec 22, 2023, 12:49 PM IST

बबलू बिंद और मदद पाने वाली नीता जायसवाल ने बताया.

वाराणसीः ये कहानी बनारस के एक ऐसे युवा की है, जिसकी मां कैंसर से जिंदगी की जंग लड़ रही थीं. पैसे की तंगी ने इस युवक के सामने हजार मुश्किलें खड़ी कर दी, लेकिन उन मुश्किलों का सामना करते हुए इन्होंने अपनी मां का इलाज कराया. हालांकि इलाज के बाद भी मां को बचा नहीं पाए और सिर से मां का साया उठ गया. अब यह ऐसी हजारों मांओं की उम्मीद बन चुके हैं, जिनके पास किसी की उम्मीद नहीं रहती है. आज हम बात कर रहे हैं वाराणसी के बबलू बिंद की, जो अब तक 1000 से ज्यादा लोगों की मदद कर चुके हैं. अब तक 16 करोड़ रुपये जरूरत मंदों तक पहुंचा चुके हैं. इनसे मदद पाने वालों में वे लोग भी शामिल हैं, जिनके पास आयुष्मान कार्ड तो था, लेकिन उससे लाभ नहीं मिल सका.

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काशी के बबलू की मां की कैंसर से मौत हुई थी.

जानिए काशी के बबलू के बारे में-
जिंदगी दांव पर लगी हो और किसी की मदद न मिल रही हो तो वह दौर कैसे गुजरता है ये वही बता सकता है, जिसपर बीती हो. वाराणसी में एक ऐसा कई परिवार हैं जो इस पल का सामना कर चुके हैं. परिवार का सदस्य जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा था, लेकिन साथ देने वाला कोई नहीं था. अस्पतालों ने हाथ खड़े कर दिए थे और सांसद, विधायक, नेता मदद करने के लिए सिर्फ आश्वासन दे रहे थे. ऐसे में लोगों को एक सहारा मिला वो है काशी के बबलू का. काशी के बबलू ने ऐसे कई परिवारों की मदद की, जिनके पास मदद के लिए कोई नहीं था. उन्होंने सरकारी योजनाओं की मदद से उन परिवारों को लाभ पहुंचाया है. आइए जानते हैं काशी के बबलू के बारे में लोग क्या कहते हैं.

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काशी के बबलू गंभीर रूप से बीमार लोगों की मदद करते हैं.
जाने में कितने दिनों में हुआ पैसों का इंतजाम-नीता जायसवाल बताती हैं कि 'मेरे मामाजी कैंसर से पीड़ित हैं. मैं बहुत परेशान हुई. घर के अन्य परिजन भी बहुत परेशान हुए. कहीं से कोई मदद नहीं मिली. आयुष्मान कार्ड भी मिला था, लेकिन उससे उन्हें कोई मदद नहीं मिली. इसके बाद उन्हें काशी के बबलू के बारे में पता चला. सभी अस्पतालों में हाथ खड़े कर दिए थे. हमारे पास पैसे नहीं थे. इसके बाद बबलू ने उनकी बहुत मदद की. यहां मात्र 22 दिन के अंदर ही काशी के बबलू ने सारे डाक्यूमेंट लेकर पैसे का इंजताम कराया. इसके बाद अस्पताल के भी सारे काम कराए. आज उनके मामा सुरक्षित हैं. आज उनकी स्थिति पहले से अच्छी है. बहुत सारे सांसद, विधायक के पास वह लोग मदद के लिए गए थे, लेकिन उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली'.
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काशी के बबलू 1300 लोगों की मदद कर चुके हैं.
बबलू के बारे में पड़ोसियों ने बताया-नीता जायसवाल ने बताया कि बहुत से नेता आए, जिन्होंने कहा कि वह आपका काम करवा देंगे, लेकिन उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली थी. काशी के बबलू के बारे में जब उन्हें पता चला तो उन्होंने उनकी बहुत मदद की. वह सबकी मदद करते हैं. ऐसा ही नहीं मेरे पड़ोस में भी उन्होंने सीमा यादव नाम की महिला की मदद की थी. उनका मरीज सुंदरपुर मालवीय अस्पताल में भर्ती था. उनकी भी काशी के बबलू ने की थी, उनको भी पैसे दिलाए थे. वह बबलू की हमेशा आभारी रहेंगी. उन्होंने बताया कि वह अब यह सोंचती हैं कि कोई गरीब हो, जिसे मदद की जरूरत हो, तो वह भी उसकी मदद करें. उन्होंने बताया कि वह कई लोगों को काशी के बबलू के बारी में बताई. यहां बबलू द्वारा सबको मदद मिली है. मां के इलाज के लिए नहीं मिले पैसे-काशी के बबलू बिंद ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि 'मेरे सेवा करने की मिशन की शुरुआत साल 2014 से हुई. उस समय उनकी मां को कैंसर था. उन्होंने कहा कि दुश्मन क्या किसी को भी कैंसर की बीमारी न हो. वह अपनी मां को लेकर बीएचयू पहुंचे. यहां उनकी मां का इलाज चल रहा था. यहां तेजी से जांच आदि काम के लिए पैसे खर्च होने लगे कि कुछ बता नहीं सकता. इसके बाद वह अपनी मां को सहारा अस्पताल लेकर गए. वहां पर कीमो के लिये कहना पड़ता था कि अगले महीने 40 हजार रुपये लेकर आना, अगले महीने 85 हजार रुपये लेकर आना. उस पीड़ा को वह बहुत करीब से देख चुके हैं. दोस्तों, रिश्तेदारों से बात की. यहां तक की कुछ लोगों ने अपने फोन बंद कर लिए. इस डर से कि मुझे कैंसर न हो जाए.'पैसे मिले, लेकिन मां नहीं रहीं-बबलू बिंद ने बताया कि 'उस दौर में उन्होंने टीवी पर देखा कि मुख्यमंत्री राहत कोष में एक सहायता राशि आती है. कुछ लोगों को इसका पैसा आया था, लोगों ने कहा कि बहुत मुश्किल से ये पैसा आता है. मैंने किसी तरीके से ये पैसे इकट्ठा किए. उस समय अखिलेश यादव का जनता दरबार चल रहा था. वह अखिलेश यादव के जनता दरवार में इसके लिए आवेदन किए. यहां जब तक पैसे मिले, तब तक देर हो चुकी थी. उनकी मां का उन पैसों से इलाज शुरू हो गया था, लेकिन देर होने की वजह से उनका देहांत हो गया था. इसके बाद उन्हें ये पीड़ा हुई कि अगर इस योजना के बारे में उन्हें पहले से पता होता तो शायद उनकी मां आज जीवित होती. इसके बाद उन्हें अनुभव हुआ कि ऐसे तमाम परिवार होंगे, जो पैसों के अभाव में अपनों का इलाज नहीं करा पाते होंगे. 9 करोड़ से अधिक रुपये सहायता में दिलाए-बबलू बिंद ने बताया कि 'साल 2014 से 2023 तक उन्होंने 9 करोड़ 87 लाख रुपये 1300 मरीजों को पूरे उत्तर प्रदेश के जिलों और विधानसभाओं में मदद के लिए दिला चुके हैं. 114 अस्पताल उत्तर प्रदेश में हैं, जहां पर मुख्यमंत्री राहत कोष द्वारा सभी गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, ब्रेन हैमरेज, ब्रेन ट्यूमर, कुला और वे सभी जो इस श्रेणी में आती हैं उनके लिए मदद मिलती है. अखबारों, फेसबुक और मिशन के माध्यम से लाखों लोगों तक यह संदेश जाता है कि मुख्यमंत्री राहत कोष द्वारा गंभीर बीमारियों के अस्पताल हैं. वहां पर इलाज के दौरान मरीज के पास इलाज के लिए पैसे न होने पर मदद ले सकते हैं. इस तरह वह मरीजों की मदद करते आ रहे हैं.मां-बाप को बीमारी के चलते खो दिया-बबलू बिंद ने बताया कि 'मरीज के परिवारों को न गहने बेंचने पड़ेंगे, न घर गिरवी रखना पड़ेगा और न अंगूठी गिरवी रखनी होगी. कैंसर जैसी बीमारी में जब कोई विधायक, सांसद के दरबार से लौट आता है, इस उम्मीद में कि उन्हें मदद मिल सकती है तो अच्छा लगता है. जौनपुर से ही बीते दिन एक मरीज के परिजन आए थे, जो सभी डाक्यूमेंट बनवाने से लेकर उसे सबमिट करने तक का काम वह खुद करा देते हैं. मरीज का इसके लिए एक रुपया भी खर्च नहीं होता है. बीमारी से मेरा परिवार गुजरा है. हार्ट अटैक से उनके पिताजी गुजर गए. मां को कैंसर हो गया था. अब उनका मिशन है कि किसी भी तरह से लोगों की मदद कर सकें.यह भी पढे़ं- 'चांद के पार चलो' हिट गाने के बाद हुए मशहूर, दादा साहब फाल्के पुरस्कार से हैं सम्मानित, जानें गायक विष्णु नारायण के बारे में

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बबलू बिंद और मदद पाने वाली नीता जायसवाल ने बताया.

वाराणसीः ये कहानी बनारस के एक ऐसे युवा की है, जिसकी मां कैंसर से जिंदगी की जंग लड़ रही थीं. पैसे की तंगी ने इस युवक के सामने हजार मुश्किलें खड़ी कर दी, लेकिन उन मुश्किलों का सामना करते हुए इन्होंने अपनी मां का इलाज कराया. हालांकि इलाज के बाद भी मां को बचा नहीं पाए और सिर से मां का साया उठ गया. अब यह ऐसी हजारों मांओं की उम्मीद बन चुके हैं, जिनके पास किसी की उम्मीद नहीं रहती है. आज हम बात कर रहे हैं वाराणसी के बबलू बिंद की, जो अब तक 1000 से ज्यादा लोगों की मदद कर चुके हैं. अब तक 16 करोड़ रुपये जरूरत मंदों तक पहुंचा चुके हैं. इनसे मदद पाने वालों में वे लोग भी शामिल हैं, जिनके पास आयुष्मान कार्ड तो था, लेकिन उससे लाभ नहीं मिल सका.

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काशी के बबलू की मां की कैंसर से मौत हुई थी.

जानिए काशी के बबलू के बारे में-
जिंदगी दांव पर लगी हो और किसी की मदद न मिल रही हो तो वह दौर कैसे गुजरता है ये वही बता सकता है, जिसपर बीती हो. वाराणसी में एक ऐसा कई परिवार हैं जो इस पल का सामना कर चुके हैं. परिवार का सदस्य जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा था, लेकिन साथ देने वाला कोई नहीं था. अस्पतालों ने हाथ खड़े कर दिए थे और सांसद, विधायक, नेता मदद करने के लिए सिर्फ आश्वासन दे रहे थे. ऐसे में लोगों को एक सहारा मिला वो है काशी के बबलू का. काशी के बबलू ने ऐसे कई परिवारों की मदद की, जिनके पास मदद के लिए कोई नहीं था. उन्होंने सरकारी योजनाओं की मदद से उन परिवारों को लाभ पहुंचाया है. आइए जानते हैं काशी के बबलू के बारे में लोग क्या कहते हैं.

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काशी के बबलू गंभीर रूप से बीमार लोगों की मदद करते हैं.
जाने में कितने दिनों में हुआ पैसों का इंतजाम-नीता जायसवाल बताती हैं कि 'मेरे मामाजी कैंसर से पीड़ित हैं. मैं बहुत परेशान हुई. घर के अन्य परिजन भी बहुत परेशान हुए. कहीं से कोई मदद नहीं मिली. आयुष्मान कार्ड भी मिला था, लेकिन उससे उन्हें कोई मदद नहीं मिली. इसके बाद उन्हें काशी के बबलू के बारे में पता चला. सभी अस्पतालों में हाथ खड़े कर दिए थे. हमारे पास पैसे नहीं थे. इसके बाद बबलू ने उनकी बहुत मदद की. यहां मात्र 22 दिन के अंदर ही काशी के बबलू ने सारे डाक्यूमेंट लेकर पैसे का इंजताम कराया. इसके बाद अस्पताल के भी सारे काम कराए. आज उनके मामा सुरक्षित हैं. आज उनकी स्थिति पहले से अच्छी है. बहुत सारे सांसद, विधायक के पास वह लोग मदद के लिए गए थे, लेकिन उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली'.
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काशी के बबलू 1300 लोगों की मदद कर चुके हैं.
बबलू के बारे में पड़ोसियों ने बताया-नीता जायसवाल ने बताया कि बहुत से नेता आए, जिन्होंने कहा कि वह आपका काम करवा देंगे, लेकिन उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिली थी. काशी के बबलू के बारे में जब उन्हें पता चला तो उन्होंने उनकी बहुत मदद की. वह सबकी मदद करते हैं. ऐसा ही नहीं मेरे पड़ोस में भी उन्होंने सीमा यादव नाम की महिला की मदद की थी. उनका मरीज सुंदरपुर मालवीय अस्पताल में भर्ती था. उनकी भी काशी के बबलू ने की थी, उनको भी पैसे दिलाए थे. वह बबलू की हमेशा आभारी रहेंगी. उन्होंने बताया कि वह अब यह सोंचती हैं कि कोई गरीब हो, जिसे मदद की जरूरत हो, तो वह भी उसकी मदद करें. उन्होंने बताया कि वह कई लोगों को काशी के बबलू के बारी में बताई. यहां बबलू द्वारा सबको मदद मिली है. मां के इलाज के लिए नहीं मिले पैसे-काशी के बबलू बिंद ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि 'मेरे सेवा करने की मिशन की शुरुआत साल 2014 से हुई. उस समय उनकी मां को कैंसर था. उन्होंने कहा कि दुश्मन क्या किसी को भी कैंसर की बीमारी न हो. वह अपनी मां को लेकर बीएचयू पहुंचे. यहां उनकी मां का इलाज चल रहा था. यहां तेजी से जांच आदि काम के लिए पैसे खर्च होने लगे कि कुछ बता नहीं सकता. इसके बाद वह अपनी मां को सहारा अस्पताल लेकर गए. वहां पर कीमो के लिये कहना पड़ता था कि अगले महीने 40 हजार रुपये लेकर आना, अगले महीने 85 हजार रुपये लेकर आना. उस पीड़ा को वह बहुत करीब से देख चुके हैं. दोस्तों, रिश्तेदारों से बात की. यहां तक की कुछ लोगों ने अपने फोन बंद कर लिए. इस डर से कि मुझे कैंसर न हो जाए.'पैसे मिले, लेकिन मां नहीं रहीं-बबलू बिंद ने बताया कि 'उस दौर में उन्होंने टीवी पर देखा कि मुख्यमंत्री राहत कोष में एक सहायता राशि आती है. कुछ लोगों को इसका पैसा आया था, लोगों ने कहा कि बहुत मुश्किल से ये पैसा आता है. मैंने किसी तरीके से ये पैसे इकट्ठा किए. उस समय अखिलेश यादव का जनता दरबार चल रहा था. वह अखिलेश यादव के जनता दरवार में इसके लिए आवेदन किए. यहां जब तक पैसे मिले, तब तक देर हो चुकी थी. उनकी मां का उन पैसों से इलाज शुरू हो गया था, लेकिन देर होने की वजह से उनका देहांत हो गया था. इसके बाद उन्हें ये पीड़ा हुई कि अगर इस योजना के बारे में उन्हें पहले से पता होता तो शायद उनकी मां आज जीवित होती. इसके बाद उन्हें अनुभव हुआ कि ऐसे तमाम परिवार होंगे, जो पैसों के अभाव में अपनों का इलाज नहीं करा पाते होंगे. 9 करोड़ से अधिक रुपये सहायता में दिलाए-बबलू बिंद ने बताया कि 'साल 2014 से 2023 तक उन्होंने 9 करोड़ 87 लाख रुपये 1300 मरीजों को पूरे उत्तर प्रदेश के जिलों और विधानसभाओं में मदद के लिए दिला चुके हैं. 114 अस्पताल उत्तर प्रदेश में हैं, जहां पर मुख्यमंत्री राहत कोष द्वारा सभी गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, ब्रेन हैमरेज, ब्रेन ट्यूमर, कुला और वे सभी जो इस श्रेणी में आती हैं उनके लिए मदद मिलती है. अखबारों, फेसबुक और मिशन के माध्यम से लाखों लोगों तक यह संदेश जाता है कि मुख्यमंत्री राहत कोष द्वारा गंभीर बीमारियों के अस्पताल हैं. वहां पर इलाज के दौरान मरीज के पास इलाज के लिए पैसे न होने पर मदद ले सकते हैं. इस तरह वह मरीजों की मदद करते आ रहे हैं.मां-बाप को बीमारी के चलते खो दिया-बबलू बिंद ने बताया कि 'मरीज के परिवारों को न गहने बेंचने पड़ेंगे, न घर गिरवी रखना पड़ेगा और न अंगूठी गिरवी रखनी होगी. कैंसर जैसी बीमारी में जब कोई विधायक, सांसद के दरबार से लौट आता है, इस उम्मीद में कि उन्हें मदद मिल सकती है तो अच्छा लगता है. जौनपुर से ही बीते दिन एक मरीज के परिजन आए थे, जो सभी डाक्यूमेंट बनवाने से लेकर उसे सबमिट करने तक का काम वह खुद करा देते हैं. मरीज का इसके लिए एक रुपया भी खर्च नहीं होता है. बीमारी से मेरा परिवार गुजरा है. हार्ट अटैक से उनके पिताजी गुजर गए. मां को कैंसर हो गया था. अब उनका मिशन है कि किसी भी तरह से लोगों की मदद कर सकें.यह भी पढे़ं- 'चांद के पार चलो' हिट गाने के बाद हुए मशहूर, दादा साहब फाल्के पुरस्कार से हैं सम्मानित, जानें गायक विष्णु नारायण के बारे में

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Last Updated : Dec 22, 2023, 12:49 PM IST
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