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शिव नगरी काशी में अति रुद्रम से होगा विश्व कल्याण: स्वामी सच्चिदानंद

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दक्षिण भारत के प्रमुख आध्यात्मिक संगठन अवधूत दत्त पीठम की ओर से अति रुद्रम यज्ञ आयोजित किया जा रहा है. इस आयोजन में पीठाधिपति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामी जी शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा अति रुद्रम यज्ञ से विश्व कल्याण और शांति के अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी.

जगतगुरु स्वामी गणपति सच्चिदानंद.
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Published : Nov 23, 2019, 6:06 PM IST

वाराणसी: दक्षिण भारत के प्रमुख आध्यात्मिक संगठन अवधूत दत्त पीठम की ओर से काशी में अति रुद्रम यज्ञ आयोजन किया जा रहा है. शनिवार को पीठाधिपति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामीजी ने यज्ञ पूजा में हिस्सा लिया. इस मौके पर ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि भगवान शंकर के त्रिशूल पर स्थिर काशी में अति रूद्र यज्ञ का आयोजन कई गुना फल देने वाला है, इससे विश्व कल्याण और शांति का अभीष्ट फल प्राप्त होगा. साथ ही कहा कि यह श्रद्धालुओं के लिए भी अत्यंत कल्याणकारी है.

जगतगुरु स्वामी गणपति सच्चिदानंद जी से बातचीत करते संवाददाता.


भगवान शिव मुक्ति के प्रदाता
उन्होंने कहा कि स्कन्द पुराण समेत सभी पुराणों में यज्ञ, उपासन और भगवान शिव के स्मरण का महत्व बताया गया है. भगवान शिव मुक्ति के प्रदाता हैं. सप्तपुरियों में काशी को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है. भगवान शंकर यहां खुद जीवों का बंधन काटते हैं. मणिकर्णिका घाट पर सभी जीव को मुक्ति प्रदान करते हैं. जो लोग सप्तपुरियों में निवास करते हैं और पूजा करते हैं, उन्हें वैकुंठ की प्राप्ति होती है. लेकिन जीव को मुक्ति की प्राप्ति केवल शिव के द्वारा ही संभव है.


गंगा-वरुणा के त्रिकोण पर काशी का वास
यज्ञ स्थल पर मौजूद हजारों श्रद्धालुओं के बीच स्वामी जी ने ईटीवी भारत से कहा कि काशी खंड भगवान शिव जी के त्रिशूल पर स्थित है. गंगा-वरुणा नदी के त्रिकोण पर काशी का वास है. यह सारे जगत का हृदय स्थल है, इसलिए सभी भक्तगण कार्तिक मास में आकर निवास करते हैं और स्वामी शिव का दर्शन प्राप्त करते हैं.


अति रूद्र यज्ञ का आयोजन बेहद कठिन
पीठाधिपति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामी जी ने कहा कि यहां अन्नपूर्णा देवी, भगवान भैरव और भगवान शिव का वास है. यहां आकर यज्ञ करने का प्रतिफल सबसे ज्यादा है. बहुत सालों से ऐसा यज्ञ नहीं हुआ. अति रूद्र यज्ञ का आयोजन बेहद कठिन है. इसमें लाखों लोगों को वस्त्र, अन्न आदि का दान किया जाता है.


कई राज्यों के ब्राह्मण हुए शामिल
महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु समेत सभी राज्यों से ब्राह्मणों को बुलाया गया है. उत्तर भारत के भी ब्राह्मण इस यज्ञ में शामिल हुए हैं. 200 ब्राह्मणों द्वारा रूद्र पाठ किया जा रहा है. हर रोज जितना पाठ करते हैं, उसके अनुसार ही उसका हवन भी किया जाता है.


वातावरण की शुद्धि के लिए यज्ञ का आयोजन
स्वामी जी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से भी अति रूद्र यज्ञ आयोजन बेहद महत्वपूर्ण है. इस यज्ञ के आयोजन में बड़ी मात्रा में घी समेत अन्य वनस्पति का प्रयोग किया जा रहा है, जिनके धूम्र से वातावरण की शुद्धि हो रही है. साथ ही कहा कि तमाम फैक्ट्रियों-कारखानों से वायुमंडल में प्रदूषण फैल रहा है.


यज्ञ स्थल से वायु का शुद्धीकरण
पीठाधिपति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामी जी ने कहा कि वाहनों के धुएं से बढ़ रहे प्रदूषण की चपेट में मानव सभ्यता कराह रही है. लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है. ऐसे में यज्ञ स्थल से वायु शुद्धीकरण का बड़ा पुण्य कार्य पूरा किया जा रहा है. भगवान शिव ने कभी सृष्टि कल्याण के लिए विषपान किया था. आज विष वायु से ग्रसित पृथ्वी को बचाने के लिए यह यज्ञ बेहद महत्वपूर्ण है. काशी में इस यज्ञ के आयोजन का फल आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही दृष्टि से मानव सभ्यता और श्रेष्ठ के लिए कल्याणकारी है.

वाराणसी: दक्षिण भारत के प्रमुख आध्यात्मिक संगठन अवधूत दत्त पीठम की ओर से काशी में अति रुद्रम यज्ञ आयोजन किया जा रहा है. शनिवार को पीठाधिपति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामीजी ने यज्ञ पूजा में हिस्सा लिया. इस मौके पर ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि भगवान शंकर के त्रिशूल पर स्थिर काशी में अति रूद्र यज्ञ का आयोजन कई गुना फल देने वाला है, इससे विश्व कल्याण और शांति का अभीष्ट फल प्राप्त होगा. साथ ही कहा कि यह श्रद्धालुओं के लिए भी अत्यंत कल्याणकारी है.

जगतगुरु स्वामी गणपति सच्चिदानंद जी से बातचीत करते संवाददाता.


भगवान शिव मुक्ति के प्रदाता
उन्होंने कहा कि स्कन्द पुराण समेत सभी पुराणों में यज्ञ, उपासन और भगवान शिव के स्मरण का महत्व बताया गया है. भगवान शिव मुक्ति के प्रदाता हैं. सप्तपुरियों में काशी को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है. भगवान शंकर यहां खुद जीवों का बंधन काटते हैं. मणिकर्णिका घाट पर सभी जीव को मुक्ति प्रदान करते हैं. जो लोग सप्तपुरियों में निवास करते हैं और पूजा करते हैं, उन्हें वैकुंठ की प्राप्ति होती है. लेकिन जीव को मुक्ति की प्राप्ति केवल शिव के द्वारा ही संभव है.


गंगा-वरुणा के त्रिकोण पर काशी का वास
यज्ञ स्थल पर मौजूद हजारों श्रद्धालुओं के बीच स्वामी जी ने ईटीवी भारत से कहा कि काशी खंड भगवान शिव जी के त्रिशूल पर स्थित है. गंगा-वरुणा नदी के त्रिकोण पर काशी का वास है. यह सारे जगत का हृदय स्थल है, इसलिए सभी भक्तगण कार्तिक मास में आकर निवास करते हैं और स्वामी शिव का दर्शन प्राप्त करते हैं.


अति रूद्र यज्ञ का आयोजन बेहद कठिन
पीठाधिपति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामी जी ने कहा कि यहां अन्नपूर्णा देवी, भगवान भैरव और भगवान शिव का वास है. यहां आकर यज्ञ करने का प्रतिफल सबसे ज्यादा है. बहुत सालों से ऐसा यज्ञ नहीं हुआ. अति रूद्र यज्ञ का आयोजन बेहद कठिन है. इसमें लाखों लोगों को वस्त्र, अन्न आदि का दान किया जाता है.


कई राज्यों के ब्राह्मण हुए शामिल
महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु समेत सभी राज्यों से ब्राह्मणों को बुलाया गया है. उत्तर भारत के भी ब्राह्मण इस यज्ञ में शामिल हुए हैं. 200 ब्राह्मणों द्वारा रूद्र पाठ किया जा रहा है. हर रोज जितना पाठ करते हैं, उसके अनुसार ही उसका हवन भी किया जाता है.


वातावरण की शुद्धि के लिए यज्ञ का आयोजन
स्वामी जी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से भी अति रूद्र यज्ञ आयोजन बेहद महत्वपूर्ण है. इस यज्ञ के आयोजन में बड़ी मात्रा में घी समेत अन्य वनस्पति का प्रयोग किया जा रहा है, जिनके धूम्र से वातावरण की शुद्धि हो रही है. साथ ही कहा कि तमाम फैक्ट्रियों-कारखानों से वायुमंडल में प्रदूषण फैल रहा है.


यज्ञ स्थल से वायु का शुद्धीकरण
पीठाधिपति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामी जी ने कहा कि वाहनों के धुएं से बढ़ रहे प्रदूषण की चपेट में मानव सभ्यता कराह रही है. लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है. ऐसे में यज्ञ स्थल से वायु शुद्धीकरण का बड़ा पुण्य कार्य पूरा किया जा रहा है. भगवान शिव ने कभी सृष्टि कल्याण के लिए विषपान किया था. आज विष वायु से ग्रसित पृथ्वी को बचाने के लिए यह यज्ञ बेहद महत्वपूर्ण है. काशी में इस यज्ञ के आयोजन का फल आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही दृष्टि से मानव सभ्यता और श्रेष्ठ के लिए कल्याणकारी है.

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वाराणसी। दक्षिण भारत के प्रमुख आध्यात्मिक संगठन अवधूत दत्त पीठम की ओर से काशी में अति रुद्रम यज्ञ आयोजन किया जा रहा है। शनिवार को पीठाधी पति जगतगुरु श्री गणपति सच्चिदानंद स्वामीजी ने यज्ञ पूजा में हिस्सा लिया इस मौके पर ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने कहा भगवान शंकर के त्रिशूल पर स्थिर काशी में अति रूद्र यज्ञ का आयोजन कई गुना फल देने वाला है इससे विश्व कल्याण और शांति का अभीष्ट फल प्राप्त होगा यह श्रद्धालुओं के लिए भी अत्यंत कल्याणकारी है। उन्होंने कहा कि स्कन्द पुराण समेत सभी पुराण में यज्ञ , उपासन और भगवान शिव के स्मरण का महत्व बताया गया है । भगवान शिव मुक्ति के प्रदाता हैं सप्तपुरियों में काशी को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है भगवान शंकर यहां खुद जीवो का बंधन काटते हैं। मणिकर्णिका घाट पर सभी जीव को मुक्ति प्रदान करते हैं जो लोग सप्तपुरी यों में निवास करते हैं पूजा करते हैं उन्हें वैकुंठ प्राप्त होता है लेकिन जीव को मुक्ति की प्राप्ति केवल शिव के द्वारा ही संभव है ।



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यज्ञ स्थल पर मौजूद हजारों श्रद्धालुओं के बीच स्वामी जी ने ईटीवी भारत से कहा कि काशी खंड भगवान शिव जी के त्रिशूल पर स्थित है जब पहले होता है तब भी काशी खंड स्थिर और अविचल रहता है गंगा वरुणा नदी के त्रिकोण पर काशी का वास है यह सारे जगत का हृदय स्थल है इसलिए भक्त लोग यहां आकर कार्तिक मास में आकर निवास करते हैं और स्वामी शिव का दर्शन कर प्राप्त करते हैं यहां अन्नपूर्णा देवी, भगवान भैरव और भगवान शिव का वास है । यहां आकर यज्ञ करने का प्रतिफल सबसे ज्यादा है बहुत सालों से ऐसा कभी यज्ञ नहीं हुआ अत्रि रूद्र यज्ञ का आयोजन बेहद कठिन है । लाखों लोगों को वस्त्र , अन्न आदि का दान किया जाता है। काशी की गलियों में जाकर लोगों को वस्त्र , आहार आदि का दान किया जा रहा है। महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश तेलंगाना कर्नाटक तमिलनाडु समेत सभी राज्यों से ब्राह्मणों को बुलाया गया है उत्तर भारत के भी ब्राह्मण इस यज्ञ में शामिल हुए हैं 200 ब्राह्मणों द्वारा रूद्र पाठ किया जा रहा है हर रोज जितना पाठ करते हैं उसी के अनुसार उसका हवन किया जाता है।

स्वामी जी महाराज ने बताया कि पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से भी अति रूद्र यज्ञ आयोजन बेहद महत्वपूर्ण है इस यज्ञ के आयोजन में बड़ी मात्रा में घी समेत अन्य वनस्पति का प्रयोग किया जा रहा है जिनके धूम्र से वातावरण में शुद्धि हो रही है तमाम फैक्ट्रियों कारखानों से वायुमंडल में प्रदूषण फैल रहा है। वाहनों के धुए से बढ़ रहे प्रदूषण की चपेट में मानव सभ्यता कराह रही है लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है ऐसे में यज्ञ स्थल से वायु शुद्धीकरण का बड़ा पुण्य कार्य पूरा किया जा रहा है। भगवान शिव ने कभी सृष्टि कल्याण के लिए विषपान किया था आज विष वायु से ग्रसित पृथ्वी को बचाने के लिए यह यज्ञ बेहद महत्वपूर्ण है। काशी में इस यज्ञ के आयोजन का फल आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही दृष्टि से मानव सभ्यता और श्रेष्ठ के लिए कल्याणकारी है।

इंटरव्यू /जगतगुरु स्वामी गणपति सच्चिदानंद, पीठाधिपति अवधूत दत्त पीठम




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