वाराणसी: जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट लेते हैं, उस उम्र में काशी की ये बेटी देश के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मेडल ला रही है. बड़ी बात यह है कि गंभीर बीमारी भी इनके हौसले को तोड़ नहीं पाई. 14 साल के वनवास के बाद वह फिर से ट्रैक पर उतरी और आज देश की महिलाओं के लिए एक मिसाल बनी हुई है. जी हां, यह हैं काशी की बेटी नीलू मिश्रा जो लगभग 54 साल की हैं. लेकिन, उसके बावजूद भी इनका हौसला आज भी यंग है और यह देश के लिए लगातार मेडल लेकर आ रही हैं. नीलू मिश्रा एक मास्टर एथलीट हैं, जो अब तक 100 से ज्यादा राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय लेवल के मेडल देश के नाम कर चुकी हैं और इनका यह कारवां लगातार चलता जा रहा है.
बता दें कि 1985 में विवाह के बाद नीलू मिश्रा ने शारीरिक समस्याओं के कारण खेल को अलविदा कह दिया था. 6 साल तक वह गंभीर बीमारी से जूझी. इसमें मिस कैरेज, किडनी के साथ तमाम अन्य समस्याएं थीं. लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी. लगभग 14 साल बाद वह फिर से ट्रैक पर लौटीं और उन्होंने अपने खेल के करियर इनिंग की फिर से शुरुआत की. उनकी यह नई इनिंग ना सिर्फ उनके सपने को पूरा करने वाली थी, बल्कि देश की उन बेटियों के लिए भी एक मिसाल थी, जिन्होंने किसी समस्या या किसी कारण से अपने करियर को पीछे छोड़ दिया था. नीलू मिश्रा के हौसले ने उन सभी को फिर से एक नई उम्मीद दी.
फिट है तो हिट है के फार्मूले पर कर रहीं काम, महिलाओ के लिए बनीं आइकॉन
नीलू मिश्रा ने बताया कि नया सफर उनके लिए बेहद मुश्किल भरा रहा. मां बनना, बीमारी से जूझने और उसके बाद फिर से ट्रैक पर उतरकर अपने सपने को पूरा करना अपने आप से एक जंग थी. इसके साथ ही समाज की उस सोच से भी लड़ना था, जो महिलाओं को इस तरीके के काम करने की इजाजत नहीं देता. इन सब को पीछे छोड़ नीलू मिश्रा ने ट्रैक पर दौड़ना शुरू किया. उस समय उन्हें समझ में आया कि जो फिट है वह हिट है और इसी फार्मूले पर अब आगे बढ़ना है. उन्होंने सामाजिक संकुचित मानसिकता को पीछे छोड़कर अपने सपने को पूरा करने पर जोर दिया और उसका परिणाम है कि आज नीलू मिश्रा पूरे देश के लिए एक आईकॉन बन चुकी हैं.
समाज के असहाय बच्चों के लिए बनीं सहारा
नीलू मिश्रा बताती हैं कि वह एक मदर होने के साथ सरकारी कर्मचारी हैं. इसके बावजूद भी वो थोड़ा समय समाज के युवा, बेटे- बेटियों, ब्लाइंड कुपोषित बच्चों के लिए निकालती हैं और उन्हें स्पोर्ट्स की ओर ले आने की कोशिश करती हैं. उसके बाद वह 3 से 4 घंटे अपने खेल के लिए भी बचाती हैं, जिससे कि वह प्रैक्टिस कर सकें. बता दें कि आज नीलू मिश्रा देश के लिए वह आईकॉन हैं, जो इस बात को साबित करती हैं कि निश्चित तौर पर यदि हौसले में उड़ान हो तो व्यक्ति हर मंजिल को पूरा कर सकता है.
जीत चुकी हैं 100 से ज्यादा मेडल
बताते चलें कि मास्टर्स एथलीट में 35 वर्ष के आयु के ऊपर के एथलीट के लिए अलग-अलग खेल शामिल हैं. इसमें ट्रैक एंड फील्ड, रोड रनिंग और क्रॉस कंट्री रनिंग जैसे खेल हैं. नीलू मिश्रा ने एक लंबे ब्रेक के बाद साल 2009 में पहली बार फिनलैंड में मास्टर एथलेटिक्स चैंपियन में ब्रॉन्ज मेडल जीता. 2010 में बैंकॉक ओपन मास्टर एथलीट चैंपियन में गोल्ड जीता. उसके बाद 2010 में चेन्नई एशियन टूर्नामेंट में तीन गोल्ड जीते. इसके बाद लगातार उनके मेडल जीतने के दौरे की शुरुआत हो गई, जो अनवरत जारी है. अब तक वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में 100 से ज्यादा मेडल जीत चुकी हैं.
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