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सावन में बम-बम बोलने वाली काशी में सन्नाटा, भक्तों की दूरी से लगी आर्थिक चोट - कांवड़ यात्रा पर रोक

बम-बम बोलने वाली काशी में कोरोना ने ऐसा कहर बरपाया कि कांवड़ यात्रा पर भी ब्रेक लग गया. सावन के समय होने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों से गुलजार रहने वाली इस प्राचीन नगरी में अब सन्नाटा छाया हुआ है. व्यापारी, भक्त और नाविक सभी परेशान हैं. लाखों का कारोबार प्रभावित हुआ है. देखिए वाराणसी से हमारी यह खास रिपोर्ट...

special report on varanasi kanwar yatra
कांवड़ यात्रा पर काशी से विशेष रिपोर्ट.
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Published : Jul 5, 2020, 5:48 PM IST

वाराणसी: सावन के महीने में काशी बोल बम के नारों से गूंजती है. काशी का चप्पा-चप्पा, सड़क और गलियां केसरिया रंग के कपड़े पहने कांवरियों की भीड़ से पटी नजर आती हैं. हर तरफ सिर्फ शिव के नाम का जोर होता है, लेकिन इस बार वैश्विक महामारी कोरोना ने ऐसा कहर बरपाया है कि सावन में हमेशा भीड़-भाड़ और शिव के भक्तों से पट्टी रहने वाली काशी इस बार बिल्कुल सुनसान पड़ी है.

संवाददाता की स्पेशल रिपोर्ट.

न मंदिर में भीड़ है, न बाजार में रौनक
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों की भीड़ सावन के सोमवार से पहले ही शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार न मंदिर में भीड़ है और न बाजार में रौनक. हाल यह है कि सावन का इंतजार करने वाले व्यापारी, भक्त और इस मौके का लाभ उठाने वाले अन्य लोग बिल्कुल मायूस हैं. सवाल बस यही है कि आखिर उनका क्या कसूर था, जो इस वायरस ने उनकी रोजी-रोटी को इस महापर्व के दौरान भी उनसे छीन लिया.

सावन में शिव भक्तों से गुलजार रहती है काशी
दरअसल, वाराणसी में सावन के दौरान हर साल लगभग 1 महीने के अंदर 20 से 22 लाख की भीड़ आती है, जिसमें कांवरिया, लोकल पब्लिक और देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करने की नियत से यहां पहुंचते हैं. काशी विश्वनाथ के अलावा काशी के अन्य शिव मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ 'बोल बम' के नारे के साथ पहुंचती है. पूरे सावन के एक महीने तक काशी शिव भक्तों की भक्ति में रमी नजर आती है.

सावन में जुटती है लाखों की भीड़
सबसे बड़ा फायदा काशी की अर्थव्यवस्था को मिलता है, क्योंकि हर रोज लाखों की भीड़ और सावन के सोमवार पर तीन से चार लाख की भीड़ काशी के मंदिरों में पहुंच जाती है, लेकिन इस बार चीन से फैले कोरोना वायरस ने ऐसा कहर बरपाया है कि इस सावन में बम-बम रहने वाली काशी बिल्कुल शांत है. विश्वनाथ मंदिर जाने वाले गोदौलिया चौराहे, दशाश्वमेध मार्केट, बांसफाटक चौक आदि जगहों की दुकानें बिल्कुल सुनसान हैं.

मायूस नजर आ रही काशी
नियमों का पालन करने के लिए रास्ते में बांस-बल्लियां लगाकर बैरिकेडिंग तो की जा रही है, लेकिन सावन पर कांवरियों के आने से लगी रोक के बाद काशी बिल्कुल मायूस है, क्योंकि भोले के इन भक्तों की एक महीने तक चलने वाली भक्ति के बल पर बनारस की आर्थिक व्यवस्था भी आगे बढ़ती थी.

लाखों का कारोबार प्रभावित
व्यापारी वर्ग की माने तो लगभग एक महीने के अंदर बनारस लाखों का कारोबार करता था. इसमें साड़ी, बनारसी पान, पीतल के बर्तन, कपड़े, लाईया चना, प्रसाद, रुद्राक्ष की माला, भगवान की मूर्तियां सजावटी सामान और बनारस में मिलने वाली ठंडाई के साथ घाटों पर सैर करने के दौरान छोटे-छोटे व्यापार करने वालों से लेकर गंगा घाट पर आने वाले लोगों को गंगा की सैर कराने वाले नाविक, सब इस बार सावन के आने के बाद भी मायूस हैं. सबका बस यही कहना है हर साल सावन काशी में धन की वर्षा करता था, लेकिन इस बार इस वायरस का ऐसा कहर टूटा है कि धन की वर्षा तो दूर दो वक्त की रोटी मिल जाए वही काफी होगा.

ये भी पढ़ें: गुरु पूर्णिमा विशेष: एक ऐसा गुरु जिसने संवार दी कइयों की जिंदगी...

भक्तों में छाई मायूसी
सावन पर कांवड़ यात्रा पर रोक से एक तरफ जहां बनारस को आर्थिक चोट पहुंचेगी, वहीं बाबा की भक्ति करने वाले भक्त भी मायूस हैं. हर साल कांवड़ उठाने वाले और बाबा के मंदिरों में जल चढ़ाने वाले भक्तों का कहना है कि इस बार भक्ति घर पर होगी. स्वयं भगवान का शिवलिंग बनाएंगे और पार्थिव शिवलिंग की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेंगे, क्योंकि खुद की सुरक्षा के साथ दूसरों की जिंदगी की रक्षा करना भी एक श्रद्धा है.

वाराणसी: सावन के महीने में काशी बोल बम के नारों से गूंजती है. काशी का चप्पा-चप्पा, सड़क और गलियां केसरिया रंग के कपड़े पहने कांवरियों की भीड़ से पटी नजर आती हैं. हर तरफ सिर्फ शिव के नाम का जोर होता है, लेकिन इस बार वैश्विक महामारी कोरोना ने ऐसा कहर बरपाया है कि सावन में हमेशा भीड़-भाड़ और शिव के भक्तों से पट्टी रहने वाली काशी इस बार बिल्कुल सुनसान पड़ी है.

संवाददाता की स्पेशल रिपोर्ट.

न मंदिर में भीड़ है, न बाजार में रौनक
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों की भीड़ सावन के सोमवार से पहले ही शुरू हो जाती थी, लेकिन इस बार न मंदिर में भीड़ है और न बाजार में रौनक. हाल यह है कि सावन का इंतजार करने वाले व्यापारी, भक्त और इस मौके का लाभ उठाने वाले अन्य लोग बिल्कुल मायूस हैं. सवाल बस यही है कि आखिर उनका क्या कसूर था, जो इस वायरस ने उनकी रोजी-रोटी को इस महापर्व के दौरान भी उनसे छीन लिया.

सावन में शिव भक्तों से गुलजार रहती है काशी
दरअसल, वाराणसी में सावन के दौरान हर साल लगभग 1 महीने के अंदर 20 से 22 लाख की भीड़ आती है, जिसमें कांवरिया, लोकल पब्लिक और देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करने की नियत से यहां पहुंचते हैं. काशी विश्वनाथ के अलावा काशी के अन्य शिव मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ 'बोल बम' के नारे के साथ पहुंचती है. पूरे सावन के एक महीने तक काशी शिव भक्तों की भक्ति में रमी नजर आती है.

सावन में जुटती है लाखों की भीड़
सबसे बड़ा फायदा काशी की अर्थव्यवस्था को मिलता है, क्योंकि हर रोज लाखों की भीड़ और सावन के सोमवार पर तीन से चार लाख की भीड़ काशी के मंदिरों में पहुंच जाती है, लेकिन इस बार चीन से फैले कोरोना वायरस ने ऐसा कहर बरपाया है कि इस सावन में बम-बम रहने वाली काशी बिल्कुल शांत है. विश्वनाथ मंदिर जाने वाले गोदौलिया चौराहे, दशाश्वमेध मार्केट, बांसफाटक चौक आदि जगहों की दुकानें बिल्कुल सुनसान हैं.

मायूस नजर आ रही काशी
नियमों का पालन करने के लिए रास्ते में बांस-बल्लियां लगाकर बैरिकेडिंग तो की जा रही है, लेकिन सावन पर कांवरियों के आने से लगी रोक के बाद काशी बिल्कुल मायूस है, क्योंकि भोले के इन भक्तों की एक महीने तक चलने वाली भक्ति के बल पर बनारस की आर्थिक व्यवस्था भी आगे बढ़ती थी.

लाखों का कारोबार प्रभावित
व्यापारी वर्ग की माने तो लगभग एक महीने के अंदर बनारस लाखों का कारोबार करता था. इसमें साड़ी, बनारसी पान, पीतल के बर्तन, कपड़े, लाईया चना, प्रसाद, रुद्राक्ष की माला, भगवान की मूर्तियां सजावटी सामान और बनारस में मिलने वाली ठंडाई के साथ घाटों पर सैर करने के दौरान छोटे-छोटे व्यापार करने वालों से लेकर गंगा घाट पर आने वाले लोगों को गंगा की सैर कराने वाले नाविक, सब इस बार सावन के आने के बाद भी मायूस हैं. सबका बस यही कहना है हर साल सावन काशी में धन की वर्षा करता था, लेकिन इस बार इस वायरस का ऐसा कहर टूटा है कि धन की वर्षा तो दूर दो वक्त की रोटी मिल जाए वही काफी होगा.

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भक्तों में छाई मायूसी
सावन पर कांवड़ यात्रा पर रोक से एक तरफ जहां बनारस को आर्थिक चोट पहुंचेगी, वहीं बाबा की भक्ति करने वाले भक्त भी मायूस हैं. हर साल कांवड़ उठाने वाले और बाबा के मंदिरों में जल चढ़ाने वाले भक्तों का कहना है कि इस बार भक्ति घर पर होगी. स्वयं भगवान का शिवलिंग बनाएंगे और पार्थिव शिवलिंग की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेंगे, क्योंकि खुद की सुरक्षा के साथ दूसरों की जिंदगी की रक्षा करना भी एक श्रद्धा है.

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