वाराणसी: काशी सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक है. इसे शहर को धर्म की राजधानी भी कहा जाता है. यहां हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है. इसलिए शहर को सात वार नौ त्योहारों का शहर भी कहते हैं. आश्विन माह के कृष्ण पक्ष पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में यह मनाया जाता है. इसके अलावा नेपाल के मिथिला और थरुहट में भी मनाया जाता है. इस व्रत में महिलाएं नहाए खाए के साथ निर्जला उपवास रखती हैं.
पूजा में शामिल आंचल ने बताया कि आश्वनी मास की अष्टमी तिथि को यह पूजा की जाती है. इसमें तीन दिन का व्रत रखा जाता है. नवमी तिथि में पानी पिया जाता है. यह व्रत बड़ा कठिन होता है, लेकिन इसे करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
पिछले 16 साल से व्रत करने वाली महिला ने बताया कि यह व्रत वे अपनी संतान के दीर्घायु होने के लिए करती हैं, जिससे कि उनके घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे. उन्होंने बताया कि जीवित्पुत्रिका पूजा में सभी प्रकार के फल, धागा, चना, मटर और अन्य सामानों का प्रयोग होता है. इसमें हम सोने-चांदी की बनी जितिया की पूजा करते हैं. ऐसा करने से घर में समृद्धि रहती है.
इस बाबत काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत कुलपति तिवारी ने बताया कि शास्त्रों में वर्णन है कि इस दिन सुबह स्नान करने के बाद व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीप कर साफ करती हैं. इसके बाद जीमूत वाहन की कुछ निर्मित मूर्ति जल में स्थापित करती है. उसके उपरांत अक्षत, रोली, दीप और धूप इत्यादि पूजन सामग्री से पूजा अर्चना करती हैं.
यह पूजा करने से संतान के ऊपर आने वाले सभी ग्रह समाप्त हो जाते हैं और उनकी उम्र लंबी होती है. द्रौपदी ने भी इस व्रत को किया था. इस व्रत को करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है.
-कुलपति तिवारी, महंत, काशी विश्वनाथ मंदिर
बताते चलें कि इस व्रत में सोने-चांदी की धनुषनुमा जीतिया बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है. इसमें भगवान के साथ-साथ चील और सियार की भी कहानी सुनाई जाती है. कहा जाता है कि जब मनुष्य जाति पूजा कर रहा था तो चील ने उस कथा को सुना और इसकी वजह से उसके बच्चे की मृत्यु नहीं हुई. सियार ने कथा अनसुनी कर दी, जिसकी वजह से उसके बच्चे की मौत हो गई. इसलिए सनातन धर्म में सभी माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को करती हैं.