वाराणसी: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में हमेशा से जाति धर्म की राजनीति हावी होती है. चुनाव आते हैं तो हर जाति की याद नेताओं को आने लगती है. ब्राह्मण, क्षत्रिय, दलित या फिर अन्य जातियों को साधने में कोई राजनैतिक दल पीछे नहीं रहना चाहता है. जब बात जातियों की होती है तो फिर गुजराती समाज को कैसे छोड़ा जा सकता है. हमेशा से देश में गुजरात मॉडल पर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने जब यूपी के चुनाव में इस बार गुजरात की तर्ज पर यूपी को विकास मॉडल कितना पेश करने की तैयारी की तो भारतीय जनता पार्टी की काट करने के लिए गुजरात के ही नेताओं को कांग्रेस ने अब मैदान में उतारना शुरू कर दिया है.
रविवार को कांग्रेस नेता और गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने वाराणसी के तहत दक्षिण विधानसभा के गुजराती बाहुल्य इलाकों में जनसंपर्क किया. घर-घर दुकान दुकान पहुंचकर हार्दिक पटेल ने गुजराती वोटर्स को कांग्रेस के साथ लाने का प्रयास किया है, लेकिन यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर बनारस के गुजराती समाज के लोगों की याद राजनैतिक दलों को क्यों आने लगी यह महत्वपूर्ण है क्योंकि गुजरात से 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा से गुजराती समाज की पहली पसंद रहे हैं. यही वजह है कि अब इस गुजराती वोट बैंक में सेंधमारी के लिए कांग्रेस बनारस के गुजराती इलाकों में अपनी जड़ों को मजबूत करने के प्रयास में लगी है.
वाराणसी के चौक ठठेरी बाजार चौखंभा गोपाल मंदिर समेत काल भैरव इलाके में हार्दिक पटेल का पैदल घूमना कभी जलेबी खाना तो कभी बनारसी मलइयो का स्वाद चखना निश्चित तौर पर चुनावी माहौल में राजनीति का बड़ा हथकंडा माना जा सकता है.
हार्दिक पटेल का संकरी गलियों में घूमते हुए चुनावी मौसम में कांग्रेस के वादों का पंपलेट लोगों के बीच बांटना बीजेपी के गढ़ में सेंधमारी का बड़ा प्रयास माना जा सकता है. दरअसल शहर दक्षिणी विधानसभा हमेशा से भारतीय जनता पार्टी का सबसे मजबूत किला माना जाता रहा है. लगातार आठ बार से बीजेपी के पास यह सीट होना हर राजनीतिक दल को परेशानी में डाल रहा है.
शायद यही वजह है कि गुजरात मॉडल की बात करके गुजरातियों को अपनी तरफ करने वाली बीजेपी से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने पाटीदारों के नेता हार्दिक पटेल मैदान में उतारा है.
गुजराती मोहल्ले में खाने-पीने का स्वाद चखते हुए उन्होंने गुजराती परिवारों के बीच अपनी पैठ बनाने का प्रयास किया. हिंदी खड़ी बोली के जनक कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र के परिवार के लोगों से भी मुलाकात की, जो निश्चित तौर पर गुजराती वोट बैंक को साधने का बड़ा प्रयास माना जा सकता है.
उनका गुजरातियों की गलियों में टहलना, गुजराती वोटर से मिलना, गुजराती परिवारों के बीच खाना पीना-खाना निश्चित तौर पर गुजराती समाज को भाएगा. अब कांग्रेस इसे वोटों में कितना बदल पाएगी ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा. शहर दक्षिणी विधानसभा में वर्तमान समय में 3,16,328 वोटर हैं.
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वर्तमान समय में वाराणसी के शहर दक्षिणी विधानसभा के लगभग आधा दर्जन मोहल्ले में गुजराती समाज के ढाई से 3000 परिवार रहते हैं, जो धीरे-धीरे अभिन्न संकरी गलियों से निकलकर बनारस की कई अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र में भी रहने लगे हैं. गुजराती समाज के लोगों की माने तो वर्तमान में बनारस के अंदर लगभग 15,000 से ज्यादा गुजराती वोटर्स मौजूद है. इन गुजराती वोटर का मिजाज बनारस में 2014 के दौरान पीएम मोदी के आने के बाद से गुजराती कैंडिडेट के प्रति हमेशा से मजबूत माना जाता रहा है.
छोटे-छोटे वोट बैंक से मतलब इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के कैंडिडेट डॉक्टर नीलकंठ तिवारी ने कांग्रेस के उम्मीदवार राजेश मिश्रा को लगभग 17000 वोट से ही हराया था. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार छोटे-छोटे वोट बैंक को साधने में जुटी हुई है और छोटे-छोटे वोट बैंक के सहारे कांग्रेस अपनी डूब रही नैया को पार लगाने का प्रयास करने में जुटी हुई है. इसी प्लानिंग के साथ गुजरात से हार्दिक पटेल को बनारस में लाकर गुजराती वोटर्स के बीच घुमाते हुए बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने का प्रयास किया जा रहा है.
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