वाराणसी : भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने गंगा के तट पर बसी भगवान शिव की नगरी में 4 फरवरी 1916 को एशिया के सबसे बड़े भूभाग पर आवासीय विश्वविद्यालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. तब से लेकर आज तक बसंत पंचमी के दिन विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस मनाया जाता है. हालांकि चार फरवरी तक विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन आदि कार्यक्रम होते रहते हैं. विश्वविद्यालय को लेकर कई रोचक प्रसंग हैं. विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के 108 बसंत देख चुका है. वर्तमान में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में 16 संस्थान, 14 संकाय, 140 विभाग और चार अंतर अनुवांशिक केंद्र हैं. महिलाओं के लिए महिला महाविद्यालय, 13 विद्यालय, 4 संबंधित डिग्री कॉलेज शामिल हैं. विश्वविद्यालय में 40 हजार छात्र-छात्राएं और तीन हजार शिक्षक हैं.
मालवीय जी की सोच इतनी आगे थी कि वह जानते थे कि जब हमारा देश आजाद होगा तो हमारे देश को नेतृत्व करने वाले चाहिए होंगे. इसलिए उन्होंने आजादी के पहले ही विश्वविद्यालय की स्थापना कर देश के नेतृत्व करने वालों के बीज को रोप दिया. विश्वविद्यालय में स्थापना से लेकर उसके निर्माण तक डॉ. एनी बेसेंट, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, काशी नरेश का विशेष योगदान रहा. बीएचयू के भारत कला भवन म्यूजियम में मालवीय जी से जुड़ी वस्तुएं उनकी पुस्तकें, उनकी पोशाक, उनका साफा, उनके खड़ाऊं, उनका चश्मा आज भी सहेज कर रखा है. वहीं भारत रत्न भी इस म्यूजियम में रखा गया है. साथ ही मालवीय भवन में मालवीय जी से जुड़े चित्र विश्वविद्यालय की स्थापना के समय के महत्व के फोटो सहेज कर रखे हुए हैं. इसे प्रतिदिन सैकड़ों पर्यटक देखने आते हैं.
भिक्षाटन कर बनाई सर्व विद्या की राजधानी : मदन मोहन मालवीय ने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया और भारत को ऐसा संस्थान दिया, जो युगों-युगों तक देश के प्रति उनके योगदान को याद दिलाएगा. जब देश अंग्रेजों के चंगुल में था, चारों तरफ भुखमरी थी, उस समय पंडित मदन मोहन मालवीय ने भिक्षाटन करके काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की नींव रखी. महामना प्रयागराज से संकल्प करके निकले और देश के कोने-कोने में घूम कर भिक्षाटन करने के बाद एशिया की सबसे बड़ी आवासीय विश्वविद्यालय का निर्माण किया.
बापू ने कहा था 'मैं महामना का पुजारी हूं' : स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आए. स्थापना समारोह से लेकर रजत समारोह तक विश्वविद्यालय में आए एक पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा था कि 'बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी आना मेरे लिए एक तीर्थ के समान है, मैं तो महामना का पुजारी हूं'. महामना मालवीय ने सन 1893 में कानून की परीक्षा पास की. वकालत के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी की सजा से बचाना था. चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन मालवीय जी के बुद्धि कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 152 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया.
सरदार वल्लभभाई पटेल की तरह ही मदन मोहन मालवीय भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दिग्गज चेहरों में से एक थे. वह चार बार (वर्ष1909, 1918, 1932 और 1933) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. महामना ने वर्ष 1886 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में ऐसा प्रेरक भाषण दिया कि वे राजनीति के मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस की सेवा की. मालवीय जी ने वर्ष 1937 में सक्रिय राजनीति को अलविदा कहने के बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित किया. मालवीय जी ने सन 1885 से 1907 के बीच 3 समाचार पत्रों का संपादन किया, जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय शामिल हैं. वर्ष 1909 में 'द लीडर' समाचार पत्र की स्थापना कर इलाहाबाद से प्रकाशित किया. भारत माता के इस महान सपूत का निधन 12 नवंबर 1946 को हुआ था. महामना की 153वीं जयंती के एक दिन पहले 24 दिसंबर 2014 को भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया.