वाराणसीः सनातन धर्म में हर ग्रह अपने अलग कार्य और फल देने के लिए जाने जाते हैं. लेकिन एक ऐसा ग्रह भी है जो आपके कर्मों के मुताबिक फल देता है, ये ग्रह हैं शनि देव. भगवान शनि की उपासना वैसे तो शनिवार के दिन करना फलदाई माना जाता है. लेकिन अगर शनिवार को अमावस का साथ मिल जाए. तो शनि अमावस्या का ये अद्भुत संयोग शनि देव की उपासना के लिए सबसे उत्तम दिन माना जाता है.
ये खास संयोग इस बार 30 अप्रैल यानी शनिवार को पड़ने जा रहा है. इस दिन सिर्फ अमावस्या और शनिवार का दिन ही नहीं है, बल्कि एक अद्भुत संयोग है, वो संयोग है सूर्य ग्रहण का. इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को लगेगा. लेकिन क्या इस ग्रहण का असर भारत के लोगों पर पड़ेगा और क्या शनि अमावस्या पर भगवान शनि की उपासना से शनि के प्रकोप से पीड़ित लोगों को राहत मिलेगी. इन्हीं सवालों का जवाब हमने वाराणसी के विद्वानों से जानने की कोशिश की.
30 अप्रैल को पड़ने वाली शनि अमावस्या को लेकर काशी हिंदू विश्विविद्यालय ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय से बातचीत में उन्होंने बताया कि सनातन धर्म में हर किसी का अपना महत्व माना जाता है. लेकिन अमावस्या तिथि एक ऐसी तिथि होती है, जो श्राद्ध कर्म से लेकर अन्य धार्मिक अनुष्ठानों खास तौर पर पितृकर्म से जुड़े सभी कार्यों के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है. अगर इस दिन शनिवार का दिन पड़ रहा हो तो इसे शनि अमावस्या के नाम से जाना जाता है. ये अद्भुत दिन इस बार 30 अप्रैल को पड़ने जा रहा है.
30 अप्रैल को पड़ने वाले इस खास दिन का महत्व उन लोगों के लिए ज्यादा माना जा सकता है, जो शनि की साढ़ेसाती या ढैया से पीड़ित है. या उनकी कुंडली में शनि की अंतर्दशा या महादशा चल रही हो, ऐसे लोगों को इस दिन खासतौर पर शनि की उपासना करनी चाहिए. 30 अप्रैल को सुबह स्नान ध्यान से निवृत्त होकर सबसे पहले शनि मंदिर जाकर वहां साफ-सफाई करने के साथ ही भगवान शनि की आराधना के लिए उन्हें तेल अर्पित करना चाहिए.
पंडित विनय के मुताबिक इस दिन शनि देवता को सरसों का तेल अर्पित करने के बाद उन्हें तेल काला उड़द, काला वस्त्र और पूजन सामग्री में काले चीजों को विशेष रूप से शामिल करना चाहिये. क्योंकि सूर्य पुत्र शनि काली वस्तुओं से अति प्रसन्न होते हैं. सूर्य पुत्र शनि की उपासना शनि अमावस्या पर करने से उनकी विशेष कृपा तो मिलती है, साथ ही साथ पितरों का आशसीर्वाद ही प्राप्त होता है.
इस दिन शनि उपासना के साथ हनुमान अष्टक का पाठ करना भी विशेष फलदाई माना जाता है. अगर शनि मंदिर आस-पास मौजूद न हो तो हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक का पाठ करके देसी घी और सिंदूर मिलाकर भगवान हनुमान को इसका लेप भी करना चाहिये. क्योंकि शनि के प्रकोप से बचने के लिए हनुमान जी की आराधना शास्त्रों में बतायी गई है.
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30 अप्रैल को शनि अमावस्या के साथ इस साल का पहला सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है. इस ग्रहण को खंड सूर्यग्रहण के नाम से जाना जाएगा, जो भारत वर्ष में दृश्य नहीं होगा. इस बारे में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के सदस्य एवं ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि ये खंड सूर्यग्रहण सूर्यास्त के पूर्व दक्षिण पेसिफिक के सुदूर पश्चिम दक्षिण अमेरिका में और सुदूर दक्षिण अमेरिका अंटार्टिका के कुछ समुद्री क्षेत्रों में स्पष्ट तौर पर दिखाई देगा. लेकिन भारत में ये ग्रहण न दिखाई देगा और न ही इसका किसी भी तरह का कोई असर भारत में देखने को मिलेगा. इसकी वजह ये है कि जब ग्रहण लगने से पूर्व उसका सूतक काल होता है, तो वही ग्रहण का असर मान्य होता है. हालांकि ये ग्रहण पश्चिमी देशों में लग रहा है. इसलिए इसके बारे में कुछ जानकारियां देनी जरूरी हैं. पंडित प्रसाद दीक्षित के मुताबिक ये कुल 3 मिनट 53 सेकेंड का होगा.
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