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बनारस के घाट खतरे में! जानिए गंगा घाट के धंसने के बाद वैज्ञानिकों ने क्या दी हिदायत

वाराणसी में घाटों के धंसने की घटना पर वैज्ञानिकों ने अपनी राय दी हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इस और ध्यान नहीं दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में काशी के गंगा घाटों पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है.

बनारस के घाट खतरे में
बनारस के घाट खतरे में
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Published : Jan 10, 2023, 1:18 PM IST

Updated : Jan 10, 2023, 2:12 PM IST

वाराणसी के धंसते घाटों पर वैज्ञानिकों की राय

वाराणसी: धर्म और आस्था की नगरी बनारस जिसकी पहचान यहां बहती मां गंगा, बाबा विश्वनाथ, यहां की गलियों और बनारसी साड़ी के साथ बनारसी पान से मानी जाती है. बनारस की अलग-अलग चीजों के अलावा यहां आने वाला हर शख्स बनारस के गंगा घाटों की खूबसूरती में खो जाता है. घाटों पर स्नान, ध्यान और दान पुण्य करते हुए बनारस के घाटों की सुंदरता को निहारना चाहता है. लेकिन, अब इन घाटों पर खतरा मंडरा रहा खतरा है. इन घाटों के बैठने यानी धंसने का. यह वर्तमान परिस्थिति में घाटों की हो रही दुर्दशा खुद बयां कर रही है. इसे लेकर किए गए कई रिसर्च भी यही कह रहे हैं कि काशी के गंगा घाट खतरे में हैं. समय रहते यदि इस पर कार्यवाही नहीं हुई तो निश्चित तौर पर आने वाले वक्त में काशी को बचाने के लिए बनाए गए इन घाटों पर आ रहा संकट गंगा किनारे बसी नगरी काशी के पुराने स्ट्रक्चर पर भी दिखने लगेगा, जो बड़ा संकट है.

दरअसल, 31 दिसंबर 2022 की शाम गंगा आरती के दौरान दशाश्वमेध और शीतला घाट के बीच का स्थान अचानक से बैठ गया. यहां पर घाट धंसने का हल्ला इतना मचा कि चारों तरफ हड़कंप मच गया. घाट के बैठने की सूचना से आला अधिकारियों के साथ कई बड़े नेता भी मौके पर पहुंचे और मौका मुआयना करके इसे ठीक करवाने की कवायद शुरू कर दी गई. लेकिन, क्या इस तरह से अचानक से घाट के धंसने के बाद महज बालू मिट्टी डालकर इसे सही कर देना ही विकल्प माना जा सकता है. शायद नहीं. क्योंकि सिर्फ एक नहीं बल्कि काशी के कई घाटों पर यह खतरा मंडरा रहा है. यह गंगा नदी के एक्सपर्ट और भूगर्भ वैज्ञानिकों का भी मानना है.

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वाराणसी में टेंट सिटी

काशी के गंगा घाटों पर मंडरा रहे इस खतरे को लेकर एक्सपर्ट से उनकी राय जानी गई. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना गंगा शोध संस्थान के चेयरमैन और बीएचयू में प्रोफेसर रहते हुए गंगा पर बड़े-बड़े शोध करने वाले और गंगा के लिए बनाई गई पूर्व में गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रह चुके प्रो. बीडी त्रिपाठी के अलावा भू वैज्ञानिक प्रोफेसर उमाकांत शुक्ला से इस संदर्भ में बातचीत की गई. तकनीकी तौर पर गंगा के साथ जमीन के अंदर चल रही हलचल के बारे में विस्तार से समझने का प्रयास किया. उन्होंने जो बातें बताईं वह निश्चित तौर पर डराने वाली हैं और यह तो साफ है कि अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में काशी के गंगा घाटों पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है.

काशी के घाटों को लेकर वैज्ञानिकों की राय

इस बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर उमाकांत शुक्ला से बातचीत की गई. प्रो उमाकांत शुक्ला लगातार काशी के गंगा घाटों और गंगा को लेकर चल रही हलचल पर रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बनारस में गंगा उत्तरवाहिनी हैं. इसके पीछे बड़ा कारण है कि गंगा इस क्षेत्र में एक बड़े फॉल्ट से होकर गुजर रही है. फॉल्ट यानी कि अपभ्रंश जो कि एक वीक जोन होता है और जब उसके समकक्ष एक्टिविटी होती है तो भूकंप जैसी स्थिति भी बनती है. जो पिछल कई बार आ भी चुके हैं. लेकिन, जहां तक घाटों के बैठने या धंसने की बात है, वह अपने आप में महत्वपूर्ण है.

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वाराणसी के घाट

उसे समझना जरूरी है. क्योंकि यहां गंगा उत्तरवाहिनी हैं और उसके दो रूप यहां देखे जाते हैं. एक तो वह जो अलग पैटर्न पर बहती है. इसमें बनारस की तरफ उसका एक साइड है और रामनगर की तरफ उसका दूसरा साइड है. एक तरफ यह बालू छोड़ती है, जिस पर टेंट सिटी बसाई गई है और दूसरे छोर पर यह काटने की कोशिश करती है, जो शहरी क्षेत्र है. क्योंकि, गंगा इस क्षेत्र में इसे काटते हुए बह रही है. इसलिए इसका दूसरा छोर बहुत ही संकुचित है और यह अपने दूसरे स्तर को भी छोड़ नहीं सकती है. इसलिए यह समय समय पर शिफ्ट होती रहती है.

प्रो. शुक्ला का कहना है कि इसलिए गंगा कभी रेत की तरफ और कभी शहर की तरफ शिफ्ट हो जाती है. 10 साल पहले इसका बहाव रामनगर की तरफ ज्यादा था. लेकिन, अब यह शहर की तरफ ज्यादा तेजी से शिफ्ट कर रही है. जब ऐसी रिवर दोनों तरफ बहती है और पानी इसमें बढ़ता है और बाढ़ आ जाती है. पानी के बहाव के पैटर्न के अनुसार भी यह दो हिसाब से बहती है. एक चैनल के मध्य से बहती है और दूसरा बहाव डायरेक्टेड होता है, जिधर की तरफ नदी मुड़ जाती है.

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वाराणसी में गंगा नदी.

यहां यह साफ है कि ऐसी स्थिति में गंगा में जब भी पानी बढ़ता है और बाढ़ आती है तो उसका करंट घाटों की तरफ देखने को मिलता है और उसे काटने का काम करता है. इससे गंगा घाटों के नीचे जमी हुई मिट्टी को काटती है. इस चीज को पहले समझने के अनुसार ही गंगा घाटों का निर्माण किया गया था. क्योंकि, अगर घाट नहीं होते तो अब तक गंगा नदी बनारस को नुकसान पहुंचा चुकी होती. गंगा घाटों ने हमारे शहर के प्रोटेक्शन का काम गंगा के वेग से किया है. लेकिन, गंगा नदी लगातार इसको काटने का काम कर रही है, जिसकी वजह से लगातार गंगा के प्रयासों से अब नीचे की मिट्टी कटने लगी है और घाट बैठना शुरू हो गए हैं.

बालू खनन पर रोक और कछुआ सेंचुरी से हुआ घाटों को नुकसान

वहीं, गंगा नदी पर लगातार रिसर्च करने वाले गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रह चुके प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि इस बात को वे बीते कई सालों से कह रहे हैं कि गंगा नदी के दूसरे छोर पर बालू खनन पर लगी रोक और पूर्व में कछुआ सेंचुरी बनाए जाने के निर्णय ने गंगा घाटों को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया है. कछुआ सेंचुरी बनने की वजह से गंगा घाट पर बालू के बढ़ रहे टीले की वजह से पानी का लोड बढ़ता चला गया. हालांकि, अब इस कछुआ सेंचुरी को हटा दिया गया है. लेकिन, पूर्व की हुई गलतियों ने गंगा के तेज वेग की वजह से घाटों को नुकसान पहुंचा दिया है. घाट खोखले हो चुके हैं, जिसका असर साफ तौर पर देखने को मिल रहा है.

प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि वर्तमान समय में रेत पर टेंट सिटी बसाई जा रही है, जो कुछ समय के लिए ही है. बारिश के पहले इसे हटा दिया जाएगा. लेकिन, गंगा का जो पूर्वी छोर है जहां बालू पैदा होती है और बालू जमा होती है वहां हर साल बालू खनन करना जरूरी है. क्योंकि, बालू बढ़ती जाएगी और गंगा का दबाव उधर से खिसक कर शहर की तरफ आता जाएगा. इससे गंगा घाट लगातार प्रभावित होंगे. इसे लेकर अब तक कोई सर्वे भी नहीं हुआ है, जो निश्चित तौर पर जरूरी है.

प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि गंगा के लगातार घाटों की तरफ आने के कारण गंगा के नीचे की मिट्टी खिसक रही है और वह घाटों को नुकसान पहुंचा रही है. इसलिए जरूरी है कि बालू के खनन पर जोर दिया जाए और हर साल इसे करवाया जाए. क्योंकि, पूर्व में बनाई गई नहर भी गलत स्थान पर बनाई गई थी. इसका खामियाजा भी बनारस के गंगा घाटों को भुगतना पड़ रहा है और अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो आगे आने वाले समय में और स्थिति बिगड़ सकती है.

यह भी पढ़ें: इको टूरिज्म की थीम पर होगा गोरखपुर महोत्सव, वाइल्ड लाइफ पर आधारित फिल्में होंगी मुख्य आकर्षण


वाराणसी के धंसते घाटों पर वैज्ञानिकों की राय

वाराणसी: धर्म और आस्था की नगरी बनारस जिसकी पहचान यहां बहती मां गंगा, बाबा विश्वनाथ, यहां की गलियों और बनारसी साड़ी के साथ बनारसी पान से मानी जाती है. बनारस की अलग-अलग चीजों के अलावा यहां आने वाला हर शख्स बनारस के गंगा घाटों की खूबसूरती में खो जाता है. घाटों पर स्नान, ध्यान और दान पुण्य करते हुए बनारस के घाटों की सुंदरता को निहारना चाहता है. लेकिन, अब इन घाटों पर खतरा मंडरा रहा खतरा है. इन घाटों के बैठने यानी धंसने का. यह वर्तमान परिस्थिति में घाटों की हो रही दुर्दशा खुद बयां कर रही है. इसे लेकर किए गए कई रिसर्च भी यही कह रहे हैं कि काशी के गंगा घाट खतरे में हैं. समय रहते यदि इस पर कार्यवाही नहीं हुई तो निश्चित तौर पर आने वाले वक्त में काशी को बचाने के लिए बनाए गए इन घाटों पर आ रहा संकट गंगा किनारे बसी नगरी काशी के पुराने स्ट्रक्चर पर भी दिखने लगेगा, जो बड़ा संकट है.

दरअसल, 31 दिसंबर 2022 की शाम गंगा आरती के दौरान दशाश्वमेध और शीतला घाट के बीच का स्थान अचानक से बैठ गया. यहां पर घाट धंसने का हल्ला इतना मचा कि चारों तरफ हड़कंप मच गया. घाट के बैठने की सूचना से आला अधिकारियों के साथ कई बड़े नेता भी मौके पर पहुंचे और मौका मुआयना करके इसे ठीक करवाने की कवायद शुरू कर दी गई. लेकिन, क्या इस तरह से अचानक से घाट के धंसने के बाद महज बालू मिट्टी डालकर इसे सही कर देना ही विकल्प माना जा सकता है. शायद नहीं. क्योंकि सिर्फ एक नहीं बल्कि काशी के कई घाटों पर यह खतरा मंडरा रहा है. यह गंगा नदी के एक्सपर्ट और भूगर्भ वैज्ञानिकों का भी मानना है.

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वाराणसी में टेंट सिटी

काशी के गंगा घाटों पर मंडरा रहे इस खतरे को लेकर एक्सपर्ट से उनकी राय जानी गई. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना गंगा शोध संस्थान के चेयरमैन और बीएचयू में प्रोफेसर रहते हुए गंगा पर बड़े-बड़े शोध करने वाले और गंगा के लिए बनाई गई पूर्व में गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रह चुके प्रो. बीडी त्रिपाठी के अलावा भू वैज्ञानिक प्रोफेसर उमाकांत शुक्ला से इस संदर्भ में बातचीत की गई. तकनीकी तौर पर गंगा के साथ जमीन के अंदर चल रही हलचल के बारे में विस्तार से समझने का प्रयास किया. उन्होंने जो बातें बताईं वह निश्चित तौर पर डराने वाली हैं और यह तो साफ है कि अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में काशी के गंगा घाटों पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है.

काशी के घाटों को लेकर वैज्ञानिकों की राय

इस बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर उमाकांत शुक्ला से बातचीत की गई. प्रो उमाकांत शुक्ला लगातार काशी के गंगा घाटों और गंगा को लेकर चल रही हलचल पर रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बनारस में गंगा उत्तरवाहिनी हैं. इसके पीछे बड़ा कारण है कि गंगा इस क्षेत्र में एक बड़े फॉल्ट से होकर गुजर रही है. फॉल्ट यानी कि अपभ्रंश जो कि एक वीक जोन होता है और जब उसके समकक्ष एक्टिविटी होती है तो भूकंप जैसी स्थिति भी बनती है. जो पिछल कई बार आ भी चुके हैं. लेकिन, जहां तक घाटों के बैठने या धंसने की बात है, वह अपने आप में महत्वपूर्ण है.

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वाराणसी के घाट

उसे समझना जरूरी है. क्योंकि यहां गंगा उत्तरवाहिनी हैं और उसके दो रूप यहां देखे जाते हैं. एक तो वह जो अलग पैटर्न पर बहती है. इसमें बनारस की तरफ उसका एक साइड है और रामनगर की तरफ उसका दूसरा साइड है. एक तरफ यह बालू छोड़ती है, जिस पर टेंट सिटी बसाई गई है और दूसरे छोर पर यह काटने की कोशिश करती है, जो शहरी क्षेत्र है. क्योंकि, गंगा इस क्षेत्र में इसे काटते हुए बह रही है. इसलिए इसका दूसरा छोर बहुत ही संकुचित है और यह अपने दूसरे स्तर को भी छोड़ नहीं सकती है. इसलिए यह समय समय पर शिफ्ट होती रहती है.

प्रो. शुक्ला का कहना है कि इसलिए गंगा कभी रेत की तरफ और कभी शहर की तरफ शिफ्ट हो जाती है. 10 साल पहले इसका बहाव रामनगर की तरफ ज्यादा था. लेकिन, अब यह शहर की तरफ ज्यादा तेजी से शिफ्ट कर रही है. जब ऐसी रिवर दोनों तरफ बहती है और पानी इसमें बढ़ता है और बाढ़ आ जाती है. पानी के बहाव के पैटर्न के अनुसार भी यह दो हिसाब से बहती है. एक चैनल के मध्य से बहती है और दूसरा बहाव डायरेक्टेड होता है, जिधर की तरफ नदी मुड़ जाती है.

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वाराणसी में गंगा नदी.

यहां यह साफ है कि ऐसी स्थिति में गंगा में जब भी पानी बढ़ता है और बाढ़ आती है तो उसका करंट घाटों की तरफ देखने को मिलता है और उसे काटने का काम करता है. इससे गंगा घाटों के नीचे जमी हुई मिट्टी को काटती है. इस चीज को पहले समझने के अनुसार ही गंगा घाटों का निर्माण किया गया था. क्योंकि, अगर घाट नहीं होते तो अब तक गंगा नदी बनारस को नुकसान पहुंचा चुकी होती. गंगा घाटों ने हमारे शहर के प्रोटेक्शन का काम गंगा के वेग से किया है. लेकिन, गंगा नदी लगातार इसको काटने का काम कर रही है, जिसकी वजह से लगातार गंगा के प्रयासों से अब नीचे की मिट्टी कटने लगी है और घाट बैठना शुरू हो गए हैं.

बालू खनन पर रोक और कछुआ सेंचुरी से हुआ घाटों को नुकसान

वहीं, गंगा नदी पर लगातार रिसर्च करने वाले गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रह चुके प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि इस बात को वे बीते कई सालों से कह रहे हैं कि गंगा नदी के दूसरे छोर पर बालू खनन पर लगी रोक और पूर्व में कछुआ सेंचुरी बनाए जाने के निर्णय ने गंगा घाटों को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया है. कछुआ सेंचुरी बनने की वजह से गंगा घाट पर बालू के बढ़ रहे टीले की वजह से पानी का लोड बढ़ता चला गया. हालांकि, अब इस कछुआ सेंचुरी को हटा दिया गया है. लेकिन, पूर्व की हुई गलतियों ने गंगा के तेज वेग की वजह से घाटों को नुकसान पहुंचा दिया है. घाट खोखले हो चुके हैं, जिसका असर साफ तौर पर देखने को मिल रहा है.

प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि वर्तमान समय में रेत पर टेंट सिटी बसाई जा रही है, जो कुछ समय के लिए ही है. बारिश के पहले इसे हटा दिया जाएगा. लेकिन, गंगा का जो पूर्वी छोर है जहां बालू पैदा होती है और बालू जमा होती है वहां हर साल बालू खनन करना जरूरी है. क्योंकि, बालू बढ़ती जाएगी और गंगा का दबाव उधर से खिसक कर शहर की तरफ आता जाएगा. इससे गंगा घाट लगातार प्रभावित होंगे. इसे लेकर अब तक कोई सर्वे भी नहीं हुआ है, जो निश्चित तौर पर जरूरी है.

प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि गंगा के लगातार घाटों की तरफ आने के कारण गंगा के नीचे की मिट्टी खिसक रही है और वह घाटों को नुकसान पहुंचा रही है. इसलिए जरूरी है कि बालू के खनन पर जोर दिया जाए और हर साल इसे करवाया जाए. क्योंकि, पूर्व में बनाई गई नहर भी गलत स्थान पर बनाई गई थी. इसका खामियाजा भी बनारस के गंगा घाटों को भुगतना पड़ रहा है और अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो आगे आने वाले समय में और स्थिति बिगड़ सकती है.

यह भी पढ़ें: इको टूरिज्म की थीम पर होगा गोरखपुर महोत्सव, वाइल्ड लाइफ पर आधारित फिल्में होंगी मुख्य आकर्षण


Last Updated : Jan 10, 2023, 2:12 PM IST
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