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BHU में हिंदी भाषी अभ्यर्थियों से भेदभाव, हिंदी बोलते ही इंटरव्यू से किया बाहर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए चल रही नियुक्ति प्रक्रिया में एक बार फिर हिंदी भाषी अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव का मुद्दा उठा है. एक अभ्यर्थी ने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मानव संसाधन विकास मंत्री को इसके खिलाफ पत्र लिखा है.

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बीएचयू में हिंदी भाषी अभ्यर्थियों संग भेदभाव.
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Published : Jan 5, 2020, 12:29 PM IST

Updated : Jan 5, 2020, 12:53 PM IST

वाराणसी: बीएचयू से विवादों का नाता खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अभी असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान का मामला शांत हुआ है कि एक नया मामला सामने आ गया. वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के इंटरव्यू में हिंदी भाषी अभ्यर्थियों से भेदभाव का आरोप लगा है. होलकर भवन में प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति और पुरातत्व विभाग में सहायक प्रोफेसर पद का साक्षात्कार हुआ था.

बीएचयू में हिंदी भाषी अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव.
  • इंटरव्यू में शामिल हुए अभ्यर्थी डॉ. करण कुमार ने आरोप लगाते हुए कहा कि हिंदी भाषी अभ्यर्थियों का साक्षात्कार 3 से 4 मिनट में ही खत्म कर दिया जा रहा था.
  • जिसकी शिकायत अभ्यर्थी ने मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से किया है.
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 अभिव्यक्ति की आजादी के तहत अधिकार देता है कि वह किसी भी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर सकते हैं.
  • यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्टिकल-2 में स्पष्ट उल्लेख है कि किसी भी व्यक्ति को भाषा, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता.
  • इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन के कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं हैं.

अभ्यर्थी डॉ. कर्ण कुमार ने बताया कि बीएचयू के होलकर भवन में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृत व पुरातत्व विभाग में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति चल रही थी. जब मैं वहां पहुंचा तो अभ्यर्थियों ने कहा कि जो भी अभ्यर्थी हिंदी भाषा में इंटरव्यू दे रहा है, कुलपति उसे यू कैन गो कह कर बाहर निकाल देते हैं. उस अभ्यर्थी के अपमान के साथ हिंदी राजभाषा का भी अपमान कर रहे हैं. जब मैं साक्षात्कार कक्ष में पहुंचा तो उन्होंने मेरा इंट्रोडक्शन एक्सपोर्ट के साथ कराया. उन्होंने कहा कि अपने कार्यों का उल्लेख करिए जैसे ही मैं अपने कार्यों का उल्लेख हिंदी में करना शुरू किया तो उन्होंने मुझे रोक दिया और कहा कि हमें इंस्टिट्यूट ऑफ इमिनेन्स का दर्जा प्राप्त है.

इसे भी पढ़ें- वाराणसी में भूमिहार महिला समाज ने आयोजित किया रंगारंग कार्यक्रम, दिया महिलाओं को संदेश

कुलपति महोदय ने कहा कि हिंदी भाषी अभ्यर्थियों की कोई जरूरत नहीं है. जब हमने इस बात पर आपत्ति जताई तो उन्होंने कहा कि हम विदेशों से शिक्षक मंगा लेंगे. हमें कोई आवश्यकता नहीं है कि हम हिंदी भाषी का यहां पर साक्षात्कार करवाएं. इस संदर्भ में हमने इसके खिलाफ प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,मानव संसाधन विकास मंत्री को इसके खिलाफ पत्र लिखा है.
-डॉ कर्ण कुमार, अभ्यर्थी

वाराणसी: बीएचयू से विवादों का नाता खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अभी असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान का मामला शांत हुआ है कि एक नया मामला सामने आ गया. वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के इंटरव्यू में हिंदी भाषी अभ्यर्थियों से भेदभाव का आरोप लगा है. होलकर भवन में प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति और पुरातत्व विभाग में सहायक प्रोफेसर पद का साक्षात्कार हुआ था.

बीएचयू में हिंदी भाषी अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव.
  • इंटरव्यू में शामिल हुए अभ्यर्थी डॉ. करण कुमार ने आरोप लगाते हुए कहा कि हिंदी भाषी अभ्यर्थियों का साक्षात्कार 3 से 4 मिनट में ही खत्म कर दिया जा रहा था.
  • जिसकी शिकायत अभ्यर्थी ने मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से किया है.
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 अभिव्यक्ति की आजादी के तहत अधिकार देता है कि वह किसी भी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर सकते हैं.
  • यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्टिकल-2 में स्पष्ट उल्लेख है कि किसी भी व्यक्ति को भाषा, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता.
  • इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन के कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं हैं.

अभ्यर्थी डॉ. कर्ण कुमार ने बताया कि बीएचयू के होलकर भवन में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृत व पुरातत्व विभाग में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति चल रही थी. जब मैं वहां पहुंचा तो अभ्यर्थियों ने कहा कि जो भी अभ्यर्थी हिंदी भाषा में इंटरव्यू दे रहा है, कुलपति उसे यू कैन गो कह कर बाहर निकाल देते हैं. उस अभ्यर्थी के अपमान के साथ हिंदी राजभाषा का भी अपमान कर रहे हैं. जब मैं साक्षात्कार कक्ष में पहुंचा तो उन्होंने मेरा इंट्रोडक्शन एक्सपोर्ट के साथ कराया. उन्होंने कहा कि अपने कार्यों का उल्लेख करिए जैसे ही मैं अपने कार्यों का उल्लेख हिंदी में करना शुरू किया तो उन्होंने मुझे रोक दिया और कहा कि हमें इंस्टिट्यूट ऑफ इमिनेन्स का दर्जा प्राप्त है.

इसे भी पढ़ें- वाराणसी में भूमिहार महिला समाज ने आयोजित किया रंगारंग कार्यक्रम, दिया महिलाओं को संदेश

कुलपति महोदय ने कहा कि हिंदी भाषी अभ्यर्थियों की कोई जरूरत नहीं है. जब हमने इस बात पर आपत्ति जताई तो उन्होंने कहा कि हम विदेशों से शिक्षक मंगा लेंगे. हमें कोई आवश्यकता नहीं है कि हम हिंदी भाषी का यहां पर साक्षात्कार करवाएं. इस संदर्भ में हमने इसके खिलाफ प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,मानव संसाधन विकास मंत्री को इसके खिलाफ पत्र लिखा है.
-डॉ कर्ण कुमार, अभ्यर्थी

Intro:
एक्सक्यूजीव

बीएचयू से विवादों का नाता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है अभी असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान का मामला शांत हुआ है एक नया मामला सामने आ गया ।वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के इंटरव्यू में हिंदीभाषी अभ्यर्थियों से भेदभाव का आरोप लगा। होलकर भवन में प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति व पुरातत्व विभाग में सहायक प्रोफेसर पद के साक्षात्कार हुए।


Body:इंटरव्यू में शामिल हुए अभ्यर्थी डॉक्टर करण कुमार ने आरोप लगाते हुए कहा हिंदी भाषी अभ्यर्थियों का साक्षात्कार 3 से 4 मिनट में ही खत्म कर दिया जा रहा था। जिसकी शिकायत अभ्यर्थी ने मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से किया है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की आजादी के तहत अधिकार देता है कि वह किसी भी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर सकते हैं। यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्टिकल 2 में स्पष्ट उल्लेख है कि किसी भी व्यक्ति को भाषा धर्म लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन कोई भी बोलने को तैयार नहीं।


Conclusion:डॉ कर्ण कुमार ने बताया बीएचयू के होलकर भवन में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृत व पुरातत्व विभाग में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति चल रही थी। जब मैं वहां पहुंचा तो अभ्यर्थियों ने कहा कि जो भी अभ्यर्थी हिंदी भाषा में इंटरव्यू दे रहा है।कुलपति महोदय उसे यू कैन गो का कर बाहर निकाल देते हैं। उस अभ्यर्थी के अपमान के साथ हिंदी राजभाषा का भी अपमान कर रहे हैं। जब मैं साक्षात्कार कक्ष में पहुंचा तो उन्होंने मेरा इंट्रोडक्शन एक्सपोर्ट के साथ कराया। उन्होंने कहा अपने कार्यों का उल्लेख करिए जैसे ही मैं अपने कार्यों का उल्लेख हिंदी में करना शुरू किया। उन्होंने मुझे रोक दिया और कहा हमें इंस्टिट्यूट ऑफ इमिनेन्स का दर्जा प्राप्त है। हमें हिंदी भाषी अभ्यर्थियों की कोई जरूरत नहीं है। जब हमने इस बात पर आपत्ति जताई तो उन्होंने कहा हम विदेशों से शिक्षक मंगा लेंगे। हमें कोई आवश्यकता नहीं है कि हम हिंदी भाषी का यहां पर साक्षात्कार करवाएं। इस संदर्भ में हमने इसके खिलाफ प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,मानव संसाधन विकास मंत्री को इसके खिलाफ पत्र लिखा है।

बाईट :-- डॉ कर्ण कुमार, अभ्यर्थी

आशुतोष उपाध्याय
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Last Updated : Jan 5, 2020, 12:53 PM IST
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