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रथयात्रा मेले में बिक रही अलग-अलग किस्मों की नानखटाई, जानिए महत्व

वाराणसी की नानखटाई देश ही नहीं विदेशों तक प्रसिद्ध है. वाराणसी में रथयात्रा मेले में नानखटाई का भगवान जगनन्नाथ को भोग लगाया जाता है. इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है. जानिए नानखटाई की कीमत कम से कम और ज्यादा से ज्यादा कितनी है. साथ ही नानखटाई की और क्या खासियत है ये भी पढ़िए.

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Published : Jun 22, 2023, 10:39 AM IST

वाराणसी में रथयात्रा मेले में नानखटाई का महत्व
वाराणसी में रथयात्रा मेले में नानखटाई का महत्व
वाराणसी में रथयात्रा मेले में नानखटाई का महत्व

वाराणसी: ओडिशा के पुरी की तर्ज पर धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में भी हर वर्ष भगवान जगनन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. इस रथ यात्रा का आयोजन 3 दिनों तक होता है. वाराणसी के रथयात्रा क्षेत्र में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस मेले में हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं. वहीं, प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी 3 दिवसीय रथयात्रा मेले की शुरुआत 20 जून से हो गई है.

वहीं काशी में भगवान जगन्नाथ यात्रा के इस कार्यक्रम का इतिहास वर्षों पुराना है. भगवान जगन्नाथ की यात्रा के साथ एक बड़े मेले का आयोजन भी किया जाता है. इस मेले में बनारस की प्रसिद्ध नानखटाई की बिक्री बढ़ जाती है. मेले का समय नजदीक आते ही दुकानदार सड़क के किनारे बड़े-बड़े स्टॉल लगाते हैं. रथयात्रा मेले में नानखटाई का भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाता है. इसलिए भी रथयात्रा मेले में नानखटाई का महत्व बढ़ जाता है और बड़ी संख्या में लोग नानखटाई खरीदते हैं.

वहीं अगर यह कहा जाए कि पुराने समय की एक ऐसी चीज, जिसका स्वाद समय के साथ बदल कर और स्वादिष्ट हो गया है तो वह नानखटाई है. इसकी खासियत है कि इसे मुंह में रखते ही ये घुल जाती है. रथयात्रा मेले में श्रद्धालु व पर्यटक नानखटाई को खरीदते हैं. नानखटाई की अलग-अलग किस्मे हैं. जैसे देसी घी में नारियल केसर की नानखटाई, देसी घी में नारियल वनीला की नानखटाई, देसी घी में नारियल काजू की नानखटाई, काजू केसर की नानखटाई, देसी घी में काजू चॉकलेट की नानखटाई, पंचमेवा केसर नानखटाई समेत अन्य किस्म की नानखटाई रथयात्रा मेले में बिकती हैं.

दुकानदार तुषार जायसवाल ने बताया कि नानखटाई भगवान जगन्नाथ जी का प्रसाद है. इसका भोग लगता है. नानखटाई अलग-अलग फ्लेवर की हैं. इसमें काजू, मेवा, केसर, सूजी, नारियल, बेसन की नानखटाई समेत कई तरह की नानखटाई हैं. इसकी कीमत 160 रुपये किलो से लेकर 680 रुपये किलो तक है. इससे भी ज़्यादा 800 रुपये किलो की भी नानखटाई है. वहीं, वे कहते हैं कि उनके पास सबसे ज़्यादा कीमत वाली पंचमेवे की नानखटाई 680 रुपये प्रति किलो है. काशी की नानखटाई कोलकाता और मुंबई तक जाती है.

दुकानदार सुनील कुमार गुप्ता का कहना है कि यहां की नानखटाई बहुत प्रसिद्ध है. भगवान जगन्नाथ को पहला भोग नानखटाई से ही लगता है. वे कहते हैं कि उनके पास अलग-अलग किस्मों की नानखटाई है. इसकी कीमत 160 रुपये किलो से लेकर 800 रुपये किलो है. जैसी नानखटाई वैसा उसका दाम है. वहीं, रथयात्रा मेले में आईं महिला श्रद्धालु कंचन पाण्डेय ने कहा कि नानखटाई बहुत दिनों से हम लोग खा रहे हैं. मेले की यह सबसे प्रमुख चीज है. इसे हम लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. यह एक तरह से प्रसाद है. इसे हम लोग घर ले जाते हैं. मार्केट में तरह-तरह की नानखटाई हैं. जिसे जो पसंद होता है, वह ले रहा है और खा रहा है.

यह भी पढ़ें: रथ पर सवार होकर काशी में निकले भगवान जगन्नाथ, 3 दिन लोगों को होंगे दर्शन

वाराणसी में रथयात्रा मेले में नानखटाई का महत्व

वाराणसी: ओडिशा के पुरी की तर्ज पर धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में भी हर वर्ष भगवान जगनन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है. इस रथ यात्रा का आयोजन 3 दिनों तक होता है. वाराणसी के रथयात्रा क्षेत्र में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस मेले में हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं. वहीं, प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी 3 दिवसीय रथयात्रा मेले की शुरुआत 20 जून से हो गई है.

वहीं काशी में भगवान जगन्नाथ यात्रा के इस कार्यक्रम का इतिहास वर्षों पुराना है. भगवान जगन्नाथ की यात्रा के साथ एक बड़े मेले का आयोजन भी किया जाता है. इस मेले में बनारस की प्रसिद्ध नानखटाई की बिक्री बढ़ जाती है. मेले का समय नजदीक आते ही दुकानदार सड़क के किनारे बड़े-बड़े स्टॉल लगाते हैं. रथयात्रा मेले में नानखटाई का भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाता है. इसलिए भी रथयात्रा मेले में नानखटाई का महत्व बढ़ जाता है और बड़ी संख्या में लोग नानखटाई खरीदते हैं.

वहीं अगर यह कहा जाए कि पुराने समय की एक ऐसी चीज, जिसका स्वाद समय के साथ बदल कर और स्वादिष्ट हो गया है तो वह नानखटाई है. इसकी खासियत है कि इसे मुंह में रखते ही ये घुल जाती है. रथयात्रा मेले में श्रद्धालु व पर्यटक नानखटाई को खरीदते हैं. नानखटाई की अलग-अलग किस्मे हैं. जैसे देसी घी में नारियल केसर की नानखटाई, देसी घी में नारियल वनीला की नानखटाई, देसी घी में नारियल काजू की नानखटाई, काजू केसर की नानखटाई, देसी घी में काजू चॉकलेट की नानखटाई, पंचमेवा केसर नानखटाई समेत अन्य किस्म की नानखटाई रथयात्रा मेले में बिकती हैं.

दुकानदार तुषार जायसवाल ने बताया कि नानखटाई भगवान जगन्नाथ जी का प्रसाद है. इसका भोग लगता है. नानखटाई अलग-अलग फ्लेवर की हैं. इसमें काजू, मेवा, केसर, सूजी, नारियल, बेसन की नानखटाई समेत कई तरह की नानखटाई हैं. इसकी कीमत 160 रुपये किलो से लेकर 680 रुपये किलो तक है. इससे भी ज़्यादा 800 रुपये किलो की भी नानखटाई है. वहीं, वे कहते हैं कि उनके पास सबसे ज़्यादा कीमत वाली पंचमेवे की नानखटाई 680 रुपये प्रति किलो है. काशी की नानखटाई कोलकाता और मुंबई तक जाती है.

दुकानदार सुनील कुमार गुप्ता का कहना है कि यहां की नानखटाई बहुत प्रसिद्ध है. भगवान जगन्नाथ को पहला भोग नानखटाई से ही लगता है. वे कहते हैं कि उनके पास अलग-अलग किस्मों की नानखटाई है. इसकी कीमत 160 रुपये किलो से लेकर 800 रुपये किलो है. जैसी नानखटाई वैसा उसका दाम है. वहीं, रथयात्रा मेले में आईं महिला श्रद्धालु कंचन पाण्डेय ने कहा कि नानखटाई बहुत दिनों से हम लोग खा रहे हैं. मेले की यह सबसे प्रमुख चीज है. इसे हम लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. यह एक तरह से प्रसाद है. इसे हम लोग घर ले जाते हैं. मार्केट में तरह-तरह की नानखटाई हैं. जिसे जो पसंद होता है, वह ले रहा है और खा रहा है.

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