वाराणसी: स्वयं में न जाने कितने रहस्यों को समेटकर रखने वाली अद्भुत नगरी काशी, जहां पर हर त्योहार पर एक अलग ही कहानी और कथाएं सुनने को मिल जाएंगी. जब मौका प्रकाश पर्व दीपावली का हो और लक्ष्मी आगमन के लिए धनतेरस के पावन पर्व की तैयारियां चल रही हों तो हम आपको इस खास दिन पड़ने वाली धनवंतरी जयंती के बारे में ऐसी कथा बताने जा रहे हैं जो धरती पर मां गंगा के अवतरण के पहले से आज तक न जाने कितने लोगों को फायदा पहुंचा चुकी है. इस कथा के मुताबिक बनारस के महामृत्युंजय मंदिर परिसर में स्थित धनवंतरी कुछ लोगों को आज भी स्वास्थ्य और सौभाग्य का आशीर्वाद दे रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि महज इस स्थान का पानी पीने मात्र से शरीर में व्याप्त समस्त रोगों का नाश होता है. क्या है इस धनवंतरी की कहानी और यह बनारस में इतना खास क्यों है, जानिए धनतेरस पर इस खास स्टोरी में...
धनतेरस पर मनाई जाती है धनवंतरी जयंती
धनतेरस पर भले ही धन की देवी लक्ष्मी और कुबेर जी के पूजन का विधान होता हो लेकिन, यह दिन भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में भी जाना जाता है. भगवान धनवंतरी यानि देवताओं के वैद्य. ऐसी मान्यता है कि देवताओं के वैद्य भगवान धनवंतरी ने काशी में धनतेरस के दिन ही महामृत्युंजय मंदिर में स्थापित कुएं में अपनी समस्त औषधियों को डाल दिया था. लोगों के हितार्थ भगवान धनवंतरी के द्वारा यह प्रयास हर किसी को स्वस्थ रखने के उद्देश्य से किया गया था. सबसे बड़ी बात यह है कि धरती पर इस कुएं की मौजूदगी मां गंगा के पृथ्वी पर आने से पहले बताई जाती है. एक किंवदंति के अनुसार भगवान धनवंतरी काशी राज्य के रूप में पूजे जाते हैं. काशी के राजपरिवार में उनको पुत्र के रूप में मान्यता मिली है.
8 घाट में 8 स्वाद का पानी
जानकार बताते हैं कि अवंत पुरी स्थित काशी का यह कुआं अपने आप में बेहद खास है. इसकी बड़ी वजह यह है कि इसमें 8 घाट हैं और प्रत्येक घाट से निकलने वाले पानी का स्वाद अलग है. आज भी अलग-अलग घाट से आने वाले पानी के अलग स्वाद से आपके शरीर में व्याप्त रोगों का नाश होता है.
41 दिनों तक नियमित पानी से मिलेगी रोगों से मुक्ति
सबसे बड़ी बात यह है कि पेट में मौजूद किसी भी तरह के रोग से मुक्ति पाने के लिए यदि 41 दिनों तक नियमित रूप से सुबह सूर्य उदय के समय इस जल का सेवन किया जाए तो पेट में व्याप्त सभी बीमारियों का नाश हो जाता है. मंदिर में आने वाले भक्त दर्शन पूजन के बाद इस स्थान पर पहुंचकर इस कुएं का पानी आज भी पीते हैं. धनतेरस के पहले न जाने कहां-कहां से लोग इस पानी को अपने घरों तक मंगवाते हैं. यहां आने वाले लोगों का कहना है कि दक्षिण भारत से लेकर महाराष्ट्र और देश के अलग-अलग कोने से बड़ी संख्या में लोग सिर्फ इस कुएं का पानी पीने के लिए पहुंचते हैं. इतना ही नहीं इस कुएं के पानी से नहाने के बाद शरीर में व्याप्त चर्म रोग की बीमारियों से भी निजात मिलती है. इसलिए इस कुएं को अमृत कूप के नाम से भी जाना जाता है. महामृत्युंजय परिसर मंदिर में स्थापित इस कुएं की प्राचीन मान्यता है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान धनवंतरी ने यहां कई वर्षों तक तपस्या की और यहां से देवलोक जाते समय अपनी सारी औषधि की पोटली इसी कुएं में डाल दी थी. जिसके बाद इसका पानी औषधीय युक्त हो गया. आज भी इन औषधियों का फायदा लोगों को मिलता है.