वाराणसी: धर्मनगरी काशी में यूं तो हर त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन देव दीपावली ऐसा महापर्व है, जिसका इंतजार काशी ही नहीं बल्कि देश और दुनिया के लोग साल भर करते हैं. देव दीपावली का महापर्व कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है.
इस दिन की है पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध किया था. त्रिपुरासुर के वध और भगवान शिव की इस जीत को सभी देवताओं ने शिव की नगरी काशी में दीप जलाकर जाहिर किया, जिसे देवताओं की दिवाली के रूप में जाना जाता है. तब से लेकर यह परंपरा अनवरत निभाई जा रही है.
शहीदों को समर्पित होती है देव दीपावली की शाम
गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्रा ने बताया कि1999 के करगिल युद्ध के बाद से गंगा सेवा निधि की तरफ से हर वर्ष देव दीपावली की शाम शहीदों को समर्पित होती है. इस अवसर पर सेना के शहीद जवानों के परिवारों को सम्मानित किया जाता है.
स्वर्ग जैसे प्रतीत होते हैं काशी के घाट
काशी के घाट इस अवसर पर ऐसे नजर आते हैं मानों धरती पर चांद-सितारे उतर आए हों. लाखों दीयों की टिमटिमाहट के बीच अलौकिक रोशनी से नहाए यह घाट स्वर्ग जैसे प्रतीत होते हैं.
कड़ी सुरक्षा के बीच जलेंगे दीप
एडीएम सिटी विनय कुमार सिंह ने बताया कि देव दीपावली पर हर साल भारी भीड़ घाटों पर उमड़ पड़ती है, जिसकी वजह से प्रशासनिक स्तर पर क्राउड मैनेजमेंट की तैयारी पहले से ही शुरू कर दी जाती है.
लाखों की संख्या में उमड़ते हैं पर्यटक
इस महापर्व का पौराणिक महत्व तो है ही, लेकिन बदलते दौर के साथ इसका रूप इतना बड़ा हो चुका है कि अब लाखों की संख्या में पर्यटक देव दीपावली पर घाटों पर जलने वाले दीयों की एक झलक पाने के लिए यहां पहुंचते हैं. इसी वजह से काशी में सारे होटेल पहले से ही बुक हो जाते हैं. यही नहीं देव दीपावली की अद्भुत झलक पाने और गंगा में विचरण करने के लिए सभी नावों की भी एडवांस बुकिंग हो जाती है.