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देव दीपावली: जब उतरेगा देवलोक तो कुछ यूं दिखेगी काशी

शिव की नगरी काशी में कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली का महापर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध किया था. त्रिपुरासुर के वध पर सभी देवताओं ने काशी में दीप जलाए थे. तब से लेकर यह परंपरा अनवरत निभाई जा रही है.

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Published : Nov 11, 2019, 9:30 AM IST

काशी में उतरेगा देवलोक.

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में यूं तो हर त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन देव दीपावली ऐसा महापर्व है, जिसका इंतजार काशी ही नहीं बल्कि देश और दुनिया के लोग साल भर करते हैं. देव दीपावली का महापर्व कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है.

देखें वीडियो.

इस दिन की है पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध किया था. त्रिपुरासुर के वध और भगवान शिव की इस जीत को सभी देवताओं ने शिव की नगरी काशी में दीप जलाकर जाहिर किया, जिसे देवताओं की दिवाली के रूप में जाना जाता है. तब से लेकर यह परंपरा अनवरत निभाई जा रही है.

शहीदों को समर्पित होती है देव दीपावली की शाम
गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्रा ने बताया कि1999 के करगिल युद्ध के बाद से गंगा सेवा निधि की तरफ से हर वर्ष देव दीपावली की शाम शहीदों को समर्पित होती है. इस अवसर पर सेना के शहीद जवानों के परिवारों को सम्मानित किया जाता है.

स्वर्ग जैसे प्रतीत होते हैं काशी के घाट
काशी के घाट इस अवसर पर ऐसे नजर आते हैं मानों धरती पर चांद-सितारे उतर आए हों. लाखों दीयों की टिमटिमाहट के बीच अलौकिक रोशनी से नहाए यह घाट स्वर्ग जैसे प्रतीत होते हैं.

कड़ी सुरक्षा के बीच जलेंगे दीप
एडीएम सिटी विनय कुमार सिंह ने बताया कि देव दीपावली पर हर साल भारी भीड़ घाटों पर उमड़ पड़ती है, जिसकी वजह से प्रशासनिक स्तर पर क्राउड मैनेजमेंट की तैयारी पहले से ही शुरू कर दी जाती है.

लाखों की संख्या में उमड़ते हैं पर्यटक
इस महापर्व का पौराणिक महत्व तो है ही, लेकिन बदलते दौर के साथ इसका रूप इतना बड़ा हो चुका है कि अब लाखों की संख्या में पर्यटक देव दीपावली पर घाटों पर जलने वाले दीयों की एक झलक पाने के लिए यहां पहुंचते हैं. इसी वजह से काशी में सारे होटेल पहले से ही बुक हो जाते हैं. यही नहीं देव दीपावली की अद्भुत झलक पाने और गंगा में विचरण करने के लिए सभी नावों की भी एडवांस बुकिंग हो जाती है.

वाराणसी: धर्मनगरी काशी में यूं तो हर त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन देव दीपावली ऐसा महापर्व है, जिसका इंतजार काशी ही नहीं बल्कि देश और दुनिया के लोग साल भर करते हैं. देव दीपावली का महापर्व कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है.

देखें वीडियो.

इस दिन की है पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध किया था. त्रिपुरासुर के वध और भगवान शिव की इस जीत को सभी देवताओं ने शिव की नगरी काशी में दीप जलाकर जाहिर किया, जिसे देवताओं की दिवाली के रूप में जाना जाता है. तब से लेकर यह परंपरा अनवरत निभाई जा रही है.

शहीदों को समर्पित होती है देव दीपावली की शाम
गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्रा ने बताया कि1999 के करगिल युद्ध के बाद से गंगा सेवा निधि की तरफ से हर वर्ष देव दीपावली की शाम शहीदों को समर्पित होती है. इस अवसर पर सेना के शहीद जवानों के परिवारों को सम्मानित किया जाता है.

स्वर्ग जैसे प्रतीत होते हैं काशी के घाट
काशी के घाट इस अवसर पर ऐसे नजर आते हैं मानों धरती पर चांद-सितारे उतर आए हों. लाखों दीयों की टिमटिमाहट के बीच अलौकिक रोशनी से नहाए यह घाट स्वर्ग जैसे प्रतीत होते हैं.

कड़ी सुरक्षा के बीच जलेंगे दीप
एडीएम सिटी विनय कुमार सिंह ने बताया कि देव दीपावली पर हर साल भारी भीड़ घाटों पर उमड़ पड़ती है, जिसकी वजह से प्रशासनिक स्तर पर क्राउड मैनेजमेंट की तैयारी पहले से ही शुरू कर दी जाती है.

लाखों की संख्या में उमड़ते हैं पर्यटक
इस महापर्व का पौराणिक महत्व तो है ही, लेकिन बदलते दौर के साथ इसका रूप इतना बड़ा हो चुका है कि अब लाखों की संख्या में पर्यटक देव दीपावली पर घाटों पर जलने वाले दीयों की एक झलक पाने के लिए यहां पहुंचते हैं. इसी वजह से काशी में सारे होटेल पहले से ही बुक हो जाते हैं. यही नहीं देव दीपावली की अद्भुत झलक पाने और गंगा में विचरण करने के लिए सभी नावों की भी एडवांस बुकिंग हो जाती है.

Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: धर्मनगरी वाराणसी में वैसे तो हर त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन एक ऐसा महापर्व है, जिसका इंतजार काशी ही नहीं बल्कि काशी के बाहर देश और दुनिया के कोने कोने में रहने वाले लोग करते हैं. यह महापर्व है देव दीपावली का कार्तिक पूर्णिमा को पढ़ने वाले इस महापर्व का पौराणिक महत्व तो है ही लेकिन बदलते दौर के साथ इसका रूप इतना बड़ा हो चुका है कि अब लाखों की संख्या में पर्यटक देव दीपावली पर घाटों पर जलने वाले दीयों की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. जिसकी वजह से काशी में अब अगर आप देव दीपावली का आनंद लेने जाना चाह रहे हैं तो मत जाइए क्योंकि अब ना यहां पर आपको कहीं होटल में कमरा मिलेगा और ना ही देव दीपावली की अद्भुत झलक देखने के लिए गंगा में घूमने और विचरण करने के लिए कोई नाव या बड़ा बजड़ा बुक हो सकेगा क्योंकि देव दीपावली से पहले ही इन सब की एडवांस बुकिंग हो चुकी है.


Body:वीओ-02 दरअसल वाराणसी में मनाए जाने वाले इस महापर्व को भगवान शंकर कि उस जीत की खुशी में मनाया जाता है जिसे देवता खुद काशी में उतर कर घाटों पर दीए जलाकर मनाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाए जाने की बड़ी वजह यह है की महादेव ने इस दिन है असुर त्रिपुरासुर का वध किया था. त्रिपुरासुर के आतंक से देवता तरफ से और उसके वध के बाद शिव की नगरी काशी में देवताओं ने पहुंचकर घाटों पर दीए जलाकर देव दीपावली मनाई थी. जिसे देवताओं की दिवाली के रूप में जाना जाता है. तभी से यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है और काशी के घाट इस खास दिन पर रात के वक्त ऐसे नजर आते हैं जैसे धरती पर चांद सितारे उतर आए हैं लाखों दीयों के टिमटिम आहट के बीच अलौकिक रोशनी से नहाए घाट स्वर्ग जैसा आनंद यहां मौजूद लोगों को देते हैं. इसका दिल पर वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली नियमित गंगा आरती भी महाआरती के रूप में होती है आम दिनों में यहां 7 अर्चक मां गंगा की आरती करते हैं, लेकिन देव दीपावली वाले दिन 21 पंडितों के साथ 42 कन्याएं रिद्धि सिद्धि के रूप में इस महा आरती में मौजूद होती हैं. इसके साथ ही इंडिया गेट की भव्य अनुकृति भी बनाई जाती है जहां अमर जवान ज्योति का प्रतिरूप रखकर तीनों सेनाओं के अधिकारी यहां पहुंचकर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि भी देते हैं.

बाईट- सुशांत मिश्रा, अध्यक्ष गंगा सेवा निधि


Conclusion:वीओ-02 देव दीपावली पर हर साल लाखों की भीड़ वाराणसी में होती है जिसकी वजह से प्रशासनिक स्तर पर क्राउड मैनेजमेंट की तैयारी पहले से ही शुरू कर दी जाती है. किस घाट पर कितने लोगों की भीड़ के बाद वहां पर रास्ता बंद करना है. किन गलियों से जाना है और कहां से नहीं पार्किंग कहां होगी और सुरक्षा व्यवस्था पानी से लेकर जमीन तक कैसी होगी इन सब की तैयारी भी प्रशासन ने कर ली है. वहीं देव दीपावली से पहले ही बनारस के सभी होटल और बजड़े के साथ छोटी नावे बुक हो चुकी हैं. हालात यह हैं कि बनारस में मौजूद सबसे बड़ा बड़ा 5 लाख रुपए की कीमत में बुक किया गया है. इसके अलावा छोटी नावों के लिए जो आम दिनों में 15 सौ से 2000 में बुक होती थी उनके लिए 10,000 से 50 हजार रुपये तक के पेमेंट देकर लोगों ने इन्हें एडवांस बुक करा रखा है. यानी अब यहां कमरा मिलेगा और ना ही ना हो और कोई बड़ा क्योंकि सब बुक हो चुका है.

बाईट- विनय कुमार सिंह, एडीएम सिटी
बाईट- अवनीश चंद्र मिश्र, डायरेक्टर, यूपी टूरिज्म, वाराणसी
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