वाराणसीः यूं तो काशी के घाटों की सीढ़ियों से नीचे उतरकर श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं. अस्सी से ज्यादा घाटों पर हर स्नान करने वालों की यह तस्वीर देखी जाती है. मगर इन घाटों की श्रृंखला में एक ऐसा भी घाट है, जहां डुबकी लगाने के बाद मौत मिल रही है. इसके कारण अब इसे मौत वाला घाट भी कहा जाने लगा है. यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि आंकड़े बोल रहे हैं, जिनमें बीते एक साल से अब तक लगभग सौ मौतें इस घाट पर गंगा में डूबने के कारण हो गयी हैं. जी हां, बीते साल के दर्ज आंकड़ों की बात करें तो सामान्य रूप में गंगा में डूबने से 120 मौत और बीते दो महीने में लगभग 28 मौतें हुई हैं. इन आंकड़ों में ये घाट भी शामिल है.
कहा जाता है कि वाराणसी लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं. मगर, कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो एक बार नहीं सैकड़ों बार महादेव की नगरी आना चाहते हैं. वे लोग जिन्हें यह लगता है कि उनका जीवन महादेव चला रहे हैं, जिनकी महादेव में आस्था है, वे बार-बार वाराणसी आना चाहते हैं. फिर कुछ ऐसा हो जाता है कि लोग अपना जीवन त्याग देते हैं. अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि अचानक आई मौत से. ये मौत वहां आती है, जिन घाटों पर अधिक गहरा पानी है और लोग उसे नजरअंदाज कर जाते हैं. इन घाटों में से सबसे ज्यादा मौतों वाला घाट है तुलसी घाट. यहां पर बीते 2 माह में लगभग 8 मौतें हो चुकी हैं.
आंकड़ों से समझते हैं घाटों की स्थिति
गंगा किनारे बने घाटों पर पिछले 2 महीने यानी अप्रैल और मई में अब तक 28 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. सबसे अधिक तुलसी घाट पर 8 मौतें हुई हैं. दरभंगा घाट पर 3, दशाश्वमेध घाट पर 2, अस्सी घाट पर 3, ललिता घाट पर 6, शिवाला घाट पर 2 और चेतसिंह घाट पर 2 लोगों की मौत हुई है.
वहीं, जून महीने में अब तक 3 मौतें डूबने से हो चुकी हैं. इसमें शिवाला घाट, रैपुरिया घाट और कैथी घाट पर एक-एक मौतें हुई है. वहीं, अगर साल 2022 के आंकड़ों की बात करें तो गंगा किनारे बने घाटों पर 120 से अधिक लोगों की मौत हुई है. जिसमें से 25 फीसदी मौतें तुलसी घाट पर डूबने से हुई हैं. यह सिलसिला लगातार जारी है, यही वजह है कि इस घाट को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है.
तुलसी घाट बना लोगों की जान का संकट
तुलसी घाट पर वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस ने एस बोर्ड लगाया हुआ है, जिस पर लिखा है इस घाट पर पानी की गहराई अधिक होने के कारण यहां स्नान करना सख्त मना है. यह बोर्ड भेलूपर थाना के आदेश के बाद लगाया गया है. इसकी वजह है बीते वर्ष मई माह में सेल्फी के दौरान डूबने से 3 युवकों की मौत. यदि वर्तमान के आंकड़े देखें तो बीते लगभग डेढ़ महीने में यहां पर 8 मौतें डूबने से हो चुकी हैं.
दर्ज आंकड़ों के मुताबिक, 13 अप्रैल को केंद्रीय विद्यालय मुगलसराय के दो छात्रों की यहां डूबकर मौक हो गई थी. एक मई को एक छात्र की डूबने से मौत हो गई. इसके अगले ही दिन 2 मई को 2 लोगों की यहां डूबकर मौत हो गई थी. इसके साथ ही 26 मई को नहाने आए तीन दोस्तों में दो की डूबने से मौत हो गई, यही नहीं बीते 31 मई को भी प्रयागराज का एक युवक यहां स्नान के दौरान डूब गया था.
आखिर क्यों हो रही हैं ऐसी घटनाएं?
क्या कहते हैं घाट के नाविक और वाराणसी पुलिस
डीसीपी काशी जोन आरएस गौतम कहते हैं कि जिस घाट पर सीढ़ियां नहीं हैं या डूबने की घटनाएं होती हैं. उस घाट पर बोर्ड लगाकर लोगों को अलर्ट किया जाता है. जल पुलिस लगातार गंगा में गश्त करती रहती है. इसके साथ ही पुलिस भी घाटों पर गश्त करती रहती है. वहीं, घाटों पर रहने वाले नाविक बताते हैं कि गर्मी के दिनों में स्नान करने वालों की संख्या बढ़ जाती है. ऐसे में हर किसी पर नजर रखना संभव नहीं हो पाता है. घाट किनारे मल्लाह या नाविक बैठे रहते हैं. अगर कोई डूबने वाला नजर में आता है तो उसे बचा लिया जाता है.
क्या कहते हैं स्थानीय और बाहर से आए पर्यटक
तुलसी घाट पर बैठे एक स्थानीय नागरिक ने बताया कि इस घाट पर मौतों की संख्या बढ़ने लगी थी. तुलसी घाट लोगों के लिए शापित बन गया था. इसे लोग डेथ स्पॉट कहने लगे हैं. उन्होंने बताया कि तुलसी घाट पर यहां के लोग नहाने से डरने लगे हैं. बाहर से जो लोग आ रहे थे वे यहां नहा रहे थे, लेकिन पुलिस ने अब यहां पर नहाने पर पाबंदी लगा दी है. वहीं, एक पर्यटक ने बताया कि हम अपने दोस्तों के साथ वाराणसी घूमने के लिए आए हैं. उसने सुना तुलसी घाट पर नहाने के दौरान लोगों की मौत हुई है. अब यहां नहाने पर डर लग रहा है. बाहर से आचमन कर लेंगे. घाट पर नहीं नहाएंगे.
पर्यटक करते हैं मनमानी, बैरीकेडिंग पार कर जाते हैं
स्थानीय नाविकों का कहना है कि यहां पर आने वाले पर्यटक अपनी मनमानी भी करते हैं. प्रशासन की तरफ से बोर्ड तो लगाए गए हैं, लेकिन वे लोग इसकी अनदेखी कर देते हैं. वहीं, पानी में प्लास्टिक के बैरिकेड भी लगाए गए हैं, जिससे कि इसके आगे कोई न जाने पाए. मगर यहां पर नहाने वाले पर्यटक किसी की नहीं सुनते हैं और बैरिकेड पार कर नहाने के लिए आगे चले जाते हैं. गर्मी के दिनों में सामान्य दिनों से 50 गुना अधिक नहाने वालों की संख्या होती है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 120 मौतों में से 90 फीसदी संख्या बाहर से आने वाले लोगों की है.
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