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राह निहार रही बिस्मिल्लाह खां की कब्रगाह, इस बार पुण्यतिथि पर नहीं जुटा हुजूम

हर साल बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि पर लोग उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते थे. इस अवसर पर उनकी कब्रगाह पर कई मंत्री और नेता पहुंचकर अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते थे, लेकिन इस बार मोहर्रम और कोरोना की वजह से उनकी पुण्यतिथि नहीं मनाई जा रही है.

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Published : Aug 21, 2020, 5:41 PM IST

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भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां की पुण्यतिथि.

वाराणसी: भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आज पुण्यतिथि है, लेकिन इस अवसर पर भी सिगरा स्थित उनकी कब्रगाह सुनी पड़ी है. इसकी वजह कोरोना महामारी और मोहर्रम का होना बताया जा रहा है. आज उनके घर में लोग मोहर्रम की वजह से उनकी पुण्यतिथि नहीं मना रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से उनकी कब्रगाह भी सुनी पड़ी हुई है. घर की बात करें तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का घर लकड़ी की बल्लियों पर खड़ा नजर आता है. यही नहीं, परिवार वालों का कहना है कि सरकार ने जितनी भी वादे किए थे, वे सब सिर्फ वादे ही रह गए, हकीकत नहीं हो पाए, जिसकी वजह से आज घर गिरने की स्थिति में है.

भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां की पुण्यतिथि.
हर साल उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि पर लोग उनकी कब्रगाह पहुंचकर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देते थे. काफी लोग उनकी कब्रगाह पर जाकर उन्हें याद करते थे. लाखों में एक व्यक्ति ही बिस्मिल्लाह खां की तरह होता है, जो पूरा जीवन संगीत को समर्पित कर वाद्य यंत्र के जरिए लोगों तक पहुंचता है. आज भी लोग उनके द्वारा बजाई गई शहनाइयों की धुनों को याद करते हैं. मगर आज कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से कब्रगाह सुनी पड़ी है.वहीं स्वर्गीय उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब के बड़े पोते मोहम्मद सितौन का कहना है कि लोग उनकी कब्रगाह पर उनकी बरसी मनाया करते थे. देश उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि भी देता था, लेकिन जिस तरीके से लॉकडाउन लगाया गया है, उससे हम उनके कब्रगाह पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित नहीं कर पा रहे हैं. एक वजह यह भी है कि मोहर्रम में किसी भी प्रकार का कार्यक्रम हम आयोजित नहीं कर सकते. 21 मार्च 1916 को जन्मे बिस्मिल्लाह खां ने 21 अगस्त 2006 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, तब से लोगों ने बिस्मिल्लाह खां की याद उनके द्वारा बनाई गई धुनों में सजा के रखा है.

वाराणसी: भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आज पुण्यतिथि है, लेकिन इस अवसर पर भी सिगरा स्थित उनकी कब्रगाह सुनी पड़ी है. इसकी वजह कोरोना महामारी और मोहर्रम का होना बताया जा रहा है. आज उनके घर में लोग मोहर्रम की वजह से उनकी पुण्यतिथि नहीं मना रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से उनकी कब्रगाह भी सुनी पड़ी हुई है. घर की बात करें तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का घर लकड़ी की बल्लियों पर खड़ा नजर आता है. यही नहीं, परिवार वालों का कहना है कि सरकार ने जितनी भी वादे किए थे, वे सब सिर्फ वादे ही रह गए, हकीकत नहीं हो पाए, जिसकी वजह से आज घर गिरने की स्थिति में है.

भारत रत्न शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां की पुण्यतिथि.
हर साल उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि पर लोग उनकी कब्रगाह पहुंचकर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देते थे. काफी लोग उनकी कब्रगाह पर जाकर उन्हें याद करते थे. लाखों में एक व्यक्ति ही बिस्मिल्लाह खां की तरह होता है, जो पूरा जीवन संगीत को समर्पित कर वाद्य यंत्र के जरिए लोगों तक पहुंचता है. आज भी लोग उनके द्वारा बजाई गई शहनाइयों की धुनों को याद करते हैं. मगर आज कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से कब्रगाह सुनी पड़ी है.वहीं स्वर्गीय उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब के बड़े पोते मोहम्मद सितौन का कहना है कि लोग उनकी कब्रगाह पर उनकी बरसी मनाया करते थे. देश उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि भी देता था, लेकिन जिस तरीके से लॉकडाउन लगाया गया है, उससे हम उनके कब्रगाह पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित नहीं कर पा रहे हैं. एक वजह यह भी है कि मोहर्रम में किसी भी प्रकार का कार्यक्रम हम आयोजित नहीं कर सकते. 21 मार्च 1916 को जन्मे बिस्मिल्लाह खां ने 21 अगस्त 2006 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, तब से लोगों ने बिस्मिल्लाह खां की याद उनके द्वारा बनाई गई धुनों में सजा के रखा है.
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