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वाराणसी: सूनी गोद सजा रहीं 'सोनचिरैया', बेटियों को गोद लेने की संख्या में इजाफा

11 अक्टूबर को पूरे विश्व में विश्व बालिका दिवस यानी 'इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड डे' मनाया जा रहा है. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लड़कियां लड़कों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. बनारस में गोद लिए जाने के मामलों में बेटों के बराबर बेटियों की संख्या आती दिख रही है. आंकड़ों के आधार पर देखें तो लड़कियों को गोद लिए जाने की संख्या में इजाफा हुआ है.

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Published : Oct 11, 2019, 4:46 PM IST

वाराणसी: 11 अक्टूबर को विश्व बालिका दिवस यानी 'इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड डे' है. इस खास दिन पर 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' जैसे स्लोगन और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. क्योंकि पुरानी मानसिकता जो बेटियों को लेकर पहले थी वह क्या अभी भी है या बदल चुकी हैं, यह सवाल हर एक के मन में उठता है. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो कुछ ऐसा ही लग रहा है. क्योंकि एक तरफ जहां बेटियां अलग-अलग क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं. वहीं खाली कोख को भरकर अपनी किलकारी से लोगों का घर भी गुंजायमान कर रही हैं.

दरसअल, हम बात कर रहे हैं उन बेटियों की जिनको बचपन में अभिशाप समझकर जन्म के बाद ही इधर-उधर कूड़े कचरे में फेंक दिया जाता है. सामाजिक और सरकारी संस्थाएं इन बच्चियों को इन जगहों से उठा करना न सिर्फ जीवित रखती हैं, बल्कि उनका लालन पोषण बेहतर हो इसका प्रयास भी शुरू कर देती हैं. इसी प्रयास के फलस्वरूप बनारस में गोद लिए जाने वाली संस्था और अनाथ आश्रमों से गोद लिए जाने के मामलों में बेटों के बराबर बेटियों की संख्या आती दिख रही हैं.

वाराणसी में बेटों की अपेक्षा बेटियों को गोद लेने की संख्या में इजाफा.

2017 के बाद से बेटियों के गोद लेने की संख्या बढ़ी
पहले के समय में सूनी गोद को भरने के लिए जहां लोग सिर्फ लड़कों को गोद लेकर अपना बुढ़ापा और जिंदगी सुधारना चाहते थे. वहीं अब लड़कियों को गोद लेना पहली पसंद बन गया है. वाराणसी के जिला प्रोबेशन अधिकारी की मानें तो 2017 के बाद लगातार बेटियों को गोद लेने वालों की डिमांड लगातार बढ़ रही है. बनारस में गोद देने वाली दो रजिस्टर्ड संस्थाओं में अनियमितता मिलने के बाद इन्हें बंद कर अब बेटियों को गोद देने की जिम्मेदारी राजकीय बाल शिशु ग्रह इलाहाबाद के पास है. कारा की वेबसाइट के साथ यह लिंक है और ऑनलाइन प्रोसेस के तहत गोद लेने वाले इच्छुक व्यक्ति बेटियों की डिमांड रजिस्ट्रेशन के साथ दर्ज कराते हैं. इसके बाद वेरिफिकेशन कर उन्हें बेटियां दे दी जाती हैं.

इसे भी पढ़ें:- अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस: व्हील चेयर पर होने के बाद भी सुमेधा अपने सपने को दे रही उड़ान


बेटियों को गोद दिए जाने के मामले में अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 2013 से 2017 तक बनारस में अलग-अलग गोद दिए जाने वाली संस्थाओं की मदद से जहां 13 लड़कियों को लोगों ने गोद लिया, वहीं तीन नवजात लड़कों को गोद लेने का काम किया गया. वहीं 2018-19 में दत्तक ग्रहण हेतु स्वतंत्र मुक्त किए गए बच्चों में 4 बालक और 6 बालिकाओं को रखा गया है. इनमें से गोद लिए गए बच्चों की संख्या में 2 बेटियां और 2 बेटे शामिल हैं. इतना ही नहीं 2019-20 में अब तक गोद दिए जाने के लिए 7 बेटे और 12 बालिकाओं को रखा गया है. इनमें से अब तक बेटे को तो किसी ने गोद नहीं लिया, लेकिन 1 बेटी को गोद लिया जा चुका है.

वाराणसी: 11 अक्टूबर को विश्व बालिका दिवस यानी 'इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्ड डे' है. इस खास दिन पर 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' जैसे स्लोगन और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. क्योंकि पुरानी मानसिकता जो बेटियों को लेकर पहले थी वह क्या अभी भी है या बदल चुकी हैं, यह सवाल हर एक के मन में उठता है. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो कुछ ऐसा ही लग रहा है. क्योंकि एक तरफ जहां बेटियां अलग-अलग क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं. वहीं खाली कोख को भरकर अपनी किलकारी से लोगों का घर भी गुंजायमान कर रही हैं.

दरसअल, हम बात कर रहे हैं उन बेटियों की जिनको बचपन में अभिशाप समझकर जन्म के बाद ही इधर-उधर कूड़े कचरे में फेंक दिया जाता है. सामाजिक और सरकारी संस्थाएं इन बच्चियों को इन जगहों से उठा करना न सिर्फ जीवित रखती हैं, बल्कि उनका लालन पोषण बेहतर हो इसका प्रयास भी शुरू कर देती हैं. इसी प्रयास के फलस्वरूप बनारस में गोद लिए जाने वाली संस्था और अनाथ आश्रमों से गोद लिए जाने के मामलों में बेटों के बराबर बेटियों की संख्या आती दिख रही हैं.

वाराणसी में बेटों की अपेक्षा बेटियों को गोद लेने की संख्या में इजाफा.

2017 के बाद से बेटियों के गोद लेने की संख्या बढ़ी
पहले के समय में सूनी गोद को भरने के लिए जहां लोग सिर्फ लड़कों को गोद लेकर अपना बुढ़ापा और जिंदगी सुधारना चाहते थे. वहीं अब लड़कियों को गोद लेना पहली पसंद बन गया है. वाराणसी के जिला प्रोबेशन अधिकारी की मानें तो 2017 के बाद लगातार बेटियों को गोद लेने वालों की डिमांड लगातार बढ़ रही है. बनारस में गोद देने वाली दो रजिस्टर्ड संस्थाओं में अनियमितता मिलने के बाद इन्हें बंद कर अब बेटियों को गोद देने की जिम्मेदारी राजकीय बाल शिशु ग्रह इलाहाबाद के पास है. कारा की वेबसाइट के साथ यह लिंक है और ऑनलाइन प्रोसेस के तहत गोद लेने वाले इच्छुक व्यक्ति बेटियों की डिमांड रजिस्ट्रेशन के साथ दर्ज कराते हैं. इसके बाद वेरिफिकेशन कर उन्हें बेटियां दे दी जाती हैं.

इसे भी पढ़ें:- अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस: व्हील चेयर पर होने के बाद भी सुमेधा अपने सपने को दे रही उड़ान


बेटियों को गोद दिए जाने के मामले में अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 2013 से 2017 तक बनारस में अलग-अलग गोद दिए जाने वाली संस्थाओं की मदद से जहां 13 लड़कियों को लोगों ने गोद लिया, वहीं तीन नवजात लड़कों को गोद लेने का काम किया गया. वहीं 2018-19 में दत्तक ग्रहण हेतु स्वतंत्र मुक्त किए गए बच्चों में 4 बालक और 6 बालिकाओं को रखा गया है. इनमें से गोद लिए गए बच्चों की संख्या में 2 बेटियां और 2 बेटे शामिल हैं. इतना ही नहीं 2019-20 में अब तक गोद दिए जाने के लिए 7 बेटे और 12 बालिकाओं को रखा गया है. इनमें से अब तक बेटे को तो किसी ने गोद नहीं लिया, लेकिन 1 बेटी को गोद लिया जा चुका है.

Intro:स्पेशल स्टोरी- विश्व बालिका दिवस पर स्पेशल स्टोरी है। इस स्टोरी में शॉर्ट ज्यादा नहीं है, इसलिए कांसेप्ट इमेजेस का प्रयोग कर पैकेजिंग हेड ऑफिस में करें तो और बेहतर होगा.

वाराणसी: आज विश्व बालिका दिवस यानी वर्ल्ड गर्ल चाइल्ड डे है. इस खास दिन पर बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे स्लोगन और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि पुरानी मानसिकता जो बेटियों को लेकर पहले थी वह क्या अभी भी है या बदल चुकी है यह सवाल हर एक के मन में उठता है. किसी भी मायने में बेटों से पीछे ना रहने वाली बेटियां क्या अब लोगों के दिमाग और ख्यालात को बदलकर समाज में बदलाव की बयार बहाने में सफल हो पाई हैं. फिलहाल पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो कुछ ऐसा लग रहा है क्योंकि एक तरफ जहां बेटियां अलग-अलग क्षेत्र में अपना परचम फहरा रही हैं, तो वही खाली कोख को भरकर अपनी किलकारी से लोगों का घर भी महक आ रही है यह नन्ही सोन चिरैया.


Body:वीओ-01 दरसअल हम यहां बात कर रहे हैं उन बेटियों की जिनको बचपन में अभिशाप समझकर जन्म के बाद ही इधर उधर कूड़े कचरे में फेंक दिया जाता है, लेकिन सामाजिक व सरकारी संस्थाएं इन बच्चियों को इन जगहों से उठा करना न सिर्फ जीवित रखती हैं बल्कि इनका लालन पोषण बेहतर हो इसका प्रयास भी शुरू कर देती हैं. इसी प्रयास के फलस्वरूप बनारस में गोद लिए जाने वाली संस्था और अनाथ आश्रमों से गोद जाने के मामलों में बेटों के बराबर बेटियों की संख्या आती दिख रही है. पहले के समय में सुनी गोद को भरने के लिए जहां लोग सिर्फ लड़को को गोद लेकर अपना बुढ़ापा और जिंदगी सुधारना चाहते थे, वहीं अब लड़कियां गोद लेने में पहली पसंद है. वाराणसी के जिला प्रोबेशन अधिकारी की माने तो 2017 के बाद लगातार बेटियों को गोद लेने वालों की डिमांड और पूछताछ लगातार बढ़ रही है. बनारस में गोद देने वाली दो रजिस्टर्ड संस्थाओं में अनियमितता मिलने के बाद इन्हें बंद कर अब बेटियों को गोद देने की जिम्मेदारी राजकीय बाल शिशु ग्रह इलाहाबाद के पास है. कारा की वेबसाइट के साथ यह लिंक है और ऑनलाइन प्रोसेस के तहत गोद लेने वाले इच्छुक व्यक्ति बेटियों की डिमांड रजिस्ट्रेशन के साथ दर्ज कराते हैं. जिसके बाद उन्हें वेरिफिकेशन कर बेटियां को दे दी जाती है.


Conclusion:वीओ-02 बेटियों को गोद दिए जाने के मामले में अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 2013 से 2017 तक बनारस में अलग-अलग गोद दिए जाने वाली संस्थाओं की मदद से जहां 13 लड़कियों को लोगों ने गोद लिया वही तीन नवजात लड़कों को गोद लेने का काम किया गया. वहीं 2018-19 में दत्तक ग्रहण हेतु स्वतंत्र मुक्त किए गए बच्चों में 4 बालक और 6 बालिकाओं को रखा गया है. जिनमें से गोद लिए गए बच्चों की संख्या में 2 बेटियां और 2 बेटे शामिल हैं. इतना ही नहीं 2019-20 में अब तक गोद दिए जाने के लिए सात बेटे और 12 बालिकाओं को रखा गया है. जिनमें से अब तक बेटे को तो किसी ने गोद नहीं लिया लेकिन 01 बेटी को गोद लिया जा चुका है.

बाईट- प्रवीण कुमार त्रिपाठी, जिला प्रोबेशन अधिकारी

गोपाल मिश्र

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