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बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद, सामने आया सीर से अलग नया जन्म स्थान, लगा सरकारी बोर्ड

बनारस में संत रविदास की जन्म स्थली को लेकर विवाद हो गया है. विवाद इस बात का कि बनारस के लहरतारा इलाके में संत कबीर जन्मस्थली से कुछ दूर मांडूर नगर में रविदास की जन्म स्थली बताते हुए यहां एक मंदिर भी बनाया गया और पीडब्ल्यूडी के आदेश पर इसे जन्मस्थली मानते हुए यहां सरकारी बोर्ड भी लगा दिए गए हैं. इसके बाद सवाल यह उठने लगा है कि आखिर संत रविदास का जन्म हुआ कहां था?

बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद
बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद
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Published : Dec 27, 2021, 11:59 AM IST

वाराणसी: बनारस का सीर गोवर्धन, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यहां पर संत शिरोमणि श्री रविदास जी महाराज का जन्म हुआ था. बनारस के इस स्थान को एक तरफ जहां धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है तो सियासी दृष्टि से भी यह काफी महत्व रखता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या फिर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव या बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष व सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती हर कोई इस स्थान को ही रविदास की जन्म स्थली मानता है. यही वजह है कि मायावती से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने यहां विकास के तमाम कार्य करवाए. वर्तमान में यहां केंद्र सरकार की मदद से करोड़ों की लागत से भक्तों के लिए सत्संग भवन और हॉल तैयार किए गए हैं.

लेकिन बनारस में संत रविदास की जन्म स्थली को लेकर विवाद हो गया है. विवाद इस बात का कि बनारस के लहरतारा इलाके में संत कबीर जन्मस्थली से कुछ दूर मांडूर नगर में रविदास की जन्म स्थली बताते हुए यहां एक मंदिर भी बनाया गया और पीडब्ल्यूडी के आदेश पर इसे जन्मस्थली मानते हुए यहां सरकारी बोर्ड भी लगा दिए गए हैं. इसके बाद सवाल यह उठने लगा है कि आखिर संत रविदास का जन्म हुआ कहां था?

बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद

दोहे में मिलता है जन्म स्थान का जिक्र

दरअसल, लहरतारा स्थित संत कबीर दास की प्राकट्य स्थलीय लहरतारा तालाब से कुछ ही दूरी पर स्थित दलित बस्ती में संत रविदास का मंदिर तैयार हुआ है. इस मंदिर के स्थान को ही रविदास जन्म स्थली के नाम से बताया जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर पूजा-पाठ व इसकी देखरेख करने वाले पुजारी और यहां के व्यवस्थापक का दावा है कि सीर गोवर्धन में संत रविदास का जन्म हुआ ही नहीं था. वो स्थान संत रविदास की कर्मभूमि है.

जन्मभूमि तो बनारस का यही स्थान है, क्योंकि संत रविदास से जुड़े जितने भी ग्रंथ और किताबें हैं, उनमें इस बात का जिक्र है कि काशी के मांडुर नगर यानी मंडुवाडीह इलाके में ही संत शिरोमणि रविदास का जन्म हुआ था. खुद ग्रंथों में यह स्पष्ट लिखा है.

काशी ढिंग मांडुर स्थाना, शुद्र वरन करत गुजराना।

मांडूर नगर में लीन अवतारा, रविदास शुभ नाम हमारा।।

इसे भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: पांच दशक के इस सियासी हकीकत को जान चौंक जाएंगे आप

1912 की किताब में भी जिक्र

इस नए विवाद को लेकर संत रविदास के इस जन्म स्थान के प्रबंधक व श्री संत शिरोमणि गुरु रविदास सेवा समिति के प्रबंधक प्रभु प्रसाद से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. प्रभु प्रसाद का कहना है कि संत रविदास की वाणी में यह बात खुद स्पष्ट है कि उनका जन्म किस स्थान पर हुआ था. इसके लिए बाकायदा उनकी ओर से एक नहीं, दो नहीं, बल्कि 25 से ज्यादा किताबों में लिखे ऐसे लेख पीडब्लूडी को उपलब्ध करवाए गए थे, जो यह स्पष्ट करते हैं कि गुरु रविदास का जन्म यहीं पर हुआ था. आगे उन्होंने कहा कि 1912 में हिंदी ट्रांसलेट की गई एक सबसे पुरानी हमारे धार्मिक पुस्तक में भी यह स्पष्ट किया गया है कि रविदास का जन्म इसी स्थान पर हुआ था और कर्म स्थली के रूप में संत रविदास ने अपना जीवन सीर गोवर्धन में बिताया था.

बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद
बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद

प्रमाण के आधार पर मिली अनुमति

इसे लेकर पीडब्ल्यूडी को जब यह प्रमाण दिया गया तो उनकी ओर से उन्हें यहां पर बोर्ड लगाने की अनुमति दी गई. लेकिन इसके पहले नवंबर के महीने में ही पीडब्ल्यूडी की ओर से दोनों पक्षों को अपने सुबूत के साथ बुलाया गया था. उन्होंने कहा कि वो तो सुबूत के साथ वहां पहुंच गए थे, लेकिन सीर गोवर्धन से कोई भी व्यक्ति वहां नहीं पहुंचा था. जिसकी वजह से उन्हें यहां पर बोर्ड लगाने की अनुमति दी गई. वो भी लिखित तौर पर, जिसके बाद उन्होंने इस स्थान पर संत रविदास जन्मस्थली का बोर्ड लगवाया है.

पुलिस से शिकायत, झेलना पड़ा मुकदमा

प्रभु का कहना है कि इस रास्ते पर चलना बहुत मुश्किल है, क्योंकि जब उन्होंने इस तरफ काम शुरू किया तो उन्हें बहुत सी परेशानियां झेलनी पड़ी. उनके खिलाफ मंडुवाडीह थाने में शिकायत की गई. जिसके बाद उन्हें वहां बुलाया गया और बताया गया कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. इतना ही नहीं उन पर लोगों को बरगलाने का आरोप लगाया गया. लेकिन जब उन्होंने पुलिस के सामने सारे प्रमाण उपलब्ध करवाए तो पुलिस ने भी उन्हें ही सही माना.

यही वजह है कि आज तक सीर गोवर्धन से कोई भी अपना पक्ष या प्रमाण अब तक नहीं सामने रख सका है. वहीं, इस पूरे प्रकरण पर जब सीर गोवर्धन में बात करने की कोशिश की गई तो वहां लोगों ने कैमरे पर बात करने से इनकार कर दिया. पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों का भी यही कहना है कि इस पूरे प्रकरण में जिसके पास साक्ष्य हैं, उस आधार पर कार्य किया गया है.

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वाराणसी: बनारस का सीर गोवर्धन, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यहां पर संत शिरोमणि श्री रविदास जी महाराज का जन्म हुआ था. बनारस के इस स्थान को एक तरफ जहां धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है तो सियासी दृष्टि से भी यह काफी महत्व रखता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या फिर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव या बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष व सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती हर कोई इस स्थान को ही रविदास की जन्म स्थली मानता है. यही वजह है कि मायावती से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने यहां विकास के तमाम कार्य करवाए. वर्तमान में यहां केंद्र सरकार की मदद से करोड़ों की लागत से भक्तों के लिए सत्संग भवन और हॉल तैयार किए गए हैं.

लेकिन बनारस में संत रविदास की जन्म स्थली को लेकर विवाद हो गया है. विवाद इस बात का कि बनारस के लहरतारा इलाके में संत कबीर जन्मस्थली से कुछ दूर मांडूर नगर में रविदास की जन्म स्थली बताते हुए यहां एक मंदिर भी बनाया गया और पीडब्ल्यूडी के आदेश पर इसे जन्मस्थली मानते हुए यहां सरकारी बोर्ड भी लगा दिए गए हैं. इसके बाद सवाल यह उठने लगा है कि आखिर संत रविदास का जन्म हुआ कहां था?

बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद

दोहे में मिलता है जन्म स्थान का जिक्र

दरअसल, लहरतारा स्थित संत कबीर दास की प्राकट्य स्थलीय लहरतारा तालाब से कुछ ही दूरी पर स्थित दलित बस्ती में संत रविदास का मंदिर तैयार हुआ है. इस मंदिर के स्थान को ही रविदास जन्म स्थली के नाम से बताया जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर पूजा-पाठ व इसकी देखरेख करने वाले पुजारी और यहां के व्यवस्थापक का दावा है कि सीर गोवर्धन में संत रविदास का जन्म हुआ ही नहीं था. वो स्थान संत रविदास की कर्मभूमि है.

जन्मभूमि तो बनारस का यही स्थान है, क्योंकि संत रविदास से जुड़े जितने भी ग्रंथ और किताबें हैं, उनमें इस बात का जिक्र है कि काशी के मांडुर नगर यानी मंडुवाडीह इलाके में ही संत शिरोमणि रविदास का जन्म हुआ था. खुद ग्रंथों में यह स्पष्ट लिखा है.

काशी ढिंग मांडुर स्थाना, शुद्र वरन करत गुजराना।

मांडूर नगर में लीन अवतारा, रविदास शुभ नाम हमारा।।

इसे भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: पांच दशक के इस सियासी हकीकत को जान चौंक जाएंगे आप

1912 की किताब में भी जिक्र

इस नए विवाद को लेकर संत रविदास के इस जन्म स्थान के प्रबंधक व श्री संत शिरोमणि गुरु रविदास सेवा समिति के प्रबंधक प्रभु प्रसाद से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. प्रभु प्रसाद का कहना है कि संत रविदास की वाणी में यह बात खुद स्पष्ट है कि उनका जन्म किस स्थान पर हुआ था. इसके लिए बाकायदा उनकी ओर से एक नहीं, दो नहीं, बल्कि 25 से ज्यादा किताबों में लिखे ऐसे लेख पीडब्लूडी को उपलब्ध करवाए गए थे, जो यह स्पष्ट करते हैं कि गुरु रविदास का जन्म यहीं पर हुआ था. आगे उन्होंने कहा कि 1912 में हिंदी ट्रांसलेट की गई एक सबसे पुरानी हमारे धार्मिक पुस्तक में भी यह स्पष्ट किया गया है कि रविदास का जन्म इसी स्थान पर हुआ था और कर्म स्थली के रूप में संत रविदास ने अपना जीवन सीर गोवर्धन में बिताया था.

बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद
बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली पर विवाद

प्रमाण के आधार पर मिली अनुमति

इसे लेकर पीडब्ल्यूडी को जब यह प्रमाण दिया गया तो उनकी ओर से उन्हें यहां पर बोर्ड लगाने की अनुमति दी गई. लेकिन इसके पहले नवंबर के महीने में ही पीडब्ल्यूडी की ओर से दोनों पक्षों को अपने सुबूत के साथ बुलाया गया था. उन्होंने कहा कि वो तो सुबूत के साथ वहां पहुंच गए थे, लेकिन सीर गोवर्धन से कोई भी व्यक्ति वहां नहीं पहुंचा था. जिसकी वजह से उन्हें यहां पर बोर्ड लगाने की अनुमति दी गई. वो भी लिखित तौर पर, जिसके बाद उन्होंने इस स्थान पर संत रविदास जन्मस्थली का बोर्ड लगवाया है.

पुलिस से शिकायत, झेलना पड़ा मुकदमा

प्रभु का कहना है कि इस रास्ते पर चलना बहुत मुश्किल है, क्योंकि जब उन्होंने इस तरफ काम शुरू किया तो उन्हें बहुत सी परेशानियां झेलनी पड़ी. उनके खिलाफ मंडुवाडीह थाने में शिकायत की गई. जिसके बाद उन्हें वहां बुलाया गया और बताया गया कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. इतना ही नहीं उन पर लोगों को बरगलाने का आरोप लगाया गया. लेकिन जब उन्होंने पुलिस के सामने सारे प्रमाण उपलब्ध करवाए तो पुलिस ने भी उन्हें ही सही माना.

यही वजह है कि आज तक सीर गोवर्धन से कोई भी अपना पक्ष या प्रमाण अब तक नहीं सामने रख सका है. वहीं, इस पूरे प्रकरण पर जब सीर गोवर्धन में बात करने की कोशिश की गई तो वहां लोगों ने कैमरे पर बात करने से इनकार कर दिया. पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों का भी यही कहना है कि इस पूरे प्रकरण में जिसके पास साक्ष्य हैं, उस आधार पर कार्य किया गया है.

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