वाराणसी: लॉकडाउन के कमर तोड़ देने वाले दर्द की आह जहां हर व्यवसाय पर देखने को मिली है तो वहीं सब्जी किसान भी इससे अछूते नहीं हैं. धंधे में मंदी के साये की काली छाया ने कहीं ग्राहकों के बिना दुकानों को सूना कर दिया है तो कहीं कम दामों में माल निकालने की मजबूरी के चलते लोग बेबस हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा वे किसान परेशान हैं, जो सब्जियों की खेती करते हैं. हाल ये है कि किसानों की मेहनत से उगाई गई सब्जियों से उनकी लागत तक निकल पाना मुश्किल हो गया है, जिसके चलते लाचार और परेशान किसान सब्जियां मंडी में औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं.
कम दामों पर सब्जी बेचने को मजबूर किसान
इन दिनों सब्जियों की आवक में कोई कमी नहीं है. बाहर से भले ही सब्जियां नहीं आ रही हों, लेकिन जिले में सब्जी की पैदावार इतनी हो रही है कि जिसकी पूर्ति में कोई कमी नहीं है. थोक सब्जी मंडी में आढ़तिया हरी सब्जी बहुत ही कम दामों में ले रहे हैं, लेकिन उपभोक्ता तक ये सब्जियां महंगे दामों में पहुंच रही हैं.
'जितनी लागत, उतना भी मुनाफा नहीं'
ईटीवी भारत की टीम ने जब सब्जी किसान मुन्नी देवी से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि इस बार जितनी हमारी लागत लगी है, उतना मुनाफा बिल्कुल भी नहीं हुआ है. हमारे यहां से सब्जी दो-तीन रुपये प्रति किलो बिक रही है, लेकिन ठेले वाले अपने मन से 20-30 रुपये प्रति किलो में इसे बेच रहे हैं. यानी कि इस बार सब्जी कूड़े के भाव में जा रही है.
मंडी नहीं जा पा रहे किसान
सब्जी किसानों का कहना है कि हम तो अब ज्यादा सब्जियां मंडी लेकर भी नहीं जाते, क्योंकि हमारी तो मंडी तक ले जाने की लागत भी नहीं निकल रही है. यानी अगर किसान की जुबानी सुनें तो...'जो सब्जी दो रुपये किलो बिक रही, उसमें हम क्या ऑटो का किराया देंगे और क्या बचेंगे'. इसलिए हम सब्जियों को ऐसे ही खेत में छोड़ दे रहे हैं. किसान की मानें तो नेनुआ 2 रुपये प्रति किलो, कद्दू 4 से 5 रुपये प्रति किलो और टमाटर 25 रुपये का पांच किलो बिक रहा है. वहीं जिन लोगों के पास सूखी सब्जियां हैं, जैसे-आलू, प्याज, अदरक और लहसुन, उनको थोड़ा फ़ायदा है. क्योंकि ये जल्दी खराब नहीं होती है तो इसके दाम किसानों को ठीक मिल जा रहे हैं.
'नहीं मिल रहे सब्जी के मनचाहे दाम'
आढ़तियों का कहना है कि किसान से जो हम सब्जियां खरीदते हैं, उस पर एक रुपये 50 पैसे का मार्जिन रखकर ठेले व्यापारियों को बेचते हैं. हमें ज्यादा मुनाफा नहीं हो रहा है, क्योंकि सब्जी मंडी बेतरतीब समय पर खुल रही है और मंडियों में फुटकर ग्राहकों का आना भी बंद हो गया है. सिर्फ ठेले व्यापारी ही इन सब्जियों को ले रहे हैं, जिसके चलते हमें इनका मनचाहा दाम नहीं मिल पा रहा है.
'घाटा न हो, इसलिए जोड़ते हैं लागत'
ठेले व्यापारियों का कहना है कि जो हमें सब्जी मिलती है, उस पर हम 5 से 10 रुपये मार्जिन रखकर बेचते हैं. क्योंकि सूखी सब्जियां तो बची रहती हैं, लेकिन जो सीजनल सब्जियां हैं, वे खराब हो जाती हैं. हम जिस दिन सब्जी खरीदकर लाते हैं तो न बिक पाने की वजह से दूसरे दिन उसका नुकसान भी होने लगता है, इसलिए हम लागत जोड़कर इन सब्जियों को बेचते हैं.
जो सब्जियां किसानों से 1 रुपये किलो से लेकर 5 रुपये किलो तक में खरीदी जाती हैं, वह थोक मंडी में 10 से 15 रुपये किलो तक बिकती हैं. जैसे- नेनुआ 2 रुपये प्रति किलो खरीद कर 10 रुपये प्रति किलो के दाम पर बेचा जाता है. वहीं सिर्फ सूखी सब्जियों पर ही दो से पांच रुपये का मार्जिन रखा जाता है.
थोक मंडी में सब्जियों के दाम:
सब्जी | रुपये प्रति किलो |
परवल | 20 |
टमाटर | 20 |
हरी मिर्च | 20 |
भिंडी | 10 |
चौराई साग | 10 |
खीरा | 20 |
नेनुआ | 10 |
आलू | 20-25 |
फुटकर दामों की बात करें तो ठेले व्यापारी सब्जियों पर 5 रुपये से लेकर 20 रुपये तक अपना मार्जिन रखते हैं. जैसे- जो नेनुआ 10 रुपये किलो खरीद रहे हैं, उसे 15 से 20 रुपये किलो में बेचा जा रहा है. टमाटर 20 रुपये किलो खरीद रहे हैं तो 25 से 30 रुपये किलो के दाम पर बेच रहे हैं. भिंडी 10 रुपये प्रति किलो की दर से खरीद कर 20 रुपये किलो के दाम पर बेचा जा रहा है. आलू 20 से 25 रुपये किलो के हिसाब से बेच रहे हैं, जबकि थोक मंडी में आलू 70 रुपये में 5 किलो मिल रहा है.
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किसानों को नहीं हो रहा फायदा
यहां गौर करने वाली बात यह है कि आढ़तिया भले ही कहें कि वे सब्जी पर एक रुपये पचास पैसे का मार्जिन रखते हैं, मगर वास्तविकता में यदि वे किसान से एक से दो रुपये किलो कोई सब्जी खरीदते हैं तो उसे वे ठेले व्यापारियों को 5 से 10 रुपये किलो के दाम पर बेचते हैं. ठेला व्यापारी सब्जियों के मनमाने दाम तय करके बेचते हैं. हैरान करने वाली बात यह भी है कि जो सब्जी, किसान से एक रुपये प्रति किलो की दर से खरीदी जाती है, उस सब्जी की कीमत लोगों तक पहुंचने पर 10 से 20 रुपये प्रति किलो हो जाती है. मतलब न ही सब्जी किसानों को ज्यादा फायदा मिल पा रहा है और न ही फुटकर खरीदार ही मुनाफा कमा पा रहे हैं. वहीं मौजूदा समय की बात करें तो सिर्फ आढ़तिया और ठेले व्यापारियों को ही इसका फायदा मिल पा रहा है.