वाराणसी: देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामलों को देखते हुए सभी सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों को कुछ महीने पहले से ही कोविड-19 वार्डों के लिए रिजर्व रखना शुरू कर दिया गया था. ऐसे में सामान्यत: सभी सरकारी अस्पतालों की ओपीडी सेवाओं को बंद कर दिया गया था, जिससे कि सभी डॉक्टर कोरोना संक्रमण मरीजों का इलाज कर सकें. ऐसे में सामान्य बीमारी से ग्रसित लोगों और गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशान हुई.
लॉकडाउन खत्म होने के बाद गाइडलाइंस के साथ सभी सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में ओपीडी सेवाओं को शुरू कर दिया गया. ओपीडी सेवा को शुरू करने के बाद फिर से गर्भवती महिलाओं व प्रसूताओं को इलाज कराने में काफी आसानी हो गई है.
वाराणसी में मातृत्व केंद्र का हाल
वाराणसी में मातृत्व केंद्र का क्या हाल है? जिला महिला अस्पताल में ओपीडी कैसी चल रही है? यह जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम वाराणसी के महिला अस्पताल व मातृत्व केंद्र पहुंची, जहां गर्भवती महिलाओं व डॉक्टरों से बातचीत करके यह जानने की कोशिश की गई कि लॉकडाउन के दौर में वह इलाज कैसे कर रहे थे और इन दिनों वहां पर क्या व्यवस्थाएं चल रही हैं.
राजकीय महिला चिकित्सालय
राजकीय महिला चिकित्सालय की प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. लिली श्रीवास्तव ने बताया कि लॉकडाउन के दौर में ऊपर से आर्डर जरूर थे कि ओपीडी को बंद रखा जाए, लेकिन हमारे यहां कुछ डिलीवरी के केस भी थे, जिसकी वजह से हमने ओपीडी को बंद नहीं किया. हालांकि उस समय ओपीडी बहुत ही सीमित समय के लिए और सीमित तरीके से चलाई जा रही थी, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन खत्म हुआ. वैसे-वैसे ओपीडी में लोग आने लगे. अब ज्यादा संख्या में आकर महिलाएं अपना इलाज करवा रही हैं.
उन्होंने बताया कि इस समय हमारे यहां के सीनियर डॉक्टर ही ओपीडी में बैठ रहे हैं. इसलिए और भी ज्यादा मरीजों की संख्या बढ़ रही है. कुछ महिलाओं की डिलीवरी प्राइवेट हॉस्पिटल में नहीं हो पा रही है. वो भी मरीज अब सरकारी अस्पताल में आ रहे हैं.
महिलाओं का कोरोना टेस्ट
उन्होंने बताया कि इस समय एक महीने में 350 से 400 डिलीवरी हमारे यहां हो रही है. यदि दो दिन पहले हमारे पास कोई डिलीवरी केस आ रहा है, तो सबसे पहले हम उनका कोरोना टेस्ट करा रहे हैं. उसके बाद डिलीवरी में हाथ लगा रहे हैं. यदि अर्जेंट कोई केस आ रहा है और उनमें थोड़े बहुत भी लक्षण हैं, तो उनके लिए अलग ओपीडी बनी हुई है, जहां पूरा पीपीई कीट पहनकर उनकी डिलीवरी कराई जा रही है. और यदि रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो उन्हें बीएचयू रेफर किया जा रहा है.
पीपीई किट पहनकर की जा रही डिलीवरी
डॉ. लता मौर्या ने बताया कि इन दिनों लोग प्राइवेट अस्पताल से ज्यादा सरकारी अस्पताल में आना पसन्द कर रहे हैं. हम अपनी तरीके से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सभी महिलाओं का बेहतर तरीके से इलाज हो. यहां जो भी महिलाएं आती हैं, पहले उनके ब्लड प्रेशर के साथ अन्य चीजों की जांच की जाती है. उसके बाद उनकी डिलीवरी की जाती है. यहां जो भी नर्स काम करती हैं, वह पूरा पीपीई किट पहनकर डिलीवरी कराती हैं, जिससे किसी प्रकार का कोई इंफेक्शन न फैल सके.
नर्स सुशीला यादव ने बताया कि पूरे चार महीने के लॉकडाउन में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 402 डिलीवरी हुई हैं. यहां पर डिलीवरी पूरे प्रिकॉशन के साथ की जाती है, जिससे जच्चा और बच्चा दोनों सुरक्षित रह सकें. उन्होंने बताया कि यहां लॉकडाउन के दौर में डिलीवरी थोड़ी कम थी, जबकि महिलाएं जांच के लिए आती रहती थीं.
वहीं अस्पताल जांच कराने पहुंची गर्भवती महिला चंदा ने बताया कि उसे स्वास्थ्य केंद्र पर आने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है. समय-समय पर वह जांच कराने आती है और उसका इलाज भी किया जाता है. कोरोना काल में वह अपने मायके गई थी इसलिए नहीं आ पा रही थी, लेकिन अब वह स्वास्थ्य केंद्र आ रही है. डॉक्टर उसका पूरा देखभाल भी कर रहे हैं.
दूसरी महिला गीता ने बताया कि यह उसकी चौथी डिलीवरी है. वह इसी प्राथमिक केंद्र से उपचार कराती हैं. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन चल रहा था, तो वह प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करवा रही थी. परंतु जैसे ही सरकारी अस्पताल की ओपीडी शुरू हुई तो, वह वापस से अपना उपचार सरकारी अस्पताल में करा रही हैं. उन्होंने बताया कि उनको कोई दिक्कत नहीं होती है, बल्कि आसानी से सब कुछ उपलब्ध हो जाता है.
आशा ने दी जानकारी
वहीं आशा मीरा देवी ने बताया कि लॉकडाउन में हम लोग घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक कर रहे थे. सबको समझा रहे थे कि किस प्रकार से वह अपना ध्यान रखें. हम देख लेते थे कि महिला की स्थिति क्या है. अर्जेंट डिलीवरी का केस होता था, तो हम अस्पताल पर ले जाकर उनकी डिलीवरी करवाते थे. अन्यथा उनको बताते थे कि उनको किस प्रकार से रहना और खाना है. उनको बताया जाता था कि इस दौर में वह कैसे खुद को सुरक्षित रख सकती हैं.