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वाराणसी : तुलसी घाट पर सजा ध्रुपद मेला की अनोखी छटा

शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में प्रसिद्ध ध्रुपद मेला वाराणसी के तुलसी घाट पर चल रहा है. चारदिवसीय मेले की आज तीसरा दिन था. इसमें कई कलाकारों ने अपने हुनर से मधुर तान छेड़ी.

चार दिवसीय मेले के तीसरी रात का आरंभ मछुन्दा की ध्रुपद गायकी से हुआ.
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Published : Mar 4, 2019, 4:02 AM IST

वाराणसी : अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास की ओर से तुलसी घाट पर हर साल की तरह इस साल भीध्रुपद मेला आयोजित किया गया.सुर साज की झंकार पर श्रोता पूरी रात झूमते रहे. कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर कर दिया.

चार दिवसीय मेलेकेतीसरी रात का आरंभ मछुन्दा की ध्रुपद गायकी से हुआ.
चार दिवसीय मेलेकेतीसरी रात का आरंभ मछुन्दा की ध्रुपद गायकी से हुआ. मछुन्दा के साथ पखावज संगीत तेशया कन्हाई को औरतानपुरे पर नाव सुजुकी के संगत की मछुन्दा ने गायन का आंरभ राग भिन्नषड्ज में आलाप के साथ चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना" बोले थे तू ही शिवनाथ रूप" से किया.ध्रुपद मेले के इस कार्यक्रम में काशी नरेश परिवार के महाराजा डॉ विभूति नारायण मौजूद रहे. वे अपनी परंपरा को निभाते नजर आए. वहीं गोस्वामी अखाड़ा तुलसीदास की ओर से महंत विशंभर नाथ मिश्र कार्यक्रम में मौजूद रहे.


पद्मश्री डॉक्टर राजेश्वर आचार्य ने बताया 1975 में ध्रुपद मिले का शुरुआत महाराजा बनारस ने कराया तब से यह अनवरत चलता आ रहा है.यह 45वांध्रुपद मेला है.कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट जो विलुप्त हो गए थे उन्हें एक मंच मिला.लगभग एक हजार से ज्यादा विदेशी श्रोता यहां शामिल होते हैं.सबसे बड़ी बात है कि चौथी पीढ़ी ध्रुपद मेला का चल रहा है.इससे आने वाली पीढ़ी सीख रही है. विदेशी सीख रहे हैं जान रहे हैं इससे बड़ा सहयोग क्या होगा.

वाराणसी : अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास की ओर से तुलसी घाट पर हर साल की तरह इस साल भीध्रुपद मेला आयोजित किया गया.सुर साज की झंकार पर श्रोता पूरी रात झूमते रहे. कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर कर दिया.

चार दिवसीय मेलेकेतीसरी रात का आरंभ मछुन्दा की ध्रुपद गायकी से हुआ.
चार दिवसीय मेलेकेतीसरी रात का आरंभ मछुन्दा की ध्रुपद गायकी से हुआ. मछुन्दा के साथ पखावज संगीत तेशया कन्हाई को औरतानपुरे पर नाव सुजुकी के संगत की मछुन्दा ने गायन का आंरभ राग भिन्नषड्ज में आलाप के साथ चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना" बोले थे तू ही शिवनाथ रूप" से किया.ध्रुपद मेले के इस कार्यक्रम में काशी नरेश परिवार के महाराजा डॉ विभूति नारायण मौजूद रहे. वे अपनी परंपरा को निभाते नजर आए. वहीं गोस्वामी अखाड़ा तुलसीदास की ओर से महंत विशंभर नाथ मिश्र कार्यक्रम में मौजूद रहे.


पद्मश्री डॉक्टर राजेश्वर आचार्य ने बताया 1975 में ध्रुपद मिले का शुरुआत महाराजा बनारस ने कराया तब से यह अनवरत चलता आ रहा है.यह 45वांध्रुपद मेला है.कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट जो विलुप्त हो गए थे उन्हें एक मंच मिला.लगभग एक हजार से ज्यादा विदेशी श्रोता यहां शामिल होते हैं.सबसे बड़ी बात है कि चौथी पीढ़ी ध्रुपद मेला का चल रहा है.इससे आने वाली पीढ़ी सीख रही है. विदेशी सीख रहे हैं जान रहे हैं इससे बड़ा सहयोग क्या होगा.

Intro:वाराणसी के अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास की ओर से तुलसी घाट पर आयोजित वार्षिक आयोजन ध्रुपद मेला सुर साज की झंकार पर श्वेता पूरी रात झूमते रहे. कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर कर दिया। और दर्शक भी तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का उत्साहवर्धन करते नजर आए।


Body:चार दिवसीय मेला की तीसरी निशा का आरंभ मछुन्दा की ध्रुपद गायकी से हुआ मछुन्दा के साथ पखावज संगीत तेशया कन्हाईको एवम तानपुरे पर नाव सुजुकी के संगत की मछुन्दा ने गायन का आंरभ राग भिन्नषड्ज में आलाप के साथ चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना से किया। " बोले थे तू ही शिवनाथ रूप" किया।


ध्रुपद मिले के इस कार्यक्रम में काशी नरेश परिवार के महाराजा डॉ विभूति नारायण मौजूद रहे और अपनी परंपरा को निभाते नजर आए वहीं गोस्वामी अखाड़ा तुलसीदास की ओर से महंत विशंभर नाथ मिश्र कार्यक्रम में मौजूद रहे।


Conclusion:पद्मश्री डॉक्टर राजेश्वर आचार्य ने बताया 1975 में ध्रुपद मिले का शुरुआत महाराजा बनारस ने कराया तब से यह अनवरत चलता आरहा है। यह 45 वी ध्रुपद मेला है। कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट जो विलुप्त हो गए थे उन्हें एक मंच मिला। लगभग एक हजार से ज्यादा विदेशी श्रोता यहां शामिल होते हैं। और सबसे बड़ी बात है कि चौथी पीढ़ी ध्रुपद मेला का चल रहा है। किस से आने वाली पीढ़ी सीख रही है विदेशी सीख रहे हैं जान रहे हैं इससे बड़ा सहयोग क्या होगा।

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