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वाराणसी के इन मंदिरों में रुके थे चंद्रशेखर आजाद, बनाते थे रणनीति

वाराणसी के मंदिरों का भी देश की आजादी में काफी बड़ा योगदान रहा. इन मंदिरों में चंद्रशेखर आजाद पुजारी के रूप में रहते थे. साथ ही वह देश की आजादी के लिए रणनीति भी बनाते थे.

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Published : Aug 14, 2019, 10:30 PM IST

बटुक भैरव मंदिर वाराणसी.

वाराणसी: स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का मुख्य ठिकाना काशी हिंदू विश्वविद्यालय और संस्कृत विद्यालय के साथ मठ-मंदिर भी रहते थे. ऐसे में बहुत से क्रांतिकारी मठ-मंदिरों में जीवन यापन करने के साथ ही आजादी की रणनीति भी बनाते थे.

क्रांतिकारियों का केंद्र था वाराणसी
वाराणसी मंदिरों का शहर है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साल 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया. उसके बाद बनारस अधिवेशन हुआ. उस समय बनारस की धरती से एक नाम सामने आया, जो आज तक विश्व पटल पर जीवंत है, वह नाम है- पंडित चंद्रशेखर आजाद का. अपनी बाल्यावस्था से ही आजाद बनारस में रहते थे. एक बार अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 15 बेतों की सजा दी गई. उसके बाद से चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद बताया, तब से पूरा देश उन्हें आजाद के नाम से जानता है.

देश की आजादी में वाराणसी के मंदिरों का रहा बड़ा योगदान, देखें वीडियो.

यह भी पढ़ें: स्वतंत्रता दिवस से पहले PM मोदी के संसदीय क्षेत्र में बढ़ाई गई सुरक्षा

भेष बदलने में माहिर थे आजाद
चंद्रशेखर आजाद अपने फेरारी के दिनों में बनारस के मंदिरों में अपना दिन गुजारते थे. वह यहीं बैठकर देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे. कहा जाता है कि आजाद भेष बदलने में बहुत ही तेज थे. वह भेष बदलकर कई-कई दिनों तक रहते थे. ऐसे में यह भी कहा जाता है कि आजाद ने मंदिरों में काफी समय गुजारा. वह पुजारी के रूप में यहां रहते थे.

यह भी पढ़ें:वाराणसीः 15 अगस्त की तैयारियों के बीच सड़कों पर उतरी महिलाएं

पंडित चंद्रशेखर आजाद बनारस के संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन करने आए थे. आजाद के बारे में कहा जाता है वह काशी के मंदिरों में रहते थे. जैसे-काशी विश्वनाथ मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, काल भैरव मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, बिर्दोपुर स्थित बैजनथा मंदिर. बाल्यकाल से ही चंद्रशेखर आजाद को देश को आजाद कराने की ललक थी. इसीलिए 1920 के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े.
-राकेश पांडेय, इतिहास विभाग के प्रोफेसर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

वाराणसी: स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का मुख्य ठिकाना काशी हिंदू विश्वविद्यालय और संस्कृत विद्यालय के साथ मठ-मंदिर भी रहते थे. ऐसे में बहुत से क्रांतिकारी मठ-मंदिरों में जीवन यापन करने के साथ ही आजादी की रणनीति भी बनाते थे.

क्रांतिकारियों का केंद्र था वाराणसी
वाराणसी मंदिरों का शहर है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साल 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया. उसके बाद बनारस अधिवेशन हुआ. उस समय बनारस की धरती से एक नाम सामने आया, जो आज तक विश्व पटल पर जीवंत है, वह नाम है- पंडित चंद्रशेखर आजाद का. अपनी बाल्यावस्था से ही आजाद बनारस में रहते थे. एक बार अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 15 बेतों की सजा दी गई. उसके बाद से चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद बताया, तब से पूरा देश उन्हें आजाद के नाम से जानता है.

देश की आजादी में वाराणसी के मंदिरों का रहा बड़ा योगदान, देखें वीडियो.

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भेष बदलने में माहिर थे आजाद
चंद्रशेखर आजाद अपने फेरारी के दिनों में बनारस के मंदिरों में अपना दिन गुजारते थे. वह यहीं बैठकर देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे. कहा जाता है कि आजाद भेष बदलने में बहुत ही तेज थे. वह भेष बदलकर कई-कई दिनों तक रहते थे. ऐसे में यह भी कहा जाता है कि आजाद ने मंदिरों में काफी समय गुजारा. वह पुजारी के रूप में यहां रहते थे.

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पंडित चंद्रशेखर आजाद बनारस के संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन करने आए थे. आजाद के बारे में कहा जाता है वह काशी के मंदिरों में रहते थे. जैसे-काशी विश्वनाथ मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, काल भैरव मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, बिर्दोपुर स्थित बैजनथा मंदिर. बाल्यकाल से ही चंद्रशेखर आजाद को देश को आजाद कराने की ललक थी. इसीलिए 1920 के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े.
-राकेश पांडेय, इतिहास विभाग के प्रोफेसर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

Intro:वाराणसी मंदिरों का शहर है। साथ ही विश्व की सबसे प्राचीन नगरी धर्म संस्कृति कला नगरी ने अपने आप को विश्व पटल पर साबित कर दिया। आज हम बात करेंगे आजाद भारत और आजादी के उन दीवानों की जिन्होंने भारत माता पर अपनी न्योछावर कर हमें आज सुकून की जिंदगी दे गए।

स्वतंत्रा आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का मुख्य ठिकाना विश्वविद्यालय और संस्कृत विद्यालय के साथ मठ मंदिर रहते थे ऐसे में बहुत से क्रांतिकारी मठ मंदिरों में जीवन यापन करने के साथ ही आजादी की रणनीति बनाते थे।


Body:हम सब जानते हैं कि वाराणसी मंदिरों का शहर ऐसे में 1920 में महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन शुरू किया उसके बाद बनारस अधिवेशन हुआ तो तब तक बनारस ने क्रांतिकारियों को जन्म देना शुरू कर दिया था ऐसे में बनारस की धरती से ही एक नाम सामने आया जो आज तक विश्व पटल पर जीवंत है वह नाम है पंडित चंद्रशेखर आजाद अपनी बाल्यावस्था से ही आजाद बनारस रहते थे एक बार अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 15 बेतो की सजा दी गई। उसके बाद से चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद बताया बनारस का यह वही ज्ञानवापी क्षेत्र है जहां पर चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद बताया और तब से पूरा देश उन्हें आजाद के नाम से जानता है।




Conclusion:चंद्रशेखर आजाद अपने फेरारी के दिनों में बनारस के मंदिरों में अपना दिन गुजारते थे वह यहीं बैठकर देश की आजादी की रणनीति बनाते थे। ऐसे में हम बात करें तो बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर, बाबा काल भैरव मंदिर, बाबा बटुक भैरव मंदिर के विरदोपुर सिथित बैजनथा महादेव का मंदिर खास है। कहा जाता है कि आजाद भेष बदलन में बहुत ही तेज थे वह भेष बदलकर कई-कई दिनों तक रहते थे ऐसे में यह भी कहा जाता है कि आजाद इस मंदिर पर काफी समय गुजारा और वह पुजारी के रूप में यहां रहते थे।


काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया पंडित चंद्रशेखर आजाद बनारस के संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन करने आए थे। बनारस की एक संस्कार रहा है कि यहां पर विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए मठ मंदिरों में रहकर अध्ययन करना पड़ता था पंडित चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है वह काशी के मंदिरों में रहते थे जैसे काशी विश्वनाथ मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, काल भैरव मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, बिर्दोपुर स्थित बैजनथा मंदिर। बाल्यकाल से ही चंद्रशेखर आजाद को देश आजाद कराने की ललक थी इसीलिए 1920 के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े अंग्रेजी अफसरों द्वारा उन्हें पकड़ लिया गया फिर उन्होंने अपना नाम आजाद बताया और हमेशा के लिए आजाद ही रह गए। इसके साथ ही वह बहुत से स्थानों पर रहते थे काशी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हॉस्टलों में काशी विद्यापीठ में रहते थे उनके जानने वालों ने बताया है।कई पुस्तको इस बात उल्लेख है।

15 अगस्त स्पेशल खबर एडिट नहीं है।

अशुतोष उपाध्याय

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