वाराणसी: स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का मुख्य ठिकाना काशी हिंदू विश्वविद्यालय और संस्कृत विद्यालय के साथ मठ-मंदिर भी रहते थे. ऐसे में बहुत से क्रांतिकारी मठ-मंदिरों में जीवन यापन करने के साथ ही आजादी की रणनीति भी बनाते थे.
क्रांतिकारियों का केंद्र था वाराणसी
वाराणसी मंदिरों का शहर है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साल 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया. उसके बाद बनारस अधिवेशन हुआ. उस समय बनारस की धरती से एक नाम सामने आया, जो आज तक विश्व पटल पर जीवंत है, वह नाम है- पंडित चंद्रशेखर आजाद का. अपनी बाल्यावस्था से ही आजाद बनारस में रहते थे. एक बार अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 15 बेतों की सजा दी गई. उसके बाद से चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद बताया, तब से पूरा देश उन्हें आजाद के नाम से जानता है.
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भेष बदलने में माहिर थे आजाद
चंद्रशेखर आजाद अपने फेरारी के दिनों में बनारस के मंदिरों में अपना दिन गुजारते थे. वह यहीं बैठकर देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे. कहा जाता है कि आजाद भेष बदलने में बहुत ही तेज थे. वह भेष बदलकर कई-कई दिनों तक रहते थे. ऐसे में यह भी कहा जाता है कि आजाद ने मंदिरों में काफी समय गुजारा. वह पुजारी के रूप में यहां रहते थे.
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पंडित चंद्रशेखर आजाद बनारस के संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन करने आए थे. आजाद के बारे में कहा जाता है वह काशी के मंदिरों में रहते थे. जैसे-काशी विश्वनाथ मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, काल भैरव मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, बिर्दोपुर स्थित बैजनथा मंदिर. बाल्यकाल से ही चंद्रशेखर आजाद को देश को आजाद कराने की ललक थी. इसीलिए 1920 के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े.
-राकेश पांडेय, इतिहास विभाग के प्रोफेसर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय