वाराणसी: पावन पर्व नवरात्रि के 9 दिन तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की पूजा की जाती है. नवरात्रि का आठवां दिन महागौरी को समर्पित होता है. इन 9 दिनों में 2 दिन ऐसे होते हैं जो सनातन धर्म में विशेष महत्व रखते हैं. यह दिन महाअष्टमी व महानवमी के नाम से जाने जाते हैं. इस बार चैत्र नवरात्रि में महाअष्टमी का पूजन 9 अप्रैल एवं महानवमी 10 अप्रैल को मनाई जाएगी, सनातन धर्म में नवरात्र के इन 2 दिनों का विशेष महत्व है. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 से 2 के बीच है.
नवरात्रि को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के प्रो सुभाष पांडेय ने बताया कि हमारे सनातन धर्म में दो प्रकार के नवरात्र होते हैं. एक शारदीय नवरात्र और दूसरा वासंतिक नवरात्र. चैत्र शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र के 9 दिन अपने आप में काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इनमें से आठवां दिन (महाअष्टमी) बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि धर्म शास्त्रों के मुताबिक इसी नवरात्रि की अष्टमी तिथि को भवानी की उत्पत्ति मानी जाती है.
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प्रोफेसर पांडेय का कहना है कि माता भवानी के साथ भगवती तारा जो 10 महाविद्याओं में निपुण हैं. उनकी उत्पत्ति भी इसी दिन मानी जाती है और इस बार की महाष्टमी तो विशेष फल लेकर आ रही हैं. इस बार महाअष्टमी के दिन पुनर्वसु योग बन रहा है. यह योग अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है और यदि महाअष्टमी के दिन यह योग बन रहा हो तो इस दिन कुछ विशेष कार्य करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है.
उन्होंने बताया कि इसके लिए आपको विशेष रूप से अशोक की कली से प्रासन्न (ग्रहण) करना होगा. ऐसा करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाएगी. यह योग व्यक्ति को निरोग करने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होता है. नवरात्रि महाष्टमी को यह योग मिल जाए तो इससे उत्तम तो कुछ हो ही नहीं सकता और इस बार यह योग का महाष्टमी पर आना बेहद फलकारी साबित होने वाला है.
प्रोफेसर पांडेय का कहना है कि महाष्टमी का दिन सनातन धर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है. इस दिन कन्याओं को भोजन कराने के साथ माता की ज्योत जलाने की परंपरा निभाई जाती है. यह बेहद महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाता है क्योंकि 9 दिनों तक व्रत करने वाले लोग महाअष्टमी के दिन कन्या पूजन कर इन्हें भोजन कराते हैं और माता के अलग-अलग रूप की 9 दिनों तक पूजा करने के अनुष्ठान की पूर्ति भी करते हैं.
महाअष्टमी पूजन के बाद महानवमी का दिन विशेष फलदाई होता है. चैत्र नवरात्रि में नवमी तिथि का महत्व इसलिए भी होता है, क्योंकि इस दिन रामनवमी के रूप में भी इसे मनाया जाता है. एक तरफ जहां महाअष्टमी को भवानी की उत्पत्ति हुई थी तो नवमी तिथि को हमारे परम ब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की उत्पत्ति मानी जाती है. इस दिन प्रभु श्री राम का जन्म मध्यान्ह के बाद अभिजीत मुहूर्त में किया जाता है.
उन्होंने बताया कि किसी भी त्यौहार में मुहूर्त का विशेष महत्व माना जाता है. महा अष्टमी के दिन इस बार मुहूर्त की कोई बंदिश नहीं होगी, क्योंकि रात्रि 10:26 तक अष्टमी तिथि प्राप्त हो रही है. नवमी को अभिजीत मुहूर्त में प्रभु श्री राम का जन्म करने के साथ ही हवन इत्यादि का कार्य भी पूरा करना होगा.
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