वाराणसी: दीपावली का त्यौहार अंधकार में प्रकाश फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. हमारे समाज में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो अंधकार में होते हुए दूसरों को प्रकाशित करने का काम कर रहे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं उन नेत्रहीन बेटियों की जो दिवाली पर दूसरों के घरों को रोशन करने का काम कर रहीं हैं.
वाराणसी स्थित जीवन ज्योति विद्यालय में बनारस के साथ-साथ आसपास के जिलों की बच्चियां भी पढ़ने आतीं हैं. यहां पर नेत्रहीन बच्चियों के साथ अन्य दिव्यांग बच्चों को भी समाज में सशक्त होने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाती है. दीपावली के मौके पर यह नेत्रहीन बच्चियां दूसरों के जीवन में प्रकाश भरने के लिए खास तरह की मोमबत्तियां और दीये तैयार कर (blind girls making Candles and diyas)रहीं हैं. ये बच्चे पिछले दो महीने से दीये और मोमबत्ती बनाने में जुट हुए है.
सबसे बड़ी बात यह है कि इस काम में नेत्रहीन बच्चियों के साथ शारीरिक रूप से अन्य दिव्यांग बच्चे भी जी जान से जुटे हुए है. इनमें मूक-बधिर और दिव्यांग भी शामिल हैं. ऐसे बच्चों को मोमबत्ती और दीपक बनाना सिखाया गया है. इन्होंने अपनी मेहनत और लगन से कई प्रकार की मोमबत्तियां बनाई हैं. जो बच्चे रंगों की पहचान नहीं कर सकते, उन बच्चों ने दीपक में रंग भरे हैं. जिन बच्चों ने कभी रोशनी नहीं देखी उन बच्चों ने दिवाली के दिन कई घरों को रोशनी देने का सामान तैयार किया है.
इस विद्यालय में इन दिव्यांग बच्चों की प्रतिभा को न सिर्फ निखारा जा रहा है, बल्कि इनके सपनों को तस्वीर भी दी जा रही है. स्पर्श से शुरू होकर सांचे में ढलने वाले इनके दीये और मोमबत्तियां अब पूरे देश में उजाला करने के लिए तैयार हैं. इस खास तरह के प्रयास को लेकर स्कूल की टीचर्स का कहना है कि बनारस समेत आसपास के जिलों से नेत्रहीन और किसी भी तरह से दिव्यांग बच्चों को खोज कर यहां लाया जाता है. इनके माता-पिता को समझाकर उम्र के हिसाब से एडिशन कराया जाता है. इसके इंटर तक स्पेशल वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है, ताकि वह समाज में अपने आप को दूसरों से अलग न समझें और खुद को स्टाइलिश कर सके. दीपावली के मौके पर नेत्रहीन बच्चियों के द्वारा बनाई इन मोमबत्तियां को ओपन मार्केट में बेचा जाता है और इसके जरिए आने वाले पैसे को इन्हीं के विकास में खर्च भी किया जाता है.
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