वाराणसी: हमारे आंगन में चहकने वाली नन्हीं सी चिड़िया जिसे देख कर हमारा बचपन बीता, जिसे सुनकर सुबह के आंखें खुलती थी. विकास की अंधाधुंध दौड़ ने मेरी प्यारी सी सुरीली आवाज पर ताला लगा दिया है. 12 वर्ष पहले उसे बचाने को लेकर माह अभियान शुरू किया गया. जिसे नाम दिया गया विश्व गौरेया दिवस. गौरेया हमारी जीवनसाथी होती थी जो घरों में अपना आशियाना बनाया करती थी. धीरे धीरे उसके आशियाने उजड़ते गए और गौरेया विलुप्त प्रजाति में तब्दील हो गई. विश्व गौरेया दिवस पर ही सही अब इसको लेकर जागरूकता तेज हो गई है. अब लोग अपने घरों में फिर से गौरैया को संरक्षित करने में जुट गई है.
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वाराणसी के आनंद और नीलू के आवास पर गौरैया सहित सभी पक्षियों की देखभाल की अच्छी व्यवस्था की गई है, जो उनके जीवन को संरक्षित करने में सहायक होगा.
आनंद ने बताया कि बीते 3 सालों से चिड़ियों के खाने-पीने व रहने की सुरक्षित व्यवस्था की गई है. जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी एक अद्भुत पहल मानी जा रही है. उन्होंने आगे बताया कि गौरैया और प्रकृति के अस्तित्व पर आए संकट में ऐसे प्रयास से इन जीवों को नई संजीवनी मिलेगी और वर्तमान में इन्हीं प्रयासों से लगभग 500 गौरैया उनके आवास पर आती हैं.
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