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बीएचयू से अच्छी खबर: अब नीम की पत्ती और फूल से बनेगी कैंसर की दवा - BHU Zoology Department

बीएचयू जूलॉजी डिपार्टमेंट द्वारा नीम की पत्तियों और उसके फूल से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लिए सस्ती दवा बनाने का दावा किया है. यह रिसर्च अमेरिका से प्रकाशित होने वाली अंतरराष्ट्रीय जनरल एनवायरनमेंट टास्कइकोलॉजी में प्रकाशित हो चुका है.

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Published : Apr 14, 2022, 3:54 PM IST

वाराणसीः सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एक अच्छी खबर है. जहां जूलॉजी डिपार्टमेंट द्वारा नीम की पत्तियों और उसके फूल से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लिए सस्ती दवा बनाने का दावा किया है. यह दवा नीम के फूल में पाए जाने वाले निंबोलाइड्स से तैयार होगी. चूहों पर इसके क्लीनिकल ट्रायल को पूरा किया जा चुका है. यह रिसर्च अमेरिका से प्रकाशित होने वाली अंतरराष्ट्रीय जनरल एनवायरनमेंट टास्कइकोलॉजी में प्रकाशित हो चुका है. सब कुछ सही रहा तो जल्द ही है दवा मार्केट में आएगी, जिससे मरीजों को काफी फायदा होगा.

बीएचयू जूलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार, प्रदीप कुमार जैसवारा और उनकी रिसर्च टीम ने नीम की पत्ती और फूल में पाए जाने वाले निंबोलाइड्स को कैंसर ग्रस्त चूहों में इंजेक्ट किया तो एक महीने बाद काफी सुखद रिजल्ट देखने को मिले. जिन चूहों में निंबोलायड थे. वे 40 दिन तक मरे ही नहीं. वहीं, जो चूहे बिना निंबोलायड और कीमोथेरेपी ले रहे थे, उनकी मौत 20-25 दिन के अंदर हो गई. खास बात यह है कि निंबोलाइड्स वाले चूहे पर ना तो इस दवा का कोई साइडइफेक्ट पड़ा और न ही इम्युनिटी कम हुई. जबकि, नॉर्मल चूहे की कीमो से किडनी और दूसरे अंग भी प्रभावित होते जा रहे थे.

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यह भी पढ़ें- झारखंड रोप-वे हादसे के बाद अलर्ट मोड पर मिर्जापुर रोप-वे, इस तरह से होता है संचालन

डॉ. अजय कुमार ने बताया कि निंबोलायड आपके ब्लड में पाए जाने वाले फाइटर सेल्स को मरने नहीं देता. यह केवल कैंसर सेल्स को टारगेट करके खत्म करता है. भोजन करने के बाद जो ग्लूकोज शरीर कोशिकाओं को मिलता है, उसमें कैंसर से संक्रमित कोशिकाएं भी अपनी संख्या बढ़ाने के लिए काफी एनर्जी ले लेती हैं. ऐसे में निंबोलाइड्स में यह देखा गया कि यह ग्लूकोज को पहुंचाने वाले ग्लाइकोलाइसिस पाथ-वे (मार्ग) (जिस पर कैंसर सेल पूरी तरह से निर्भर होता है) उसी को ब्लॉक कर देता है

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उन्होंने आगे बताया कि इससे कैंसर सेल्स को ऊर्जा मिलनी बंद हाे जाती है. डॉ. कुमार ने कहा कि हमने रिसर्च के दौरान इन विट्रो रिसर्च (बॉडी के बाहर रिसर्च) में देखा कि ब्लड में मिलने वाले फाइटर सेल T Cell, मोनाेसाइट्स और नेचुरल किलर सेल्स कैंसर के संक्रमण को खत्म करने में तेजी से काम कर रहे थे. जबकि, कैंसर में होता यह है कि ये फाइटर सेल ही क्षीण हो जाती है. लैब में कैंसर ग्रस्त चूहों में देखा गया कि जिन्हें निंबोलाइड्स दिया गया था. उनके ब्लड पैरामीटर सेल ठीक थे.
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अब क्लीनिकल ट्रायल की तैयारीः अब इस निंबोलाइड्स का क्लीनिकल ट्रायल यानि कि ह्यूमन बॉडी पर काम करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए बहुत सी परमिशन और प्रक्रिया से गुजरना होगा. इसमें सफल होते हैं तो निंबोलाइड्स पर भारत की सबसे सस्ती दवा बनाने पर काम होगा. उन्होंने बताया कि यह रिसर्च दो भाग में पब्लिश हुआ है.

उन्होंने कहा कि कैंसर में हम रोगी की सर्वाइवल टाइमिंग को बढ़ा सकते हैं. वहीं, कीमोथेरेपी के नुकसान से भी बचाएंगे. नीम पर इस तरह की स्टडी अभी तक देश में नहीं हुई है. इस रिसर्च टीम का हिस्सा विशाल कुमार गुप्ता, राजन कुमार तिवारी व शिव गोविंद रावत हैं. ये सभी जूलॉजी विभाग में रिसर्च स्कॉलर हैं. यह शोध कार्य दुनिया की एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'एनवायरनमेंटल टॉक्सिकोलॉजी' में दो भागों में प्रकाशित हुई है.

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वाराणसीः सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एक अच्छी खबर है. जहां जूलॉजी डिपार्टमेंट द्वारा नीम की पत्तियों और उसके फूल से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लिए सस्ती दवा बनाने का दावा किया है. यह दवा नीम के फूल में पाए जाने वाले निंबोलाइड्स से तैयार होगी. चूहों पर इसके क्लीनिकल ट्रायल को पूरा किया जा चुका है. यह रिसर्च अमेरिका से प्रकाशित होने वाली अंतरराष्ट्रीय जनरल एनवायरनमेंट टास्कइकोलॉजी में प्रकाशित हो चुका है. सब कुछ सही रहा तो जल्द ही है दवा मार्केट में आएगी, जिससे मरीजों को काफी फायदा होगा.

बीएचयू जूलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार, प्रदीप कुमार जैसवारा और उनकी रिसर्च टीम ने नीम की पत्ती और फूल में पाए जाने वाले निंबोलाइड्स को कैंसर ग्रस्त चूहों में इंजेक्ट किया तो एक महीने बाद काफी सुखद रिजल्ट देखने को मिले. जिन चूहों में निंबोलायड थे. वे 40 दिन तक मरे ही नहीं. वहीं, जो चूहे बिना निंबोलायड और कीमोथेरेपी ले रहे थे, उनकी मौत 20-25 दिन के अंदर हो गई. खास बात यह है कि निंबोलाइड्स वाले चूहे पर ना तो इस दवा का कोई साइडइफेक्ट पड़ा और न ही इम्युनिटी कम हुई. जबकि, नॉर्मल चूहे की कीमो से किडनी और दूसरे अंग भी प्रभावित होते जा रहे थे.

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डॉ. अजय कुमार ने बताया कि निंबोलायड आपके ब्लड में पाए जाने वाले फाइटर सेल्स को मरने नहीं देता. यह केवल कैंसर सेल्स को टारगेट करके खत्म करता है. भोजन करने के बाद जो ग्लूकोज शरीर कोशिकाओं को मिलता है, उसमें कैंसर से संक्रमित कोशिकाएं भी अपनी संख्या बढ़ाने के लिए काफी एनर्जी ले लेती हैं. ऐसे में निंबोलाइड्स में यह देखा गया कि यह ग्लूकोज को पहुंचाने वाले ग्लाइकोलाइसिस पाथ-वे (मार्ग) (जिस पर कैंसर सेल पूरी तरह से निर्भर होता है) उसी को ब्लॉक कर देता है

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उन्होंने आगे बताया कि इससे कैंसर सेल्स को ऊर्जा मिलनी बंद हाे जाती है. डॉ. कुमार ने कहा कि हमने रिसर्च के दौरान इन विट्रो रिसर्च (बॉडी के बाहर रिसर्च) में देखा कि ब्लड में मिलने वाले फाइटर सेल T Cell, मोनाेसाइट्स और नेचुरल किलर सेल्स कैंसर के संक्रमण को खत्म करने में तेजी से काम कर रहे थे. जबकि, कैंसर में होता यह है कि ये फाइटर सेल ही क्षीण हो जाती है. लैब में कैंसर ग्रस्त चूहों में देखा गया कि जिन्हें निंबोलाइड्स दिया गया था. उनके ब्लड पैरामीटर सेल ठीक थे.
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अब क्लीनिकल ट्रायल की तैयारीः अब इस निंबोलाइड्स का क्लीनिकल ट्रायल यानि कि ह्यूमन बॉडी पर काम करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए बहुत सी परमिशन और प्रक्रिया से गुजरना होगा. इसमें सफल होते हैं तो निंबोलाइड्स पर भारत की सबसे सस्ती दवा बनाने पर काम होगा. उन्होंने बताया कि यह रिसर्च दो भाग में पब्लिश हुआ है.

उन्होंने कहा कि कैंसर में हम रोगी की सर्वाइवल टाइमिंग को बढ़ा सकते हैं. वहीं, कीमोथेरेपी के नुकसान से भी बचाएंगे. नीम पर इस तरह की स्टडी अभी तक देश में नहीं हुई है. इस रिसर्च टीम का हिस्सा विशाल कुमार गुप्ता, राजन कुमार तिवारी व शिव गोविंद रावत हैं. ये सभी जूलॉजी विभाग में रिसर्च स्कॉलर हैं. यह शोध कार्य दुनिया की एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'एनवायरनमेंटल टॉक्सिकोलॉजी' में दो भागों में प्रकाशित हुई है.

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