वाराणसीः बीएचयू के पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान में महामना उत्कृष्टता केंद्र (एमसीईसीसीआर) के वैज्ञानिक ने एक रिसर्च किया है. जिसमें उन्होंने तीव्र हवाओं की घटनाओं के नए अति प्रभावित क्षेत्र बनने का दावा किया है. जो उत्तर पश्चिम मध्य और दक्षिण मध्य क्षेत्र में निवास करने वाले मानव जातियों के लिए अच्छा नहीं है. तीनों क्षेत्रों में प्रभावी गर्म हवा विरोधी कार्य योजना विकसित करने की आवश्यकता है. इस पर वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुए शोध के मुताबिक महज 8 साल में ही ब्लैक कार्बन में वाराणसी में होने वाली मौतों की संख्या में 5 फीसदी का इजाफा हुआ है. साल 2009 से 2016 के बीच वायु प्रदूषण के आकड़ों पर अध्ययन किया गया जिससे ये जानकारी सामने आई है. साल 2009 में कार्बन से कुल 7,718 मौत दर्ज की गई. साल 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 8,449 पहुंच गया. वर्तमान वाराणसी में फेफड़ों की बीमारी से रोजाना और 27 लोगों की मौत होती है. जबकि 10 साल पहले तक रोजाना 21 मौतें होती थी.
वैज्ञानिक प्रोफेसर आरके माल ने बताया कि हमारे पास पिछले 7 सालों में तापमान के जो डांटा उपलब्ध हैं. उसके हिसाब से स्टडी किया गया है. जिसमें पाया गया है कि जो दक्षिण मध्य, भारत का उत्तर, पश्चिम क्षेत्र और मध्य दक्षिण क्षेत्र में गर्म हवायें बढ़ी हैं. इसकी वजह से उन क्षेत्रों में रहने वाले जनता के स्वाथ्य और अन्य चीजों पर प्रभाव पड़ा है. आगे भी प्रभाव पड़ने की आशंका है. इसके अलावा हम लोगों ने पाया है कि आंध्रप्रदेश और उड़ीसा में गर्म हवायें बढ़ गई हैं. पहले यहां पर गर्म हवा के क्षेत्र नहीं थे. इसकी वजह से वहां के सरकार को पॉलिसी के तरीके में बदलाव लाना होगा और हिट एक्शन प्लान की जरूरत होगी.
उत्तर प्रदेश और बिहार में पहले से ही गर्म हवा चलती रही है. लेकिन यहां पर रिसर्च में यह बात पता चली है कि गर्म हवाओं की रफ्तार और संख्या में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई. इसकी वजह से हम लोगों ने डाटा में यह पाया है कि बहुत लोगों की मरने की भी संख्या बढ़ी है. जो चिंता का विषय है. इसके लिए कुछ प्लांट की जरूरत पड़ेगी. भारत सरकार ने कुछ स्थानों पर हिट एक्शन प्लांट भी चालू किया है. अहमदाबाद और इंदौर शहरों के लिए कुछ हिट एक्शन प्लान तैयार हुए हैं, वाराणसी और लखनऊ के लिए भी हम लोग हिट एक्शन प्लान तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. जिसका एक प्रोफार्मा बनाकर कुछ दिनों में सरकार को देंगे.
प्रोफेसर ने बताया कि हमारे इस रिसर्च का प्रकाशन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्लाइमेटोलॉजी पत्रिका में प्रकाशन हुआ है. जिसमें लू (गर्म हवा) और गंभीर लू (गर्म हवा) को भारत में मृत्यु दर से जोड़कर प्रस्तुत किया गया है. उसके साथी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका अट्टमाँस्फियरिक रिसर्च में प्रकाशित किया गया था. प्रोफेसर के मुताबिक इस शोध में यह बताया गया कि वाराणसी में ब्लैक कार्बन की वजह से महज 10 यूनिट ब्लड कार्बन की बढ़ोतरी से ही वाराणसी में औसत मृत्यु दर 5 फीसदी बढ़ गई है.
सौम्या सिंह ने बताया कि पिछले 30 सालों में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्रीन हाउस गैसेस के बहुत सारे उत्सर्जन की वजह से विश्व का तापमान बढ़ता जा रहा है. इसका एक नकारात्मक प्रभाव हर क्षेत्र पर पड़ा है. चाहे वो कृषि से जुड़े हों. स्वास्थ्य से जुड़े हों. हर क्षेत्र में पानी पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. जब हमने ये स्टडी किया तो पता चला कि तापमान का सीधा प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है. खासकर के वो लोग जो सांस और हृदय संबंधित रोग से पीड़ित है. हमने ये देखा कि पिछले 66 साल में भारत में हीटवेव (एचडब्ल्यू) और गंभीर हीटवेव (एचएसडब्ल्यू) जो कि सीधे टेंपरेचर से रिलेटेड हैं. उनका क्या ट्रेंड रहा है. अगर वो बढ़ें हैं, तो किन क्षेत्रों में बढ़ें हैं. इसकी स्टडी करना बहुत ही जरूरी था. हम यह बता सकें कि जहां पर हीटवेव और गंभीर हीटवेव प्रभाव पड़ने वाला है. उन क्षेत्रों के लिए हम क्या कर सकते हैं. हीटवेव एक्शन प्लान बना सकते हैं. हम लोगों तक यह जानकारी किस प्रकार पहुंचा सकते हैं. हमने जो स्टडी की है वह ग्रेट लेवल पर की है और प्वाइंट 5 डिग्री के रेगुलेशन पर की है. इससे हम सबसे छोटी इकाई तक पहुंच सकते हैं. जल्द ही हम लोग प्लान बना कर सरकार को प्रस्तुत करेंगे कि वहां पर और कार्य किया जाए. हम डायरेक्ट इस कार्य को लेकर जनता से जुड़ेंगे.
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सौम्या सिंह ने कहा कि ब्लैक कार्बन में कार्डियोवैस्कुलर, बीपी दिल का दौरा, स्ट्रोक इसके साथ ही सांस संबंधी रोग में इजाफा हो रहा है. हवा की खराब क्वालिटी के कारण सबसे ज्यादा मौत अस्थमा मरीज की हो रही है. वहीं PM2.5 और PM 10 जैसे छोटे प्रदूषण शरीर के अंदर फेफड़ों को संक्रमित कर देते हैं. इसके साथ ही खून के सहारे यह प्रदूषण ह्रदय, किडनी और लीवर को भी नुकसान पहुंचाता है.