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वाराणसी में भाजपा का जलवा कायम, काशी की जनता ने एक बार फिर सौंपी बागडोर

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Published : May 14, 2023, 3:19 PM IST

बनारस में एक भाजपा ने भगवा लहराया है. बाबा की नगरी में हमेशा से ही नगर निगम की सीट पर भारतीय पार्टी की कब्जा रहा है. यहां की राजनीति भी आस्था में डूबी होती है. काशी के लोगों को राष्ट्र के लिए काम करने वाली पार्टी के साथ ही काशी की परंपरा का निर्वहन करने वाली सरकार चाहिए.

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बनारस

वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी की जनता ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बाबा विश्वनाथ के भक्त सिर्फ राष्ट्र और संस्कृति के ही साथ खड़े हैं, क्योंकि जो इन दोनों बातों के साथ खड़ा रहेगा वो विकास के काम भी कर सकेगा. जिसे इन दोनों मुद्दों से मतलब नहीं वह एक पक्षीय कार्रवाई करेगा और काशी की परंपरा का ध्वजवाहक कभी नहीं बन सकेगा. काशी की तो परंपरा ही यही है कि पहले बाबा के सामने सिर झुकाओ और परिवार के लिए कमाओ. काशी के लोगों ने भाजपा को नगर निगम में मौका देकर एक बार फिर शहर की सरकार भाजपा के हाथों में सौंप दी है.

यूं तो काशी है ही अल्हड़ों का शहर. ऊपर से जब बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद हो तो भला कौन ही अपनी परंपराओं से अछूता रहेगा. फिर जो काशी की परंपरा को नहीं निभाना जानता वो काशी का कैसे होकर रहेगा. यही वजह है कि काशी अपने मेयर का चुनाव ठीक ढंग से सोचसमझकर करती है. वाराणसी में नए मेयर के आगमन ने इतिहास को दोहरा दिया है.

लगातार भाजपा के हाथों में ही रही है निगम की कुर्सी
वाराणसी नगर निमग के मेयर की कुर्सी भाजपा के ही पास रही है. यहां पर पहली बार साल 1995 में नगर निगम का चुनाव हुआ था. इस पहले चुनाव में ही भाजपा ने बाजी मारते हुए जीत हासिल की थी. भाजपा ने सरोज सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था. इसके बाद साल 2000 में चुनाव हुआ. इस बार भी नतीजा वही रहा. भाजपा की तरफ से मैदान में उतरे अमरनाथ यादव ने जीत हासिल की. साल 2006 में कौशलेंद्र सिंह पटेल, साल 2012 में राम गोपाल मोहाले और साल 2017 में मृदुला जायसवाल ने भाजपा की तरफ से जीत हासिल की.

काशी ने नगर निगम की सत्ता राष्ट्रवादियों के हाथ सौंपी
वाराणसी के राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि काशी के लोगों को सबसे अधिक उनकी परंपरा प्रिय है. काशी के लोग खुद को बाबा विश्वनाथ का सेवक मानते हैं. फिर वो चाहे कितना बड़ा नेता ही क्यों न हो. ऐसे में यहां की राजनीति भी आस्था में डूबी होती है. काशी के लोगों को राष्ट्र के लिए काम करने वाली पार्टी के साथ ही काशी की परंपरा का निर्वहन करने वाली सरकार चाहिए. जो सभी तरह के लोगों को एकसाथ लेकर चल सके. जो बाबा विश्वनाथ को भी माने और जो भारत को गर्व कराने वाले कार्य करे. यहां के लोग भाजपा को इसका विकल्प मानते हैं.

काशीवासियों ने फिर दोहराया इतिहास
काशी के लोगों ने भाजपा को एक बार फिर मौका देते हुए इतिहास को दोहराया है. भाजपा की तरफ से चुनावी मैदान में उतरे अशोक तिवारी ने भारी वोटों के साथ जीत हासिल ही है. यानी इस जीत के साथ भाजपा ने अपना रिकॉर्ड बरकरार रखा है. भाजपा की जीत यह बताती है कि साल 1995 से लेकर 2017 तक जितने भी मुद्दों पर चुनाव हुए हैं उनमें भाजपा खरी उतरी है. इसके साथ ही काशी के लोगों की हितों की रक्षा और यहां की परंपरा का विर्वहन भी किया गया है. इस जीत ने एक बार फिर भाजपा के कंधों पर जिम्मेदारी दे दी है.

इस बार का चुनाव परिणाम
भाजपा की तरफ से अशोक तिवारी, सपा से ओमप्रकाश सिंह और कांग्रेस की तरफ से अनिल श्रीवास्तव चुनावी मैदान में थे. नगर निगम में हुए चुनाव में अशोक तिवारी ने सभी को पीछे छोड़ते हुए 2,91,852 वोट हासिल किए हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के ओमप्रकाश सिंह को 1,58,715 वोट मिले हैं. वहीं, कांग्रेस की तरफ से उतरे प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव के खाते में 94,288 वोट आए हैं. इस बार जिस तरह से विपक्ष ने माहौल तैयार किया था. ऐसा लग रहा था कि भाजपा काफी कमजोर रहेगी.

साल 2017 के क्या थे नगर निगम चुनाव परिणाम
साल 2017 में हुए नगर निगम के चुनाव में भी भाजपा ने ही बाजी मारी थी. भाजपा की तरफ से उम्मीदवार मृदुला जायसवाल को 1,92,188 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार साधना गुप्ता को 99,272 वोट मिले. इसके साथ ही कांग्रेस ने सपा को कड़ी टक्कर दी थी. कांग्रेस को सपा से अधिक वोट मिले थे. कांग्रेस से उम्मीदवार थीं शालिनी यादव, जिन्हें 1,13,345 वोट मिले थे. वहीं, सबसे कम वोट बसपा के उम्मीदवार साधना चौरसिया को 28,959 वोट मिले थे.

पढ़ेंः काशी में चला योगी का 'बुलडोजर', विपक्ष हुआ जमींदोज, टूटा 25 साल का रिकॉर्ड

वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी की जनता ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बाबा विश्वनाथ के भक्त सिर्फ राष्ट्र और संस्कृति के ही साथ खड़े हैं, क्योंकि जो इन दोनों बातों के साथ खड़ा रहेगा वो विकास के काम भी कर सकेगा. जिसे इन दोनों मुद्दों से मतलब नहीं वह एक पक्षीय कार्रवाई करेगा और काशी की परंपरा का ध्वजवाहक कभी नहीं बन सकेगा. काशी की तो परंपरा ही यही है कि पहले बाबा के सामने सिर झुकाओ और परिवार के लिए कमाओ. काशी के लोगों ने भाजपा को नगर निगम में मौका देकर एक बार फिर शहर की सरकार भाजपा के हाथों में सौंप दी है.

यूं तो काशी है ही अल्हड़ों का शहर. ऊपर से जब बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद हो तो भला कौन ही अपनी परंपराओं से अछूता रहेगा. फिर जो काशी की परंपरा को नहीं निभाना जानता वो काशी का कैसे होकर रहेगा. यही वजह है कि काशी अपने मेयर का चुनाव ठीक ढंग से सोचसमझकर करती है. वाराणसी में नए मेयर के आगमन ने इतिहास को दोहरा दिया है.

लगातार भाजपा के हाथों में ही रही है निगम की कुर्सी
वाराणसी नगर निमग के मेयर की कुर्सी भाजपा के ही पास रही है. यहां पर पहली बार साल 1995 में नगर निगम का चुनाव हुआ था. इस पहले चुनाव में ही भाजपा ने बाजी मारते हुए जीत हासिल की थी. भाजपा ने सरोज सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था. इसके बाद साल 2000 में चुनाव हुआ. इस बार भी नतीजा वही रहा. भाजपा की तरफ से मैदान में उतरे अमरनाथ यादव ने जीत हासिल की. साल 2006 में कौशलेंद्र सिंह पटेल, साल 2012 में राम गोपाल मोहाले और साल 2017 में मृदुला जायसवाल ने भाजपा की तरफ से जीत हासिल की.

काशी ने नगर निगम की सत्ता राष्ट्रवादियों के हाथ सौंपी
वाराणसी के राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि काशी के लोगों को सबसे अधिक उनकी परंपरा प्रिय है. काशी के लोग खुद को बाबा विश्वनाथ का सेवक मानते हैं. फिर वो चाहे कितना बड़ा नेता ही क्यों न हो. ऐसे में यहां की राजनीति भी आस्था में डूबी होती है. काशी के लोगों को राष्ट्र के लिए काम करने वाली पार्टी के साथ ही काशी की परंपरा का निर्वहन करने वाली सरकार चाहिए. जो सभी तरह के लोगों को एकसाथ लेकर चल सके. जो बाबा विश्वनाथ को भी माने और जो भारत को गर्व कराने वाले कार्य करे. यहां के लोग भाजपा को इसका विकल्प मानते हैं.

काशीवासियों ने फिर दोहराया इतिहास
काशी के लोगों ने भाजपा को एक बार फिर मौका देते हुए इतिहास को दोहराया है. भाजपा की तरफ से चुनावी मैदान में उतरे अशोक तिवारी ने भारी वोटों के साथ जीत हासिल ही है. यानी इस जीत के साथ भाजपा ने अपना रिकॉर्ड बरकरार रखा है. भाजपा की जीत यह बताती है कि साल 1995 से लेकर 2017 तक जितने भी मुद्दों पर चुनाव हुए हैं उनमें भाजपा खरी उतरी है. इसके साथ ही काशी के लोगों की हितों की रक्षा और यहां की परंपरा का विर्वहन भी किया गया है. इस जीत ने एक बार फिर भाजपा के कंधों पर जिम्मेदारी दे दी है.

इस बार का चुनाव परिणाम
भाजपा की तरफ से अशोक तिवारी, सपा से ओमप्रकाश सिंह और कांग्रेस की तरफ से अनिल श्रीवास्तव चुनावी मैदान में थे. नगर निगम में हुए चुनाव में अशोक तिवारी ने सभी को पीछे छोड़ते हुए 2,91,852 वोट हासिल किए हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के ओमप्रकाश सिंह को 1,58,715 वोट मिले हैं. वहीं, कांग्रेस की तरफ से उतरे प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव के खाते में 94,288 वोट आए हैं. इस बार जिस तरह से विपक्ष ने माहौल तैयार किया था. ऐसा लग रहा था कि भाजपा काफी कमजोर रहेगी.

साल 2017 के क्या थे नगर निगम चुनाव परिणाम
साल 2017 में हुए नगर निगम के चुनाव में भी भाजपा ने ही बाजी मारी थी. भाजपा की तरफ से उम्मीदवार मृदुला जायसवाल को 1,92,188 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार साधना गुप्ता को 99,272 वोट मिले. इसके साथ ही कांग्रेस ने सपा को कड़ी टक्कर दी थी. कांग्रेस को सपा से अधिक वोट मिले थे. कांग्रेस से उम्मीदवार थीं शालिनी यादव, जिन्हें 1,13,345 वोट मिले थे. वहीं, सबसे कम वोट बसपा के उम्मीदवार साधना चौरसिया को 28,959 वोट मिले थे.

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