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वाराणसी में है भारत माता का इकलौता 3D मंदिर, 1936 में बापू ने किया था उद्घाटन

देश इस बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती मना रहा है. वहीं महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ा एक ऐसा मंदिर वाराणसी में है, जिसमें न किसी देवता की मूर्ति है और न ही वहां किसी की पूजा होती है. यह महात्मा गांधी के विचारों में हमेशा से बसने वाला भारत माता का मंदिर है. इस मंदिर का उद्घाटन महात्मा गांधी ने 1936 में किया था. इसमें पाकिस्तान समेत अफगानिस्तान से लेकर बांगलादेश से भी आगे तक के अखण्ड भारत को 3D तरीके से दिखाया गया है.

भारत माता मंदिर
भारत माता मंदिर
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Published : Oct 1, 2020, 8:39 PM IST

वाराणसी: 'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'. अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को भारत से भागने पर मजबूर कर देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 2 अक्टूबर को 151वीं जयंती मनाई जाएगी. बापू आज भले हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बातें उनके सिद्धांत और उनके दिखाए रास्ते पर चलकर देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया आगे बढ़ रही है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि उनकी उन स्मृतियों को हम आप तक पहुंचाएं, जिनसे बाबू का विशेष लगाव था. बापू से जुड़ी ऐसी ही एक स्मृति वाराणसी में भारत माता मंदिर के रूप में जानी जाती है. यह वह पवित्र स्थान है, जो बनकर तैयार तो 1924 में हुआ, लेकिन इसका उद्घाटन 25 अक्टूबर 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाथों हुआ.

महात्मा गांधी ने 1936 में किया था मंदिर का उद्घाटन.

वाराणसी के चंदवा सब्जी मंडी इलाके में स्थित यह मंदिर देशभक्त और राष्ट्रवादी लोगों के लिए बड़ा केंद्र है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस मंदिर में न कोई प्रतिमा है और न कोई तस्वीर. यहां पर आजादी के पहले का वह अखंड भारत मौजूद है, जिसमें अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान तक सब समाया है. सफेद मकराना मार्बल पर पहाड़ की ऊंचाई, समुद्र की गहराई और अलग-अलग राज्यों को इसमें खूबसूरती से उकेरा गया है, जिसे देखकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है.

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भारत का 3D नक्शा.

शिव प्रसाद गुप्त ने तैयार की मंदिर के निर्माण की रूपरेखा

राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त ने उस वक्त इस मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तैयार की और महात्मा गांधी से आदेश लेने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू किया. साल 1924 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और 12 सालों बाद महात्मा गांधी ने इस मंदिर का अपने हाथों से उद्घाटन किया. उस वक्त की तस्वीरों से लेकर इस मंदिर में लगे शिलापट्ट तक पर बापू की मौजूदगी का उल्लेख मिलता है. उस वक्त की तस्वीरों में मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते बापू की तस्वीर, राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त के साथ उस वक्त के कई महान नेता भी यहां मौजूद थे. जिस समय ट्रेन और अन्य साधनों की कमी थी उस वक्त भी इस मंदिर के उद्घाटन में 25000 से ज्यादा लोगों की भीड़ देश भर से जुटी थी.

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भारत माता मंदिर का उद्घाटन.

दुनिया में यह एकलौता ऐसा मंदिर है, जहां अखंड भारत की पूजा होती है. अखंड भारत के मानचित्र में जब सीमाएं पाकिस्तान समेत अफगानिस्तान और पूर्व में पश्चिम बंगाल के आगे तक फैली थीं. उस वक्त का नक्शा आपको 3D के रूप में देखने को मिलेगा. वह भी उस वक्त के निर्माण में जब 3D मौजूद ही नहीं था. इस मंदिर में मौजूद केयरटेकर राजू सिंह का कहना है कि मंदिर की देखभाल करते-करते उनको कई साल बीत चुके हैं.

25 शिल्पकार और 30 मजदूरों ने किया था मंदिर का निर्माण

उस वक्त बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने गणितीय सूत्रों के आधार पर दुर्गा प्रसाद खत्री की देख-रेख में 25 शिल्पकार और 30 मजदूरों को लगाकर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मकराना मार्बल पर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका इसमें साफ तौर पर दिखाई देंगे. 450 पर्वत श्रृंखलाएं और चोटिया मैदान, पठार, जलाशय, नदियां, महासागर उनकी ऊंचाई और गहराई सब अंकित हैं. इसकी धरातल भूमि 1 इंच में 2000 फीट दिखाई गई है. चित्र की लंबाई 32 फीट 2 इंच और चौड़ाई 30 फीट 2 इंच है, जिसे 762 खानों में बांटा गया है.

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उद्घाटन के अवसर पर महात्मा गांधी और अन्य.

वहीं इस पवित्र स्थल के बारे में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ओपी सिंह का कहना है कि महात्मा गांधी के आदेश के बाद ही राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त ने इस मंदिर का निर्माण शुरू किया. दूसरे जगह पर मिट्टी पर उकेरे गए मानचित्र को देखकर राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद जी ने मार्बल से इस मंदिर में मानचित्र बनाने की ठानी और बापू से परमिशन के बाद इसे तैयार करवाकर उनके ही हाथों उसका उद्घाटन करवाया. महात्मा गांधी का इस मंदिर से विशेष लगाव था और वह इसके शिलान्यास और उद्धाटन दोनों में आए थे.

वाराणसी: 'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'. अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को भारत से भागने पर मजबूर कर देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 2 अक्टूबर को 151वीं जयंती मनाई जाएगी. बापू आज भले हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बातें उनके सिद्धांत और उनके दिखाए रास्ते पर चलकर देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया आगे बढ़ रही है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि उनकी उन स्मृतियों को हम आप तक पहुंचाएं, जिनसे बाबू का विशेष लगाव था. बापू से जुड़ी ऐसी ही एक स्मृति वाराणसी में भारत माता मंदिर के रूप में जानी जाती है. यह वह पवित्र स्थान है, जो बनकर तैयार तो 1924 में हुआ, लेकिन इसका उद्घाटन 25 अक्टूबर 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाथों हुआ.

महात्मा गांधी ने 1936 में किया था मंदिर का उद्घाटन.

वाराणसी के चंदवा सब्जी मंडी इलाके में स्थित यह मंदिर देशभक्त और राष्ट्रवादी लोगों के लिए बड़ा केंद्र है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस मंदिर में न कोई प्रतिमा है और न कोई तस्वीर. यहां पर आजादी के पहले का वह अखंड भारत मौजूद है, जिसमें अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान तक सब समाया है. सफेद मकराना मार्बल पर पहाड़ की ऊंचाई, समुद्र की गहराई और अलग-अलग राज्यों को इसमें खूबसूरती से उकेरा गया है, जिसे देखकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है.

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भारत का 3D नक्शा.

शिव प्रसाद गुप्त ने तैयार की मंदिर के निर्माण की रूपरेखा

राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त ने उस वक्त इस मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तैयार की और महात्मा गांधी से आदेश लेने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू किया. साल 1924 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और 12 सालों बाद महात्मा गांधी ने इस मंदिर का अपने हाथों से उद्घाटन किया. उस वक्त की तस्वीरों से लेकर इस मंदिर में लगे शिलापट्ट तक पर बापू की मौजूदगी का उल्लेख मिलता है. उस वक्त की तस्वीरों में मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते बापू की तस्वीर, राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त के साथ उस वक्त के कई महान नेता भी यहां मौजूद थे. जिस समय ट्रेन और अन्य साधनों की कमी थी उस वक्त भी इस मंदिर के उद्घाटन में 25000 से ज्यादा लोगों की भीड़ देश भर से जुटी थी.

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भारत माता मंदिर का उद्घाटन.

दुनिया में यह एकलौता ऐसा मंदिर है, जहां अखंड भारत की पूजा होती है. अखंड भारत के मानचित्र में जब सीमाएं पाकिस्तान समेत अफगानिस्तान और पूर्व में पश्चिम बंगाल के आगे तक फैली थीं. उस वक्त का नक्शा आपको 3D के रूप में देखने को मिलेगा. वह भी उस वक्त के निर्माण में जब 3D मौजूद ही नहीं था. इस मंदिर में मौजूद केयरटेकर राजू सिंह का कहना है कि मंदिर की देखभाल करते-करते उनको कई साल बीत चुके हैं.

25 शिल्पकार और 30 मजदूरों ने किया था मंदिर का निर्माण

उस वक्त बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने गणितीय सूत्रों के आधार पर दुर्गा प्रसाद खत्री की देख-रेख में 25 शिल्पकार और 30 मजदूरों को लगाकर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मकराना मार्बल पर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका इसमें साफ तौर पर दिखाई देंगे. 450 पर्वत श्रृंखलाएं और चोटिया मैदान, पठार, जलाशय, नदियां, महासागर उनकी ऊंचाई और गहराई सब अंकित हैं. इसकी धरातल भूमि 1 इंच में 2000 फीट दिखाई गई है. चित्र की लंबाई 32 फीट 2 इंच और चौड़ाई 30 फीट 2 इंच है, जिसे 762 खानों में बांटा गया है.

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उद्घाटन के अवसर पर महात्मा गांधी और अन्य.

वहीं इस पवित्र स्थल के बारे में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ओपी सिंह का कहना है कि महात्मा गांधी के आदेश के बाद ही राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त ने इस मंदिर का निर्माण शुरू किया. दूसरे जगह पर मिट्टी पर उकेरे गए मानचित्र को देखकर राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद जी ने मार्बल से इस मंदिर में मानचित्र बनाने की ठानी और बापू से परमिशन के बाद इसे तैयार करवाकर उनके ही हाथों उसका उद्घाटन करवाया. महात्मा गांधी का इस मंदिर से विशेष लगाव था और वह इसके शिलान्यास और उद्धाटन दोनों में आए थे.

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