ETV Bharat / state

वाराणसी: भारत कला भवन ने लगायी 18वीं सदी के दुर्लभ बटुए की प्रदर्शनी - वाराणसी के भारत कला भवन में लगाया गया प्रदर्शनी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित बीएचयू में भारत कला भवन ने बुधवार को 17वीं और 18वीं सदी के 50 बटुओं की प्रदर्शनी लगाई गई. प्रदर्शनी में लगी बेशकीमती थैलियों की सुंदरता देखते ही बनती थी.

भारत कला भवन ने बीएचयू में बटुओं का लगाया प्रदर्शनी
author img

By

Published : Sep 25, 2019, 11:49 PM IST

वाराणसी: बुधवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन में एक अनूठी पहल से 17वीं से लेकर 18वीं सदी तक के लगभग 50 बटुवों की प्रदर्शनी लगाई गई. प्रदर्शनी में बेशकीमती थैलियों का प्रदर्शन किया गया जिन्हें उस दौर के नामचीन कारीगरों ने हाथों से खूबसूरती की मिसाल बनाया और पीढ़ी दर पीढ़ी ये सिलसिला आज तक चलता रहा.

इसे भी पढ़ें :- वाराणसी: वर्ल्ड टूरिज्म डे पर होगा पदयात्रा का आयोजन, लोगों को किया जाएगा जागरूक

भारत कला भवन में लगी प्रदर्शनी
नवाब वाजिद अली शाह का बटुआ आकर्षण का केंद्र रहा है. नवाब वाजिद अली शाह का (1822 से1887) जरदोजी वाला किमखाब ई बटुआ, जो कभी काशी के मूर्धन्य विद्वान पंडित कुबेरनाथ शुकुल ने भारत कला भवन को भेंट किया था. आज शुकुल परिवार ने पुरखों को उपहार स्वरूप बटुआ खुद नवाब ने उस दौर में लाची और लौंग से भरकर भेंट किया था जब वे बरतानवी हुकूमत के कैदी के रूप में कोलकाता के मठिया बुर्ज में कैद थे.

भारत कला भवन ने बीएचयू में बटुओं का लगाया प्रदर्शनी.
प्रो. अजय कुमार सिंह ने बताया कि हमारे यहां के स्टाइल डिपार्टमेंट में यह पर्स 50 की संख्या में थे. फिजिकल वेरिफिकेशन करने के दौरान इसके बारे में पता लगा कि यह बटुए बहुत ही महत्वपूर्ण और यूनिक हैं. इनमें से एक वाजिद अली शाह का बटुआ है और कुछ बटुआ ग्वालियर राजबाड़ी का कलेक्शन था. इसको हम लोगों ने साफ करके प्रदर्शित किया क्योंकि अभी तक किसी को पता नहीं था कि हमारे पास इतने यूनिक बटुआ हैं.

आज के समय में ऐसा एग्जीबिशन लगाना हमको बहुत ही जरूरी लगा जहां तक मुझे जानकारी है शायद ही 25 से 30 सालों में पूरे भारतवर्ष बटुआ का प्रदर्शनी कहीं लगा हो. दूसरी तरफ यह सारे बटुए एंटीक्राफ्ट के बहुत ही बड़े और शानदार उदाहरण है.

वाराणसी: बुधवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन में एक अनूठी पहल से 17वीं से लेकर 18वीं सदी तक के लगभग 50 बटुवों की प्रदर्शनी लगाई गई. प्रदर्शनी में बेशकीमती थैलियों का प्रदर्शन किया गया जिन्हें उस दौर के नामचीन कारीगरों ने हाथों से खूबसूरती की मिसाल बनाया और पीढ़ी दर पीढ़ी ये सिलसिला आज तक चलता रहा.

इसे भी पढ़ें :- वाराणसी: वर्ल्ड टूरिज्म डे पर होगा पदयात्रा का आयोजन, लोगों को किया जाएगा जागरूक

भारत कला भवन में लगी प्रदर्शनी
नवाब वाजिद अली शाह का बटुआ आकर्षण का केंद्र रहा है. नवाब वाजिद अली शाह का (1822 से1887) जरदोजी वाला किमखाब ई बटुआ, जो कभी काशी के मूर्धन्य विद्वान पंडित कुबेरनाथ शुकुल ने भारत कला भवन को भेंट किया था. आज शुकुल परिवार ने पुरखों को उपहार स्वरूप बटुआ खुद नवाब ने उस दौर में लाची और लौंग से भरकर भेंट किया था जब वे बरतानवी हुकूमत के कैदी के रूप में कोलकाता के मठिया बुर्ज में कैद थे.

भारत कला भवन ने बीएचयू में बटुओं का लगाया प्रदर्शनी.
प्रो. अजय कुमार सिंह ने बताया कि हमारे यहां के स्टाइल डिपार्टमेंट में यह पर्स 50 की संख्या में थे. फिजिकल वेरिफिकेशन करने के दौरान इसके बारे में पता लगा कि यह बटुए बहुत ही महत्वपूर्ण और यूनिक हैं. इनमें से एक वाजिद अली शाह का बटुआ है और कुछ बटुआ ग्वालियर राजबाड़ी का कलेक्शन था. इसको हम लोगों ने साफ करके प्रदर्शित किया क्योंकि अभी तक किसी को पता नहीं था कि हमारे पास इतने यूनिक बटुआ हैं.

आज के समय में ऐसा एग्जीबिशन लगाना हमको बहुत ही जरूरी लगा जहां तक मुझे जानकारी है शायद ही 25 से 30 सालों में पूरे भारतवर्ष बटुआ का प्रदर्शनी कहीं लगा हो. दूसरी तरफ यह सारे बटुए एंटीक्राफ्ट के बहुत ही बड़े और शानदार उदाहरण है.

Intro:वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन में एक अनूठी पहल से 17 वी से लेकर 18 वीं सदी तक के लगभग 50 बटुवो का प्रदर्शनी लगाई गयी । इस प्रदर्शनी में बेशकीमती थैलियों का प्रदर्शन किया गया जिन्हें उस दौर के नामचीन कारीगरों ने हाथों से खूबसूरती की मिसाल बनाया और पीढ़ी दर पीढ़ी ये सिलसिला आज तक चलता रहा । बटुओ की श्रृंखला में प्रदर्शित मलमली बटुए, सुनहरी रूपाली जरी के बटुए, मखमली बटुए, रेशम के बटुए कीम ख्वाब वह साटन सिल्क के बटुए, इसके साथ ही ऊपर से मोती सीप मूंग चांदी की घंटियों की झालर व नगीनो लटकाने से उक्त वाली बटुए लोगों को अपनी ओर ज्यादा आकर्षित कर रही थी। एक दिवसीय प्रदर्शनी में सुबह से ही लोगों का कांटा बना रहा और लोग इन पुरानी एंटीक पीस को देखने के लिए दूर-दूर से आते रहे।


Body:नवाब वाजिद अली शाह का यह बटुआ है आकर्षण का केंद्र प्रदर्शनी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है नवाब वाजिद अली शाह का(1822 से1887) जरूर दो जी वाला किमखाब ई बटुआ जो कभी काशी के मूर्धन्य विद्वान पंडित कुबेरनाथ शुकुल ने भारत कला भवन को भेंट किया था। सुकुल परिवार ने पुरखों को उपहार स्वरूप बटुआ खुद नवाब ने उस दौर में लाची और लौंग से भरकर भेंट किया था जब वे बरतानवी हुकूमत के कैदी के रूप में कोलकाता के मठिया बुर्ज में कैद थे।


Conclusion:प्रो अजय कुमार सिंह ने बताया कि हमारे यहां जो स्टाइल डिपार्टमेंट है उनमें यह 50 की संख्या में पर्स थे। जब हम लोग फिजिकल वेरिफिकेशन कर रहे थे तब हम को यह पता लगा। यह बटुए हैं और यह बहुत ही इंपॉर्टेंट और यूनिक है। इनमें से एक वाजिद अली शाह का बटुआ है और कुछ बटुआ ग्वालियर राजबाड़ी का कलेक्शन था. इसको हम लोगों ने साफ करके प्रदर्शित किया। क्योंकि अभी तक किसी को पता नहीं था कि हमारे पास इतने यूनिक बटुआ हैं। आज के समय में बहुत ही जरूरी एग्जीबिशन लगा हमको क्योंकि जहां तक मुझे जानकारी है 25 से 30 सालों में पूरे भारतवर्ष बटुआ का प्रदर्शनी कहीं लगा हो। इस नजरिए से भी यह बहुत इंपॉर्टेंट है। दूसरे यह सारे बटुए एंटीक्राफ्ट के बहुत ही बड़े और शानदार उदाहरण है।

बाईट :-- प्रो अजय कुमार सिंह, निदेशक भारत कला भवन


अशुतोष उपध्याय
9005099684
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.