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लोलार्क कुंड के स्नान पर कोरोना का साया, नि:संतान दंपतियों को करना होगा और इंतजार - लोलार्क छठ

वाराणसी (Varanasi) के ऐतिहासिक लोलार्क कुंड मेले पर कोरोना वायरस (Coronaviras) का ग्रहण लग गया है. जिला प्रशासन ने लोलार्क छठ पर होने वाले स्नान और मेले पर रोक लगा दी है.

लोलार्क कुंड में स्नान पर लगी रोक
लोलार्क कुंड में स्नान पर लगी रोक
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Published : Sep 11, 2021, 6:02 PM IST

Updated : Sep 11, 2021, 9:49 PM IST

वाराणसी: संतान प्राप्ति के लिए लोलार्क षष्ठी पर इस वर्ष श्रद्धालु लोलार्क कुंड में स्नान से वंचित रहेंगे. जिला प्रशासन ने लोलार्क छठ पर होने वाले स्नान और मेले पर रोक लगा दी है. लिहाजा, कुंड में स्नान के लिए लोगों को अगले साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. इस वर्ष लोलार्क षष्ठी पर्व 12 सितंबर मनाया जाना है.

मान्यता है कि शिव की नगरी काशी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में भाद्रपद शुक्ल षष्ठी पर स्नान करने से नि:संतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है. संतान प्राप्ति की मान्यता के चलते हर साल इस कुंड में डुबकी लगाने के लिए लाखों की संख्या में भक्त इकट्ठा होते हैं. लेकिन, इस बार भी कोरोना महामारी के कारण श्रद्धालुओं को कुंड में स्नान की अनुमति नहीं है. ऐसे में भक्तों को एक वर्ष और इंतजार करना पड़ेगा. भक्तों को रोकने के लिए सूचना जनहित में जारी की गई है. उसके साथ ही जगह-जगह पर बैरिकेडिंग की जा रही है, ताकि श्रद्धालुओं को कुंड तक जाने से रोका जा सके.

लोलार्क कुंड में स्नान पर लगी रोक
सूनी गोद भगवान सूर्य देते सन्तान
अन्य दिनों में पूरे देश से नि:संतान दंपति इस कुंड में स्नान करने आते हैं. मान्यता है कि वे पुत्र प्राप्ति का वरदान लेकर यहां से जाते हैं. इस कुंड में स्नान करने वाले निसंतान दंपति स्नान के बाद कपड़े कुंड में ही छोड़ देते हैं. यहां जो भी वस्तु शरीर पर धारण रहती है वो सभी को कुंड पर ही छोड़ दिया जाता है. कहा जाता है कि भाद्रपद शुक्ल षष्ठी स्नान करने से सूनी गोद भगवान सूर्य भर देते हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और विदेश से भी लोग इस कुंड में स्नान करने के लिए आते हैं. उल्लेखनीय है कि लोलार्क षष्ठी पर लोलार्क कुंड और बाबा कीनाराम स्थल स्थित कुंड में स्नान के लिए एक लाख से अधिक लोगों का जमावड़ा होता है. गत वर्ष अंतिम समय तक दुविधा बनी रही. हजारों दंपतियों को बिना स्नान किए ही लौट जाना पड़ा था.
इसी स्थान पर पड़ी थी सूर्य की पहली किरण
मान्यता है कि लोलार्क कुंड में व्रत पूर्वक सब विधि स्नान दान फल का त्याग और लोलाकेश्वर महादेव के दर्शन से भगवान सूर्य की कृपा से गोद अवश्य भरती है. यह स्कंद पुराण के काशी खंड के 32 अध्याय में उल्लेखित है. इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में माता पार्वती ने स्वयं शिवलिंग की पूजा की थी. माना यह भी जाता है कि धरा पर ऊर्जा के स्रोत भगवान भास्कर की पहली किरण इसी स्थान पर पड़ी थी. भगवान सूर्य का चक्र इसी स्थान पर गिरा था. एक और कथा के अनुसार मान्यता है कि शिवभक्त विधुन माली जज जब सूर्य ने हरा दिया तब सूर्य पर भगवान शिव क्रोधित होकर त्रिशूल हाथ में लेकर उनकी ओर दौड़े उस समय सूर्य भागते भागते पृथ्वी पर काशी में आकर गिरे. इसी से वहां उनका नाम लोलार्क पड़ा. कुंड के ऊपर भगवान सूर्य देव शिवलिंग स्वरूप विराजमान है.


इसे भी पढ़ें-जल्द होने वाला है मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एयरपोर्ट का शिलान्यास



भगवान सूर्य ने स्थापित किया शिवलिंग


लोलार्क कुंड के प्रधान पुजारी रमेश कुमार पांडेय ने बताया इस बार लोलार्क छठ का मेला नहीं लग रहा है. कोविड-19 की वजह से पिछले वर्ष भी स्नान प्रतिबंध था. इस बार भी प्रतिबंधित है. हम प्रशासन के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. लाखों की संख्या में लोग पुत्र प्राप्ति और संतान प्राप्ति के लिए कुंड में स्नान करते हैं. इसी वजह से स्नान प्रतिबंधित है. भगवान सूर्य का विशेष स्थान है. यहीं पर उनका रथ का चक्र गिरा था. तभी से यह कुंड उत्पन्न हुआ है. सूर्य भगवान ने ही शिवलिंग स्थापना की है, जिसे लोलारकेश्वर महादेव कहते हैं. इनका अरघा पूरब की तरफ है जो पूरे विश्व में ऐसा अरघा नहीं है. स्नान के बाद भगवान शिव और भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. सभी मनोकामना पूर्ण होती है.

मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि स्नान करते समय दंपति एक विशेष प्रकार का फल हाथ में लेता है और पांच बार स्नान करता है. एक निष्ठा यह भी है कि उस फल को फिर जीवन भर वह ग्रहण नहीं करता है. उसका पूजन पाठ करके संकल्प लेते हैं. उस फल का त्याग करने से ही भगवान प्रसन्न होते हैं और संतान प्रदान करते हैं. मंदिर के प्रधान पुजारी के अनुसार पश्चिम बंगाल (उन दिनों बिहार) स्थित कूच बिहार स्टेट के राजा चर्म रोग से पीड़ित और निसंतान थे. यहां स्थान करने से न केवल उनका चर्म रोग ठीक हुआ बल्कि, उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. इसके बाद उन्होंने इस कुंड का निर्माण कराया और जो वर्तमान समय में कुंड का स्वरूप है. पूजा पाल ने बताया कि मैंने भी यहां पर 5 साल पहले स्नान किया था. मुझे पुत्र प्राप्त हुआ. आज हम उसका मुंडन कराने आए हैं.

चंदौली के पीठाधीश्वर अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी ने समस्त भक्त जनों से अपील की है कि भक्त गण धैर्य धारण करें और अपने घर पर रहकर ही बाबा कीनाराम की षष्ठी मनाएं. आश्रम शाखा कार्यालय में भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ही मनाएं. आपको बता दें कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए विश्वविख्यात अघोरपीठ में हर वर्ष मनाया जाने वाला अघोर परम्परा का विख्यात पर्व - 'लोलार्क षष्ठी'- पिछली बार (2020) की तरह ही इस बार भी सांकेतिक रूप में ही मनाया जाएगा. सभी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों व वैचारिक गोष्ठियों का आयोजन निरस्त कर दिया गया है

वाराणसी: संतान प्राप्ति के लिए लोलार्क षष्ठी पर इस वर्ष श्रद्धालु लोलार्क कुंड में स्नान से वंचित रहेंगे. जिला प्रशासन ने लोलार्क छठ पर होने वाले स्नान और मेले पर रोक लगा दी है. लिहाजा, कुंड में स्नान के लिए लोगों को अगले साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. इस वर्ष लोलार्क षष्ठी पर्व 12 सितंबर मनाया जाना है.

मान्यता है कि शिव की नगरी काशी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में भाद्रपद शुक्ल षष्ठी पर स्नान करने से नि:संतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है. संतान प्राप्ति की मान्यता के चलते हर साल इस कुंड में डुबकी लगाने के लिए लाखों की संख्या में भक्त इकट्ठा होते हैं. लेकिन, इस बार भी कोरोना महामारी के कारण श्रद्धालुओं को कुंड में स्नान की अनुमति नहीं है. ऐसे में भक्तों को एक वर्ष और इंतजार करना पड़ेगा. भक्तों को रोकने के लिए सूचना जनहित में जारी की गई है. उसके साथ ही जगह-जगह पर बैरिकेडिंग की जा रही है, ताकि श्रद्धालुओं को कुंड तक जाने से रोका जा सके.

लोलार्क कुंड में स्नान पर लगी रोक
सूनी गोद भगवान सूर्य देते सन्तान
अन्य दिनों में पूरे देश से नि:संतान दंपति इस कुंड में स्नान करने आते हैं. मान्यता है कि वे पुत्र प्राप्ति का वरदान लेकर यहां से जाते हैं. इस कुंड में स्नान करने वाले निसंतान दंपति स्नान के बाद कपड़े कुंड में ही छोड़ देते हैं. यहां जो भी वस्तु शरीर पर धारण रहती है वो सभी को कुंड पर ही छोड़ दिया जाता है. कहा जाता है कि भाद्रपद शुक्ल षष्ठी स्नान करने से सूनी गोद भगवान सूर्य भर देते हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और विदेश से भी लोग इस कुंड में स्नान करने के लिए आते हैं. उल्लेखनीय है कि लोलार्क षष्ठी पर लोलार्क कुंड और बाबा कीनाराम स्थल स्थित कुंड में स्नान के लिए एक लाख से अधिक लोगों का जमावड़ा होता है. गत वर्ष अंतिम समय तक दुविधा बनी रही. हजारों दंपतियों को बिना स्नान किए ही लौट जाना पड़ा था.
इसी स्थान पर पड़ी थी सूर्य की पहली किरण
मान्यता है कि लोलार्क कुंड में व्रत पूर्वक सब विधि स्नान दान फल का त्याग और लोलाकेश्वर महादेव के दर्शन से भगवान सूर्य की कृपा से गोद अवश्य भरती है. यह स्कंद पुराण के काशी खंड के 32 अध्याय में उल्लेखित है. इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में माता पार्वती ने स्वयं शिवलिंग की पूजा की थी. माना यह भी जाता है कि धरा पर ऊर्जा के स्रोत भगवान भास्कर की पहली किरण इसी स्थान पर पड़ी थी. भगवान सूर्य का चक्र इसी स्थान पर गिरा था. एक और कथा के अनुसार मान्यता है कि शिवभक्त विधुन माली जज जब सूर्य ने हरा दिया तब सूर्य पर भगवान शिव क्रोधित होकर त्रिशूल हाथ में लेकर उनकी ओर दौड़े उस समय सूर्य भागते भागते पृथ्वी पर काशी में आकर गिरे. इसी से वहां उनका नाम लोलार्क पड़ा. कुंड के ऊपर भगवान सूर्य देव शिवलिंग स्वरूप विराजमान है.


इसे भी पढ़ें-जल्द होने वाला है मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एयरपोर्ट का शिलान्यास



भगवान सूर्य ने स्थापित किया शिवलिंग


लोलार्क कुंड के प्रधान पुजारी रमेश कुमार पांडेय ने बताया इस बार लोलार्क छठ का मेला नहीं लग रहा है. कोविड-19 की वजह से पिछले वर्ष भी स्नान प्रतिबंध था. इस बार भी प्रतिबंधित है. हम प्रशासन के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. लाखों की संख्या में लोग पुत्र प्राप्ति और संतान प्राप्ति के लिए कुंड में स्नान करते हैं. इसी वजह से स्नान प्रतिबंधित है. भगवान सूर्य का विशेष स्थान है. यहीं पर उनका रथ का चक्र गिरा था. तभी से यह कुंड उत्पन्न हुआ है. सूर्य भगवान ने ही शिवलिंग स्थापना की है, जिसे लोलारकेश्वर महादेव कहते हैं. इनका अरघा पूरब की तरफ है जो पूरे विश्व में ऐसा अरघा नहीं है. स्नान के बाद भगवान शिव और भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. सभी मनोकामना पूर्ण होती है.

मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि स्नान करते समय दंपति एक विशेष प्रकार का फल हाथ में लेता है और पांच बार स्नान करता है. एक निष्ठा यह भी है कि उस फल को फिर जीवन भर वह ग्रहण नहीं करता है. उसका पूजन पाठ करके संकल्प लेते हैं. उस फल का त्याग करने से ही भगवान प्रसन्न होते हैं और संतान प्रदान करते हैं. मंदिर के प्रधान पुजारी के अनुसार पश्चिम बंगाल (उन दिनों बिहार) स्थित कूच बिहार स्टेट के राजा चर्म रोग से पीड़ित और निसंतान थे. यहां स्थान करने से न केवल उनका चर्म रोग ठीक हुआ बल्कि, उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. इसके बाद उन्होंने इस कुंड का निर्माण कराया और जो वर्तमान समय में कुंड का स्वरूप है. पूजा पाल ने बताया कि मैंने भी यहां पर 5 साल पहले स्नान किया था. मुझे पुत्र प्राप्त हुआ. आज हम उसका मुंडन कराने आए हैं.

चंदौली के पीठाधीश्वर अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी ने समस्त भक्त जनों से अपील की है कि भक्त गण धैर्य धारण करें और अपने घर पर रहकर ही बाबा कीनाराम की षष्ठी मनाएं. आश्रम शाखा कार्यालय में भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ही मनाएं. आपको बता दें कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए विश्वविख्यात अघोरपीठ में हर वर्ष मनाया जाने वाला अघोर परम्परा का विख्यात पर्व - 'लोलार्क षष्ठी'- पिछली बार (2020) की तरह ही इस बार भी सांकेतिक रूप में ही मनाया जाएगा. सभी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों व वैचारिक गोष्ठियों का आयोजन निरस्त कर दिया गया है

Last Updated : Sep 11, 2021, 9:49 PM IST
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