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शाही पगड़ी पहन मां गौरा का गौना कराने जाएंगे 'काशीपुराधिपति'

रंगभरी एकादशी पर बाबा श्री काशी विश्वनाथ माता गौरा की विदाई कराने काशी आएंगे. बीते कई दशकों से गयासुद्दीन काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के गौने की शाही पगड़ी बनाते हैं, जिसे बाबा धारण कर मां गौरा को विदा कराने जाते हैं.

शाही पगड़ी पहन मां गौरा का गौना कराने जाएंगे 'काशीपुराधिपति'
शाही पगड़ी पहन मां गौरा का गौना कराने जाएंगे 'काशीपुराधिपति'
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Published : Mar 23, 2021, 12:57 PM IST

वाराणसी: पूरे विश्व में यदि गंगा जमुना तहजीब कि कहीं सच्ची मिसाल देखनी हो तो काशी जरूर आइए. जी हां जीवंत नगरी काशी में अद्भुत परंपराओं और आपसी सौहार्द की एक अनोखी झलक दिखाई पड़ती है. यहां का हर व्यक्ति और परंपराएं आपसी सौहार्द का एहसास कराते हैं. इसी परंपरा को आगे बढ़ाने और गंगा जमुना तहजीब को विश्व पटल पर स्थापित करने में काशी के लल्लापुरा इलाके में रहने वाले गयासुद्दीन भी अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं. बीते कई दशकों से गयासुद्दीन काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के गौंने की शाही पगड़ी बनाते हैं, जिसे बाबा धारण कर मां गौरा को विदा कराने जाते हैं.

शाही पगड़ी पहनेंगे बाबा विश्वनाथ
250 सालों से निभाई जा रही परंपरा
बता दें कि हाजी गयासुद्दीन का परिवार बीते लगभग 250 सालों से बाबा के लिए शाही पगड़ी बनाता आ रहा है. यह पगड़ी पहन कर बाबा रंगभरी एकादशी पर अपने गौने की बारात में जाते हैं और मां गौरा की विदाई कराते हैं. हाजी गयासुद्दीन ने बताया कि हमारे परदादा हाजी छेदी लखनऊ से यह कला लेकर काशी आए थे और पहली बार बाबा के लिए पगड़ी बनाए थे. उसके बाद उनके पुत्र हाजी अब्दुल गफूर ने परंपरा को आगे बढ़ाया. अब्दुल गफ़ूर के बाद मोहम्मद जहूर उनके बाद गयासुद्दीन इसे आगे बढ़ा रहे हैं. गयासुद्दीन की नई पीढ़ी भी पगड़ी बनाने के लिए अपनी अहम भूमिका निभा रही है. इस त्यौहार को लेकर सभी लोग काफी उत्सुक रहते हैं. उनका कहना है कि हम सब को बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद मिले बस यही हमारा मेहनताना और इनाम होता है.
varanasi news
बीते कई दशकों से गयासुद्दीन काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के गौंने की शाही पगड़ी बनाते हैं, जिसे बाबा धारण कर मां गौरा को विदा कराने जाते हैं.
उत्सुकता से करते हैं इंतजार
गयासुद्दीन बताते हैं कि हमारे परिवार में कुल 11 लोग मिलजुल कर बाबा की पगड़ी बनाते हैं. कोई कपड़ा काटता है, तो कोई सिलाई करता है, कोई स्टोन और जरी लगाने का काम करता है. उन्होंने बताया कि हमें गर्व है कि हम भगवान के लिए पगड़ी बनाते हैं. हमें और हमारे परिवार को इस लायक समझा जाता है. भोलेनाथ काशी के राजा हैं, काशी के राजा का मतलब है पूरे विश्व के राजा और यह हमारे लिए बड़ी फक्र की बात है कि हम उनके लिए कुछ काम करते हैं. हमारी यह दुआ है कि हमें हमेशा उनकी सेवा करने का मौका दिया जाए, इसके लिए अपने आपको हम सब बहुत खुशनसीब समझेंगे.
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काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के गौंने की शाही पगड़ी
इन सामानों से बनती है बाबा की शाही पगड़ी
गयासुद्दीन बताते हैं कि शाही पगड़ी बनाने के लिए रेशम का कपड़ा, स्टोन, मोती, पंख, दफ्ती कई चीजें लगती हैं. हमारे यहां हर तरह की पगड़ी बनाई जाती है. शादी में दूल्हे के लिए, मौलाना के लिए टोपी, बच्चों के लिए टोपी कई बार अलग-अलग चीजों में कुछ अलग मटेरियल भी हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि हम भोलेनाथ को चढ़ाए जाने वाली पगड़ी को बनाने में काफी ज्यादा एहतियात बरतते हैं, साफ-सफाई, सामान की क्वालिटी बनाने वालों का साफ होना इन सब बातों का ध्यान रखा जाता है. इसे बनाने में कुल एक सप्ताह का समय लगता है.
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यह पगड़ी पहन कर बाबा रंगभरी एकादशी पर अपने गौने की बारात में जाते हैं और मां गौरा की विदाई कराते हैं.
हम सब एक हैं
देश में जगह-जगह हो रही हिंसा के बाबत गयासुद्दीन बताते हैं कि काशी में हमेशा से गंगा जमुना तहजीब जिंदा रही है. भले ही आज देश की हालत थोड़ी खराब है, लेकिन वास्तविकता पर कोई भी हिंदू मुसलमान लड़ना नहीं चाहता. हम सब एक हैं और हम दोनों दो वक्त की रोटी रोजी चाहते हैं. राजनीतिक लोग अपनी रोटियां सेकना चाहते हैं. लेकिन हम सब का खूनी और रूह का रिश्ता है. यह बहुत पुरानी परंपरा रही है. आज भी हम दोनों के बीच व्यवसायिक सांठगांठ है. हमारी एक गंगा जमुना तहजीब हमेशा जिंदा रहेगी.
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हाजी गयासुद्दीन का परिवार बीते लगभग 250 सालों से बाबा के लिए शाही पगड़ी बनाता आ रहा है.

वाराणसी: पूरे विश्व में यदि गंगा जमुना तहजीब कि कहीं सच्ची मिसाल देखनी हो तो काशी जरूर आइए. जी हां जीवंत नगरी काशी में अद्भुत परंपराओं और आपसी सौहार्द की एक अनोखी झलक दिखाई पड़ती है. यहां का हर व्यक्ति और परंपराएं आपसी सौहार्द का एहसास कराते हैं. इसी परंपरा को आगे बढ़ाने और गंगा जमुना तहजीब को विश्व पटल पर स्थापित करने में काशी के लल्लापुरा इलाके में रहने वाले गयासुद्दीन भी अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं. बीते कई दशकों से गयासुद्दीन काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के गौंने की शाही पगड़ी बनाते हैं, जिसे बाबा धारण कर मां गौरा को विदा कराने जाते हैं.

शाही पगड़ी पहनेंगे बाबा विश्वनाथ
250 सालों से निभाई जा रही परंपरा
बता दें कि हाजी गयासुद्दीन का परिवार बीते लगभग 250 सालों से बाबा के लिए शाही पगड़ी बनाता आ रहा है. यह पगड़ी पहन कर बाबा रंगभरी एकादशी पर अपने गौने की बारात में जाते हैं और मां गौरा की विदाई कराते हैं. हाजी गयासुद्दीन ने बताया कि हमारे परदादा हाजी छेदी लखनऊ से यह कला लेकर काशी आए थे और पहली बार बाबा के लिए पगड़ी बनाए थे. उसके बाद उनके पुत्र हाजी अब्दुल गफूर ने परंपरा को आगे बढ़ाया. अब्दुल गफ़ूर के बाद मोहम्मद जहूर उनके बाद गयासुद्दीन इसे आगे बढ़ा रहे हैं. गयासुद्दीन की नई पीढ़ी भी पगड़ी बनाने के लिए अपनी अहम भूमिका निभा रही है. इस त्यौहार को लेकर सभी लोग काफी उत्सुक रहते हैं. उनका कहना है कि हम सब को बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद मिले बस यही हमारा मेहनताना और इनाम होता है.
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बीते कई दशकों से गयासुद्दीन काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के गौंने की शाही पगड़ी बनाते हैं, जिसे बाबा धारण कर मां गौरा को विदा कराने जाते हैं.
उत्सुकता से करते हैं इंतजार
गयासुद्दीन बताते हैं कि हमारे परिवार में कुल 11 लोग मिलजुल कर बाबा की पगड़ी बनाते हैं. कोई कपड़ा काटता है, तो कोई सिलाई करता है, कोई स्टोन और जरी लगाने का काम करता है. उन्होंने बताया कि हमें गर्व है कि हम भगवान के लिए पगड़ी बनाते हैं. हमें और हमारे परिवार को इस लायक समझा जाता है. भोलेनाथ काशी के राजा हैं, काशी के राजा का मतलब है पूरे विश्व के राजा और यह हमारे लिए बड़ी फक्र की बात है कि हम उनके लिए कुछ काम करते हैं. हमारी यह दुआ है कि हमें हमेशा उनकी सेवा करने का मौका दिया जाए, इसके लिए अपने आपको हम सब बहुत खुशनसीब समझेंगे.
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काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के गौंने की शाही पगड़ी
इन सामानों से बनती है बाबा की शाही पगड़ी
गयासुद्दीन बताते हैं कि शाही पगड़ी बनाने के लिए रेशम का कपड़ा, स्टोन, मोती, पंख, दफ्ती कई चीजें लगती हैं. हमारे यहां हर तरह की पगड़ी बनाई जाती है. शादी में दूल्हे के लिए, मौलाना के लिए टोपी, बच्चों के लिए टोपी कई बार अलग-अलग चीजों में कुछ अलग मटेरियल भी हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि हम भोलेनाथ को चढ़ाए जाने वाली पगड़ी को बनाने में काफी ज्यादा एहतियात बरतते हैं, साफ-सफाई, सामान की क्वालिटी बनाने वालों का साफ होना इन सब बातों का ध्यान रखा जाता है. इसे बनाने में कुल एक सप्ताह का समय लगता है.
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यह पगड़ी पहन कर बाबा रंगभरी एकादशी पर अपने गौने की बारात में जाते हैं और मां गौरा की विदाई कराते हैं.
हम सब एक हैं
देश में जगह-जगह हो रही हिंसा के बाबत गयासुद्दीन बताते हैं कि काशी में हमेशा से गंगा जमुना तहजीब जिंदा रही है. भले ही आज देश की हालत थोड़ी खराब है, लेकिन वास्तविकता पर कोई भी हिंदू मुसलमान लड़ना नहीं चाहता. हम सब एक हैं और हम दोनों दो वक्त की रोटी रोजी चाहते हैं. राजनीतिक लोग अपनी रोटियां सेकना चाहते हैं. लेकिन हम सब का खूनी और रूह का रिश्ता है. यह बहुत पुरानी परंपरा रही है. आज भी हम दोनों के बीच व्यवसायिक सांठगांठ है. हमारी एक गंगा जमुना तहजीब हमेशा जिंदा रहेगी.
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हाजी गयासुद्दीन का परिवार बीते लगभग 250 सालों से बाबा के लिए शाही पगड़ी बनाता आ रहा है.
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