वाराणसी: वैश्विक महामारी कोरोना (global pandemic corona) के खतरे के बीच तमाम सावधानियों व नियमों के पालन को अनिवार्य करते हुए रविवार को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के मौके पर भक्तों को मंदिरों (temple) में प्रवेश दिया गया. लेकिन अबकी मंदिरों में अनंत चतुर्दशी को भगवान अनंत की कथा का आयोजन नहीं किया गया. ऐसे में व्रतकर्ता भक्तों ने मंदिरों में अनंत चढ़ाने के उपरांत अपने घरों पर कथा सुनी. आपको बता दें कि आज के दिन जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की अनंत के रूप में पूजा की जाती है. इधर, ज्योतिषाचार्य पंडित हरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि अनंत अर्थात जिसका न तो आदि का पता हो और न ही अंत का. अर्थात वे स्वयं श्री हरि ही हैं.
इस व्रत में स्नानादि करने के बाद अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठ के अनंत को सामने रखकर हवन किया जाता है. फिर अनंत देव का ध्यान करके इस शुद्ध अनंत, जिसकी पूजा की गई होती है, को पुरुष दाहिनी और स्त्री बायीं भुजा अर्थात हाथों में बांध लेते हैं. वहीं, अनंत चतुर्दशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. यही वजह है कि आज के दिन विशेष पूजन-पाठ होती है और इसके साथ ही अनंत बांधने से सभी तरह की बाधाएं दूर होती हैं और सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है. साथ ही घरों में पकवान बना भगवान को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है.
इधर, अनंत व्रत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए माधुरी देवी ने कहा कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु को अनंत के रूप पूजा जाता है और 14 गांठ वाले अनंत को हाथों में बांधा जाता है. उन्होंने कहा कि इसे बांधने वालों पर भगवान विष्णु की कृपा होती है और सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है. वहीं, उन्होंने कहा कि इस वर्ष कोरोना के प्रकोप को देखते हुए मंदिरों में कथा का आयोजन नहीं किया गया. ऐसे में महिलाएं अपने घरों पर ही कथा सुन पूजा-अर्चना की.