वाराणसी: श्री काशी विश्वनाथ धाम में बुधवार को पहली बार अखिल भारतीय शास्त्रीय स्पर्धा का आयोजन किया गया. इसमें देश के बड़े विद्वानों ने शिरकत की. अखिल भारतीय शास्त्रीय स्पर्धा की शुरुआत केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति प्रो श्री निवास वरखेड़ी की अध्यक्षता में हुई. कुलपति प्रो वरखेड़ी ने शास्त्र सपर्या के विद्वान आचार्य हरिदास भट्ट, आचार्य मणिद्रविड़ शास्त्री, आचार्य केई देवनाथन और आचार्य देवदत्त पाटिल का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि वाराणसी नगरी शास्त्र ज्ञान के लिए वैश्विक नगरी के रूप में सुप्रसिद्ध है. यह सौभाग्य की बात है कि गंगा की इस नगरी और पावन धाम में देश के विविध भागों के नदीष्ण विद्वानों से शास्त्र शिक्षा प्राप्त कर अनेक छात्र-छात्राएं इस राष्ट्रीय शास्त्र प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं.
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास वाराणसी के सदस्य प्रो. ब्रज भूषण ओझा ने इस आयोजन के लिए प्रसन्नता व्यक्त करते इस सपर्या के प्रसंगों में भारत के काशी तथा दाक्षिणात्य परंपरा के महत्त्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि वस्तुत: यह आयोजन ज्ञानमयी पूजा ही है. आचार्य हरिदास भट्ट ने न्याय के संदर्भ में हस्तशरीर के न्यायदर्शन के पक्षों को रखा.
आचार्य मणि द्रविड़ शास्त्री ने वेदान्त दर्शन में प्रमा के लक्षण तथा इनके दो प्रकारों, जिनमें विशेष कर अवाधिगतत्वम ज्ञान परक विशेष चर्चा रही. आचार्य केई देवनाथन ने कहा कि काशी शास्त्र विमर्श के लिए विश्वविख्यात रहा है. इसमें मेरा प्रथम बार आना सौभाग्य रहा. उन्होंने यतश्चनिर्धारणम सूत्र की व्याख्या भारतीय दर्शनों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया. इसी प्रकार आचार्य देवदत्त पाटिल ने भी नामधेय पद की व्याख्या विशेष कर मीमांसा शास्त्र के सन्दर्भ में करके शास्त्र सभा को ज्ञानमय बना दिया.
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति प्रो. श्री निवास वरखेड़ी ने भी प्रमाणशास्त्र को लेकर कहा कि अनुभव के बिना प्रमाण नहीं माना जा सकता है. लेकिन, प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर किस परिस्थिति के अनुभव को प्रमाण का प्रमाणिक आधार माना जाय. इसका कारण यह है कि इसमें काल ध्वंस की पूरी संभावना बनी रहती है. प्रो वरखेड़ी ने इस बात को विविध तर्कों से संपुष्ट करते कहा कि यदि यह संस्कारजन्य अनुभव मानस इन्द्री पर आधारित होता है तो उसे प्रमाण माना जा सकता है.
श्री काशी विश्वनाथ धाम मन्दिर न्यास वाराणसी के अध्यक्ष प्रो. नागेन्द्र पाण्डेय ने कहा की यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे कार्य काल में इस तरह का भव्य संस्कृत शास्त्रों का कार्यक्रम आयोजित हो रहा. इसमें प्रो. ब्रज भूषण ओझा मेरे प्रतिनिधि के रुप में अपने सहयोगियों के साथ इसके भव्य आयोजन के लिए कटिबद्ध है. इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में पूर्व धर्मार्थ मंत्री और विधायक नीलकंठ तिवारी ने कहा कि लगभग 500 संस्कृत छात्र-छात्राओं तथा उनके लगभग 100 शास्त्र प्रशिक्षक 23 राज्यों से पधारे हैं. इनको एकत्र करने की अद्भुत क्षमता संस्कृत शास्त्र तथा इसकी भाषा में ही है.
उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष के रूप में कुलपति प्रो. वरखेड़ी ने कहा कि पूर्व में जो वाराणसी में तमिल संगम किया गया था. उसी तरह यह संस्कृत के माध्यम से राष्ट्र एक होकर वाराणसी में पहुंचा है. जी-20 के स्वागत के लिए कटिबद्ध है. उससे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना साकार होगा.
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