वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपने आप में कई रहस्य छुपाए हुए है. काशी में यूं तो त्योहारों की धूम रहती है. इस बार भी काशी वासी गणेश उत्सव बड़ी धूम-धाम से मना रहे हैं. वहीं एक परिवार ऐसा भी है जो 91 साल से गुरूकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए गणेश उत्सव मना रहा है. महाराष्ट्र के अमरावती से ढाई सौ साल पहले काशी पहुंचे पंडित गौरीनाथ पाठक का परिवार संस्कृत और वेद वेदांग की परंपराओं को आज भी संजोए हुए है. गुरुकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक ने 1929 में शारदा भवन में श्री गणेश उत्सव की शुरुआत की. आज भी इनका परिवार गणेश उत्सव को उसी श्रद्धा और विश्वास के साथ मना रहा है.
मिट्टी की बनी मूर्ती का करते हैं पूजन
मिट्टी की बनी हुई भगवान गणेश की मूर्ति का पूरे विधि विधान और मंत्रोच्चार के साथ वेदपाठी बटुकों और ब्राह्मणों ने पूजन कर स्थापित किया. इस दौरान भगवान की आरती की गई और गजानन का विभिन्न फूलों से श्रृंगार किया गया. स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक की तीसरी पीढ़ी भी अब भगवान का पूजा पाठ कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रही है.
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यह पूजा मेरे पिताजी ने 1929 में शुरू की थी. इस आयोजन को करते हुए हमें 91वें साल हो गए हैं. हम भगवान गणेश की पूजा पूरी श्रद्धा भाव से करते हैं. इसके साथ ही इस उत्सव पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. यह कार्यक्रम उन छात्रों के लिए बहुत ही कारगर होता है. जो वेद और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने काशी आते हैं.
-विनोद राव पाठक, आयोजक