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91 सालों से ये परिवार कर रहा है गणेश उत्सव की परंपरा का पालन

कर्नाटक और महाराष्ट्र के अपने छात्रों के कहने पर स्वर्गीय गौरी शंकर ने गणेश उत्सव की शुरूआत की. अब इनकी तीसरी पीढ़ी भी इस परंपरा का निर्वहन कर रही है और भगवान का आर्शीवाद प्राप्त कर रहे हैं.

91 साल से मना रहे है गणेश उत्सव.
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Published : Sep 3, 2019, 7:59 PM IST

वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपने आप में कई रहस्य छुपाए हुए है. काशी में यूं तो त्योहारों की धूम रहती है. इस बार भी काशी वासी गणेश उत्सव बड़ी धूम-धाम से मना रहे हैं. वहीं एक परिवार ऐसा भी है जो 91 साल से गुरूकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए गणेश उत्सव मना रहा है. महाराष्ट्र के अमरावती से ढाई सौ साल पहले काशी पहुंचे पंडित गौरीनाथ पाठक का परिवार संस्कृत और वेद वेदांग की परंपराओं को आज भी संजोए हुए है. गुरुकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक ने 1929 में शारदा भवन में श्री गणेश उत्सव की शुरुआत की. आज भी इनका परिवार गणेश उत्सव को उसी श्रद्धा और विश्वास के साथ मना रहा है.

91 सालों से मना रहे हैं गणेश उत्सव.

मिट्टी की बनी मूर्ती का करते हैं पूजन

मिट्टी की बनी हुई भगवान गणेश की मूर्ति का पूरे विधि विधान और मंत्रोच्चार के साथ वेदपाठी बटुकों और ब्राह्मणों ने पूजन कर स्थापित किया. इस दौरान भगवान की आरती की गई और गजानन का विभिन्न फूलों से श्रृंगार किया गया. स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक की तीसरी पीढ़ी भी अब भगवान का पूजा पाठ कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रही है.

इसे भी पढ़ें- इस गांव के 'राजा' हैं गणपति लेकिन यहां उनकी मूर्ति स्थापित करना मना क्यों है

यह पूजा मेरे पिताजी ने 1929 में शुरू की थी. इस आयोजन को करते हुए हमें 91वें साल हो गए हैं. हम भगवान गणेश की पूजा पूरी श्रद्धा भाव से करते हैं. इसके साथ ही इस उत्सव पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. यह कार्यक्रम उन छात्रों के लिए बहुत ही कारगर होता है. जो वेद और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने काशी आते हैं.

-विनोद राव पाठक, आयोजक

वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपने आप में कई रहस्य छुपाए हुए है. काशी में यूं तो त्योहारों की धूम रहती है. इस बार भी काशी वासी गणेश उत्सव बड़ी धूम-धाम से मना रहे हैं. वहीं एक परिवार ऐसा भी है जो 91 साल से गुरूकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए गणेश उत्सव मना रहा है. महाराष्ट्र के अमरावती से ढाई सौ साल पहले काशी पहुंचे पंडित गौरीनाथ पाठक का परिवार संस्कृत और वेद वेदांग की परंपराओं को आज भी संजोए हुए है. गुरुकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक ने 1929 में शारदा भवन में श्री गणेश उत्सव की शुरुआत की. आज भी इनका परिवार गणेश उत्सव को उसी श्रद्धा और विश्वास के साथ मना रहा है.

91 सालों से मना रहे हैं गणेश उत्सव.

मिट्टी की बनी मूर्ती का करते हैं पूजन

मिट्टी की बनी हुई भगवान गणेश की मूर्ति का पूरे विधि विधान और मंत्रोच्चार के साथ वेदपाठी बटुकों और ब्राह्मणों ने पूजन कर स्थापित किया. इस दौरान भगवान की आरती की गई और गजानन का विभिन्न फूलों से श्रृंगार किया गया. स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक की तीसरी पीढ़ी भी अब भगवान का पूजा पाठ कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रही है.

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यह पूजा मेरे पिताजी ने 1929 में शुरू की थी. इस आयोजन को करते हुए हमें 91वें साल हो गए हैं. हम भगवान गणेश की पूजा पूरी श्रद्धा भाव से करते हैं. इसके साथ ही इस उत्सव पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. यह कार्यक्रम उन छात्रों के लिए बहुत ही कारगर होता है. जो वेद और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने काशी आते हैं.

-विनोद राव पाठक, आयोजक

Intro: धर्म और अध्यात्म की नगरी वाराणसी अपने आप में कई रहस्य छुपाई हुई है ऐसे में हम बात करें तो शहर में कई राज्यों का संगम देखने को मिलता है काशी में त्यौहार खूब मनाए जाते हैं चाहे राजस्थान का गणगौर हो या फिर महाराष्ट्र गणेश उत्सव। महाराष्ट्र के अमरावती से ढाई सौ साल पहले काशी पहुंचे पंडित गौरीनाथ पाठक के परिवार संस्कृत और वेद वेदांग की परंपराओं को आज भी सर्वे हुआ है गुरुकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक ने 1929 में शारदा भवन में श्री गणेश उत्सव की शुरुआत किया था जो कर्नाटक और महाराष्ट्र के अपने छात्रों के कहने पर उन्होंने इस गणेश उत्सव की शुरुआत किया था या गणेश उत्सव आज भी उसी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया गया।


Body:मिट्टी की बनी हुई भगवान गणेश की मूर्ति का पूरे विधि विधान से मंत्रोच्चार के बीच वेद पाठी बटको और ब्राह्मणों ने भगवान गजानंद का पूजा कराया उसके बाद भगवान की आरती की गई और भगवान के विभिन्न फूलों से श्रृंगार किया गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ बल्कि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1929 से लेकर अब तक यह परंपरा अपने समय और श्रद्धा के साथ चलती आ रही है जिसकी आने वाली तीसरी पीढ़ी भी अब भगवान का पूजा पाठ कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रही है।


Conclusion:विनोद राव पाठक ने बताया कि यह पूजा मेरे पिताजी ने 1929 में शुरू की थी इस बार उसका 91 साल है हम भगवान गणेश की पूजा उसी श्रद्धा और भाव से मनाते हैं इसके साथ ही 7 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है यह कार्यक्रम उन छात्रों के लिए बहुत ही कारगर होता है जो वेद और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने काशी आते हैं। यहां पर संस्कृत की जो प्रतियोगिता होती है इसमें से बहुत से विद्यमान आगे चलके कला और संस्कृत में आगे जाते हैं 7 दिनों से विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन होता है और उसके बाद भगवान जी की शोभायात्रा निकाली जाती है जो विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए शारदा भवन में आकर समाप्त होती है। आज भगवान गणेश का पूरे विधि विधान से मूर्ति स्थापना और पूजन शुरू हुआ। बाईट:-- विनोद राव पाठक,आयोजक अशुतोष उपध्याय 9005099684
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