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ज्ञानवापी प्रकरण पर धर्म परिषद की बैठक में पारित हुए ये अहम प्रस्ताव...ये मांगें उठाईं

ज्ञानवापी प्रकरण को लेकर काशी धर्म परिषद ने लमही में बैठक आयोजित की. इसमें धर्माचार्यों और संतों ने भाग लिया. इस बैठक में कुल 22 अहम प्रस्ताव पारित हुए.

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ज्ञानवापी प्रकरण
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Published : Jun 3, 2022, 4:03 PM IST

वाराणसी: ज्ञानवापी विवाद को लेकर काशी धर्म परिषद ने लमही के सुभाष भवन में संतों, महंतों, इतिहासकारों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की बैठक आयोजित की. काशी के संतों के समक्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ मृदुला जायसवाल ने काशी पर हुए मुस्लिम आक्रमण की जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि औरंगजेब ने सन् 1669 में आदि विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था. इसका स्पष्ट साक्ष्य साकी मुस्तईद खान की पुस्तक मासिर–ए–आलमगीरी में मौजूद है. अंग्रेज यात्री राल्फ फिच एवं पीटर मंडी ने आदि विश्वेश्वर के पूजा का उल्लेख किया है. फ्रांसीसी यात्री बर्नियर एवं टैवर्नियर ने 1665 में आदि विश्वेश्वर की पूजा का वर्णन किया है. सभी प्रस्तुत साक्ष्यों से काशी के संत संतुष्ट हुए और ज्योतिर्लिंग के वहां होने की घोषणा की.

काशी में शुक्रवार को धर्म परिषद की बैठक हुई.

बैठक की अध्यक्षता कर रहे पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर एवं काशी धर्म परिषद के अध्यक्ष महंत बालक दास जी महाराज ने कहा कि हिंदू सनातन धर्म पर बहुत जुल्म ढहाए गए हैं. शिवलिंग के पास वजू करते रहे. अपने इष्टदेव का अपमान अब हम नहीं सह सकते. हम न्याय की मांग करते हैं. उन्होंने मांग की कि मस्जिद के इमाम पर एफआईआर दर्ज हो आखिर शिवलिंग में छेद कैसे हो गया? मांग की गई कि ज्ञानवापी मंदिर परिसर में तत्काल नमाज को बंद किया जाए, नहीं तो हमें भी पूजा का अधिकार दिया जाए.

विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष, रामपंथ के पंथाचार्य एवं इतिहासकार डॉ. राजीव ने कहा कि दुनिया के सभी धर्मस्थलों की तरह काशी में भी पवित्रता का सिद्धांत लागू हो. आदि विश्वेश्वर नाथ की परिधि तय हो, जहां उनके भक्तों को ही प्रवेश मिले. दलित समुदाय के लोग ज्योतिर्लिंग के साक्षी नंदी महाराज का पूजन-अर्चन करने विश्वनाथ मंदिर जाएंगे. इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर हिंदुओं के पवित्रतम स्थान को मुस्लिम समाज को वापस कर देना चाहिए ताकि सौहार्द्र और भाईचारा बना रहे.

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उन्होंने बताया कि औरंगजेब ने सन् 1669 में आदि विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था. इसका स्पष्ट साक्ष्य साकी मुस्तईद खान की पुस्तक मासिर–ए–आलमगीरी में मौजूद है. अंग्रेज यात्री राल्फ फिच एवं पीटर मंडी ने आदि विश्वेश्वर के पूजा का उल्लेख किया है. फ्रांसीसी यात्री बर्नियर एवं टैवर्नियर ने 1665 में आदि विश्वेश्वर की पूजा का वर्णन किया है. सभी प्रस्तुत साक्ष्यों से काशी के संत संतुष्ट हुए और ज्योतिर्लिंग के वहां होने की घोषणा की.

काशी में शुक्रवार को धर्म परिषद की बैठक हुई.

बैठक की अध्यक्षता कर रहे पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर एवं काशी धर्म परिषद के अध्यक्ष महंत बालक दास जी महाराज ने कहा कि हिंदू सनातन धर्म पर बहुत जुल्म ढहाए गए हैं. शिवलिंग के पास वजू करते रहे. अपने इष्टदेव का अपमान अब हम नहीं सह सकते. हम न्याय की मांग करते हैं. उन्होंने मांग की कि मस्जिद के इमाम पर एफआईआर दर्ज हो आखिर शिवलिंग में छेद कैसे हो गया? मांग की गई कि ज्ञानवापी मंदिर परिसर में तत्काल नमाज को बंद किया जाए, नहीं तो हमें भी पूजा का अधिकार दिया जाए.

विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष, रामपंथ के पंथाचार्य एवं इतिहासकार डॉ. राजीव ने कहा कि दुनिया के सभी धर्मस्थलों की तरह काशी में भी पवित्रता का सिद्धांत लागू हो. आदि विश्वेश्वर नाथ की परिधि तय हो, जहां उनके भक्तों को ही प्रवेश मिले. दलित समुदाय के लोग ज्योतिर्लिंग के साक्षी नंदी महाराज का पूजन-अर्चन करने विश्वनाथ मंदिर जाएंगे. इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर हिंदुओं के पवित्रतम स्थान को मुस्लिम समाज को वापस कर देना चाहिए ताकि सौहार्द्र और भाईचारा बना रहे.

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