वाराणसी : काशी में हर दिन त्यौहार होता है और वह अपने ही ढंग से मनाया जाता है. ऐसे में 1 अप्रैल यानी मूर्ख दिवस वैसे तो इस दिन आपके अपने आपको जरूर बेवकूफ बनाते होंगे, लेकिन बनारस में इस दिन आयोजन होता है एक समारोह का जिसमें पूरा शहर मूर्ख बनने आता है. इस अनोखे आयोजन और अनोखे महामूर्ख मेले में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. परंपराओं की नगरी काशी पिछले कुछ दशकों से ऐसी अनोखी परंपरा को निभा रही है, जिसको सुनकर आप भी मस्ती में झूम उठेंगे. इस बार का महामूर्ख मेला को चौकीदार का नाम दिया गया.
वाराणसी के घाट जहां मंत्रों के उच्चारण सुनाई देते हैं, वहीं देर रात काशी का घाट हंसी और ठहाकों से गूंज उठा. महामूर्ख मेला के आयोजन करने वाले इस महफिल में शिवकाशी की मस्ती और अपनेपन की झलकती है बल्कि इस महफिल में कई ऐसे मूर्ख शामिल होते हैं, जो देश के कई मुद्दों पर अपने व्यंग भरे शब्दों से प्रहार करते हैं. इस बार देश की राजनीति को जिस मुद्दे ने सबसे अधिक हवा दी है वह है चौकीदार. तो भला मूर्खों की महफिल कहां से इसमें दूर रह सकती है. वहीं कवियों के हास्यरस के सामने हजारों की संख्या से भरे घाट की सीढ़ियां खुद को हंसी को रोक नहीं पा रही थी. वहीं बार-बार हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ कवियों का हौसला बढ़ाया जा रहा था.
महामूर्ख मेला में कुछ उल्टा पुल्टा होता है. सम्मेलन की शुरुआत महामूर्ख आदिराज की बारात से होती है. इसमें गधे की आवाज और चित्रकार के साथ शादी में दुल्हन की बारात ले दूल्हा को विदा कराने पहुंच जाते हैं. दूल्हे की करतूत सुन शादी की पहली ही रात दोनों का तलाक भी हो जाता है. कुछ ऐसी ही बेतुके कारनामों के साथ ही इस महामेला की शुरूआत किया जाता है और महामुर्ख की पदवी दी जाती है. महामूर्ख मेले में दुल्हन के पात्र बने अजय ने बताया 50 साल से यह आयोजन हो रहा है. हमेशा अलग-अलग लोग इसमें दूल्हा दुल्हन का किरदार निभाते हैं. पत्नी इसमें दूल्हा बनी है और मैं दुल्हन बना हूं. काशी में यह आयोजन बेहद प्रसिद्ध है.