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प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के मामले में उन्नाव फिसड्डी

यूपी के उन्नाव में प्रशासन सरकार के आदेशों को पलीता लगता नजर आ रहा है. प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिलाने के मामले में जनपद सीएम योगी के सपनों पर खरा नहीं उतर सका. जनपद में 53,787 मजदूरों में से मात्र 114 मजदूरों को ही रोजगार मिल सका.

प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के मामले में उन्नाव फिसड्डी
प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के मामले में उन्नाव फिसड्डी
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Published : Dec 6, 2020, 5:27 PM IST

उन्नावः लॉकडाउन के दौरान जनपद लौटे प्रवासियों को सरकार ने रोजगार देने का वादा किया था. मुख्यमंत्री के निर्देश पर रोजगार के लिए जिला स्तर पर समिति भी बनाई गई थी. यही नहीं विकासखंड स्तर पर कई बैठकें हुईं और मजदूरों की काउंसलिंग भी हुई. फिर भी प्रवासियों को रोजगार नहीं मिल सका.

लॉकडाउन में लगभग 53,787 प्रवासी मजदूर अपने घर लौटे थे.

डीएम की बैठकों का नतीजा सिफर
कोरोना संक्रमण काल में सरकार की तरफ से लगाए गए लॉकडाउन के दौरान प्रदेश से लौटे प्रवासी मजदूरों को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार का दावा फलीभूत होता नजर नहीं आ रहा है. उन्नाव के जिला अधिकारी रवींद्र कुमार ने अधिकारियों को लॉकडाउन में लौटे प्रवासियों को रोजगार दिलाने के लिए कई बार बैठक कर दिशा निर्देश दिए लेकिन नतीजा सिफर रहा. शासन के आदेश पर मजदूरों का पंजीकरण तो किया गया लेकिन उन्हें 8 माह बाद भी रोजगार नहीं मिल सका.

कोरोना काल में शहरों से घर लौटे थे मजदूर.
सरकार ने किया था रोजगार दिलाने का वादा.

रोजगार देने में फिसड्डी साबित हुए विभाग
आपको बता दें कि लॉकडाउन के दौरान काफी संख्या में मजदूर शहरों को छोड़कर अपने-अपने गांव लौट आए थे. रोजगार ने होने से मजदूर बेसहारा हो गए. प्रदेश सरकार ने मजदूरों के लिए उनके जनपद में रोजगार दिलाने का दावा किया था. इसी कड़ी में उन्नाव में लगभग 53,787 लोग अपने घर वापस लौटे थे.

इनमें अगर रोजगार की बात की जाए तो कुछ सैकड़ों लोगों को ही रोजगार मिल सका है. रोजगार मिलने वाले मजदूरों की संख्या हजार का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. ऐसे में शहर लौटे प्रवासी मजदूरों में अधिकतर वापस अपने काम पर लौटने के लिए मजबूर हो गए हैं.

मजदूरों को आठ माह बाद भी नहीं मिला रोजगार.
मजदूरों को आठ माह बाद भी नहीं मिला रोजगार.

हजार का आंकड़ा भी नहीं छू पाया विभाग
बता दें कि जनपद के श्रम विभाग ने मात्र 93 लोगों को ही रोजगार दिया, जबकि जिला सेवायोजन कार्यालय एवं जिला उद्योग कार्यालय ने क्रमशः 97 और 114 लोगों को ही रोजगार उपलब्ध कराया है. ऐसे में योगी सरकार के द्वारा प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने की योजना जनपद में अभी तक फेल होती नजर आ रही है.

वापस शहर लौट रहे उन्नाव के मजदूर.
शहर में अच्छी कमाई कर लेते हैं मजदूर.

ढाक के तीन पात साबित हुए विभाग
वहीं जब प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की बात जनपद के श्रम आयुक्त डॉ हरीश चंद्र से की गई तो उन्होंने बताया कि अब तक 93 लोगों को रोजगार दिलाया है, जिनमें बहुत से ट्रेंड मजदूर हैं. वहीं काफी अनट्रेंड मजदूर भी हैं. उन्होंने बताया कि अधिकतर मजदूरों को यहां मनरेगा में भी काम दिलाया गया है.

मजदूरों को नहीं मिला सही वेतन
हरीश चंद्र ने कहा कि मनरेगा में काम मिलने के बाद लोगों ने कुछ दिन काम करने के बाद छोड़ दिया. मजदूरों ने हवाला दिया कि उन्हें उनकी आवश्यकतानुसार वेतन नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि सभी मजदूर काम छोड़ कर वापस शहर लौट गए हैं. श्रम आयुक्त ने बताया कि प्रवासी मजदूरों का यहां न रुक पाने का बड़ा कारण यह है कि जहां पर वह पहले काम करते थे वहां उन्हें अधिक पैसा मिल रहा था. वहां मजदूर 20 से 30,000 रुपये तक कमा लेते थे. यहां मजदूर को 8 से 10,000 रुपये ही कमा पाते हैं.

विभागों ने दिखाई हीलाहवाली
वहीं जब जनपद के रोजगार देने वाले विभाग से रोजगार देने की स्थिति को पता लगाया तो ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया कि पिछले छह महीनों में जनपद का सेवायोजन कार्यालय सिर्फ 97 लोगों को ही रोजगार मुहैया करा सका है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि जिस विभाग पर रोजगार दिलाने की जिम्मेदारी होती है. जब वही विभाग लोगों को रोजगार मुहैया नहीं कराएगा तो सरकारों का प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने का सपना कैसे पूरा होगा? जनपद में उद्योग केंद्र सिर्फ 114 प्रवासी मजदूरों को ही रोजगार मुहैया करा पाया है, जिसमें ट्रेंड अनट्रेंड दोनों तरीके के प्रवासी मजदूर शामिल हैं.

उन्नावः लॉकडाउन के दौरान जनपद लौटे प्रवासियों को सरकार ने रोजगार देने का वादा किया था. मुख्यमंत्री के निर्देश पर रोजगार के लिए जिला स्तर पर समिति भी बनाई गई थी. यही नहीं विकासखंड स्तर पर कई बैठकें हुईं और मजदूरों की काउंसलिंग भी हुई. फिर भी प्रवासियों को रोजगार नहीं मिल सका.

लॉकडाउन में लगभग 53,787 प्रवासी मजदूर अपने घर लौटे थे.

डीएम की बैठकों का नतीजा सिफर
कोरोना संक्रमण काल में सरकार की तरफ से लगाए गए लॉकडाउन के दौरान प्रदेश से लौटे प्रवासी मजदूरों को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार का दावा फलीभूत होता नजर नहीं आ रहा है. उन्नाव के जिला अधिकारी रवींद्र कुमार ने अधिकारियों को लॉकडाउन में लौटे प्रवासियों को रोजगार दिलाने के लिए कई बार बैठक कर दिशा निर्देश दिए लेकिन नतीजा सिफर रहा. शासन के आदेश पर मजदूरों का पंजीकरण तो किया गया लेकिन उन्हें 8 माह बाद भी रोजगार नहीं मिल सका.

कोरोना काल में शहरों से घर लौटे थे मजदूर.
सरकार ने किया था रोजगार दिलाने का वादा.

रोजगार देने में फिसड्डी साबित हुए विभाग
आपको बता दें कि लॉकडाउन के दौरान काफी संख्या में मजदूर शहरों को छोड़कर अपने-अपने गांव लौट आए थे. रोजगार ने होने से मजदूर बेसहारा हो गए. प्रदेश सरकार ने मजदूरों के लिए उनके जनपद में रोजगार दिलाने का दावा किया था. इसी कड़ी में उन्नाव में लगभग 53,787 लोग अपने घर वापस लौटे थे.

इनमें अगर रोजगार की बात की जाए तो कुछ सैकड़ों लोगों को ही रोजगार मिल सका है. रोजगार मिलने वाले मजदूरों की संख्या हजार का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. ऐसे में शहर लौटे प्रवासी मजदूरों में अधिकतर वापस अपने काम पर लौटने के लिए मजबूर हो गए हैं.

मजदूरों को आठ माह बाद भी नहीं मिला रोजगार.
मजदूरों को आठ माह बाद भी नहीं मिला रोजगार.

हजार का आंकड़ा भी नहीं छू पाया विभाग
बता दें कि जनपद के श्रम विभाग ने मात्र 93 लोगों को ही रोजगार दिया, जबकि जिला सेवायोजन कार्यालय एवं जिला उद्योग कार्यालय ने क्रमशः 97 और 114 लोगों को ही रोजगार उपलब्ध कराया है. ऐसे में योगी सरकार के द्वारा प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने की योजना जनपद में अभी तक फेल होती नजर आ रही है.

वापस शहर लौट रहे उन्नाव के मजदूर.
शहर में अच्छी कमाई कर लेते हैं मजदूर.

ढाक के तीन पात साबित हुए विभाग
वहीं जब प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की बात जनपद के श्रम आयुक्त डॉ हरीश चंद्र से की गई तो उन्होंने बताया कि अब तक 93 लोगों को रोजगार दिलाया है, जिनमें बहुत से ट्रेंड मजदूर हैं. वहीं काफी अनट्रेंड मजदूर भी हैं. उन्होंने बताया कि अधिकतर मजदूरों को यहां मनरेगा में भी काम दिलाया गया है.

मजदूरों को नहीं मिला सही वेतन
हरीश चंद्र ने कहा कि मनरेगा में काम मिलने के बाद लोगों ने कुछ दिन काम करने के बाद छोड़ दिया. मजदूरों ने हवाला दिया कि उन्हें उनकी आवश्यकतानुसार वेतन नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि सभी मजदूर काम छोड़ कर वापस शहर लौट गए हैं. श्रम आयुक्त ने बताया कि प्रवासी मजदूरों का यहां न रुक पाने का बड़ा कारण यह है कि जहां पर वह पहले काम करते थे वहां उन्हें अधिक पैसा मिल रहा था. वहां मजदूर 20 से 30,000 रुपये तक कमा लेते थे. यहां मजदूर को 8 से 10,000 रुपये ही कमा पाते हैं.

विभागों ने दिखाई हीलाहवाली
वहीं जब जनपद के रोजगार देने वाले विभाग से रोजगार देने की स्थिति को पता लगाया तो ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया कि पिछले छह महीनों में जनपद का सेवायोजन कार्यालय सिर्फ 97 लोगों को ही रोजगार मुहैया करा सका है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि जिस विभाग पर रोजगार दिलाने की जिम्मेदारी होती है. जब वही विभाग लोगों को रोजगार मुहैया नहीं कराएगा तो सरकारों का प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने का सपना कैसे पूरा होगा? जनपद में उद्योग केंद्र सिर्फ 114 प्रवासी मजदूरों को ही रोजगार मुहैया करा पाया है, जिसमें ट्रेंड अनट्रेंड दोनों तरीके के प्रवासी मजदूर शामिल हैं.

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