सुलतानपुर: 'हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए' के रचनाकार पंडित राम नरेश त्रिपाठी की साहित्य धरोहर 'तुलसी सत्संग भवन' आज अपना अस्तित्व खो रहा है. तुलसी सत्संग भवन में ही महाकवि राम नरेश त्रिपाठी एवं अन्य साहित्यकार साहित्य की साधना किया करते थे. वर्तमान में भवन भू-माफियाओं और अतिक्रमण की चपेट में आने से भवन को तोड़कर वहां कॉम्पलेक्स बनाया जा रहा है. राम नरेश त्रिपाठी के पुत्र जयंत त्रिपाठी आर्थिक तंगी के चलते भवन के संरक्षण और रखरखाव करने में असमर्थ हैं. उनका कहना है कि सरकार को इस विरासत का संरक्षण करना चाहिए. बताया जाता है कि पंडित राम नरेश त्रिपाठी की कविताओं की महात्मा गांधी और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद अक्सर तारीफ किया करते थे.
सुलतानपुर की पहचान रहा तुलसी सत्संग भवन
श्रीरामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास के नाम से स्थापित तुलसी सत्संग भवन सुलतानपुर की बड़ी पहचान के रूप में देखा जाता रहा है. तत्कालीन जिलाधिकारी ने राष्ट्रकवि पंडित राम नरेश त्रिपाठी के नाम भूमि पट्टा करके तुलसी सत्संग भवन की स्थापना कराई थी. समय बीतता गया और आर्थिक तंगी के चलते उनके पुत्र जयंत त्रिपाठी इसके संरक्षण और रखरखाव के लिए धन का पर्याप्त प्रबंध नहीं कर सके. ऐसे में तुलसी सत्संग भवन अतिक्रमण की चपेट में आता चला गया और भू-माफियाओं की सक्रियता से भवन पर कब्जा कर उसे तोड़ दिया गया है.
समाज को जोड़ने का काम करता है साहित्य
शाय आमिल सुलतानपुरी ने बताया कि जहां पर कवियों और साहित्यकारों का जमावड़ा लगता था. उसे आज संरक्षित करने की जरूरत है. साहित्य ही समाज को जोड़ने का काम करता है. उन्होंने कहा कि गंगा-जमुनी तहजीब को कायम रखना है और समाज को जोड़ना है तो साहित्य की इस विरासत को हमें बचाना होगा.
प्रशासन को करना चाहिए संरक्षण
बार एसोसिएशन सचिव राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि तुलसी सत्संग भवन का संरक्षण होना चाहिए. भवन का संरक्षण साहित्यकारों के सम्मान में एक कदम होगा. उन्होंने कहा कि इस तरह के भवनों में बैठकर साहित्य पढ़ने और लिखने में एकांत मिलता है. उन्होंने कहा कि प्रशासन को भवन के संरक्षण के साथ भविष्य में गोष्ठी का आयोजन भी कराना चाहिए.
भवन में बैठककर साहित्यकारों ने की ही रचना
किन्नर अखाड़ा की पदाधिकारी सोनम ने बताया कि यह भवन हमारे साहित्य के लिए बेहद आवश्यक है. सनातन धर्म को जोड़ते हुए इसका संरक्षण अति आवश्यक है. उन्होंने कहा कि विद्वान और साहित्यकार यहां बैठा करते थे. तुलसी सत्संग भवन संत तुलसीदास जी से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसका हर हाल में संरक्षण होना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं प्रशासन से इसके संरक्षण की मांग करती हूं.