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प्रयागराज महाकुंभ; नागा संन्यासियों की शौर्य का प्रतीक है महानिर्वाणी अखाड़े की पर्व ध्वजा, जानिए क्या है इसका इतिहास - MAHA KUMBH MELA 2025

अन्य अखाड़ों से अलग है श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी की परंपरा, धर्म ध्वजा के साथ ही लहराती है पर्व ध्वजा.

महानिर्वाणी अखाड़ा एक साथ फहराता है दो ध्वज.
महानिर्वाणी अखाड़ा एक साथ फहराता है दो ध्वज. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 20, 2025, 8:20 AM IST

प्रयागराज : संगम नगरी में 13 जनवरी से महाकुंभ मेला चल रहा है. मेले में सभी 13 अखाड़ों की छावनी शिविर स्थापित हो चुका है. अखाड़ों की धर्मध्वजा भी फहरा रही है. इन्हें अखाड़े की छावनी में स्थापित ईष्टदेव के पास लगाया गया है. इन परंपराओं से अलग श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी में धर्म ध्वजा के साथ ही पर्व ध्वजा भी स्थापित की जाती है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी...

अलग है महानिर्वाणी अखाड़े की परंपरा. (Video Credit; ETV Bharat)

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल ने छावनी के बाद दूसरे दिन धर्म ध्वजा की स्थापना की थी. जबकि श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने धर्मध्वजा की स्थापना छावनी प्रवेश यात्रा से पहले की थी. महानिर्वाणी अखाड़े में पर्व ध्वजा स्थापित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसका पालन आज भी किया जाता है.

नागा संन्यासियों ने औरंगजेब के वंशजों से किया मुकाबला : महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत यमुना पुरी महाराज ने बताया कि अखाड़े के ईष्ट कपिल देव महाराज हैं. उनके अखाड़े महानिर्वाणी में धर्म ध्वजा के साथ ही पर्व ध्वजा लगाए जाने की परंपरा है. पर्व ध्वजा स्थापित करने के पीछे नागा संन्यासियों के शौर्य और पराक्रम का इतिहास जुड़ा है. महंत यमुना पुरी महाराज ने बताया कि मुगल काल के दौरान औरंगजेब के वंशजों ने कुंभ के आयोजन को बाधित करने और स्नान रोकने की कोशिश की थी. मुगलों की सेना का मुकाबला महानिर्वाणी अखाड़े के साथ ही अटल अखाड़े और अन्य अखाड़े के नागा संन्यासियों ने डटकर किया था.

मुगलों की सेना को हराने के बाद स्थापित की थी ध्वजा : यमुना पुरी महाराज ने बताया कि अखाड़े के नागा संन्यासी 4 दलों में बंट गए. उन्होंने मुगलों की सेना से मुकाबला करते हुए उन्हें परास्त किया था. उसी दौरान नागाओं की सेना के एक दल ने प्रयागराज के किले पर हमला किया था. वहीं दूसरे दल ने अखाड़े की छावनी में स्नान पर्व के दिन ध्वजा स्थापित की थी. इसे पर्व ध्वजा का नाम दिया गया. उसके बाद अखाड़े के नागा संन्यासियों ने ईष्ट देव को संगम में स्नान कराया. इसे अब अमृत स्नान या शाही स्नान कहा जा रहा है.

महाराज ने बताया कि उस युद्ध के बाद ही अखाड़े की चौकियां यानी मुख्यालय प्रयागराज के कीडगंज और दारागंज इलाके में स्थापित की गई. इसके बाद से ही महानिर्वाणी अखाड़े में शाही स्नान से पहले धर्म ध्वजा के साथ ही पर्व ध्वजा भी स्थापित की जाती है.

यह भी पढ़ें : प्रयागराज महाकुंभ; समुद्र मंथन और कुंभ कलश की गाथा दिखाएंगे 2500 ड्रोन, 3 दिन चलेगा कार्यक्रम

प्रयागराज : संगम नगरी में 13 जनवरी से महाकुंभ मेला चल रहा है. मेले में सभी 13 अखाड़ों की छावनी शिविर स्थापित हो चुका है. अखाड़ों की धर्मध्वजा भी फहरा रही है. इन्हें अखाड़े की छावनी में स्थापित ईष्टदेव के पास लगाया गया है. इन परंपराओं से अलग श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी में धर्म ध्वजा के साथ ही पर्व ध्वजा भी स्थापित की जाती है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी...

अलग है महानिर्वाणी अखाड़े की परंपरा. (Video Credit; ETV Bharat)

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल ने छावनी के बाद दूसरे दिन धर्म ध्वजा की स्थापना की थी. जबकि श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने धर्मध्वजा की स्थापना छावनी प्रवेश यात्रा से पहले की थी. महानिर्वाणी अखाड़े में पर्व ध्वजा स्थापित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसका पालन आज भी किया जाता है.

नागा संन्यासियों ने औरंगजेब के वंशजों से किया मुकाबला : महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत यमुना पुरी महाराज ने बताया कि अखाड़े के ईष्ट कपिल देव महाराज हैं. उनके अखाड़े महानिर्वाणी में धर्म ध्वजा के साथ ही पर्व ध्वजा लगाए जाने की परंपरा है. पर्व ध्वजा स्थापित करने के पीछे नागा संन्यासियों के शौर्य और पराक्रम का इतिहास जुड़ा है. महंत यमुना पुरी महाराज ने बताया कि मुगल काल के दौरान औरंगजेब के वंशजों ने कुंभ के आयोजन को बाधित करने और स्नान रोकने की कोशिश की थी. मुगलों की सेना का मुकाबला महानिर्वाणी अखाड़े के साथ ही अटल अखाड़े और अन्य अखाड़े के नागा संन्यासियों ने डटकर किया था.

मुगलों की सेना को हराने के बाद स्थापित की थी ध्वजा : यमुना पुरी महाराज ने बताया कि अखाड़े के नागा संन्यासी 4 दलों में बंट गए. उन्होंने मुगलों की सेना से मुकाबला करते हुए उन्हें परास्त किया था. उसी दौरान नागाओं की सेना के एक दल ने प्रयागराज के किले पर हमला किया था. वहीं दूसरे दल ने अखाड़े की छावनी में स्नान पर्व के दिन ध्वजा स्थापित की थी. इसे पर्व ध्वजा का नाम दिया गया. उसके बाद अखाड़े के नागा संन्यासियों ने ईष्ट देव को संगम में स्नान कराया. इसे अब अमृत स्नान या शाही स्नान कहा जा रहा है.

महाराज ने बताया कि उस युद्ध के बाद ही अखाड़े की चौकियां यानी मुख्यालय प्रयागराज के कीडगंज और दारागंज इलाके में स्थापित की गई. इसके बाद से ही महानिर्वाणी अखाड़े में शाही स्नान से पहले धर्म ध्वजा के साथ ही पर्व ध्वजा भी स्थापित की जाती है.

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