सुलतानपुर : आज विश्व क्षय रोग दिवस है. क्षय रोग यानी टीबी, जो लाख प्रयास के बाद भी लोगों की जिंदगी लगातार निगलता जा रहा है. जिले में बीते वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो देखेंगे कि मरने वालों की तादाद बढ़ी है. लेकिन मरीजों को जीवन देने वाले धरती के भगवान आंकड़ों की बाजीगरी खेल रहे हैं. सुल्तानपुर में दर्शा रहा आंकड़ा चिकित्सकों के कागजी खानापूर्ति की हकीकत बयां कर रहा है.
अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें तो भारत में डेढ़ लाख के लगभग ट्यूबरकुलोसिस से मौत हो रही है. जिसमें माइक्रो बैक्टीरियल ट्यूबरक्लोसिस प्रमुख रूप से सामने आ रहा है. दवाओं की निरंतरता नहीं होने और पोषक तत्वों की कमी होने से दवाई निष्प्रभावी हो रही है और टीबी का कीटाणु मरीजों पर हावी हो रहा है, जिससे मरीजों की मौत हो रही है.
आंकड़ों की बाजीगरी
2020 के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2694 टीबी के पॉजिटिव मरीज जिला क्षय रोग विभाग में दर्ज किए गए. वहीं यह प्रतिशत 87% के रूप में दर्ज किया गया. निजी क्लीनिक से आए आंकड़े को देखें तो 319 पॉजिटिव मरीज आए जो सरकारी आंकड़े में पंजीकृत किए गए. यह आंकड़ा 27% दर्शा रहा है. कुल मिलाकर 3013 कुल पॉजिटिव टीबी मरीजों की संख्या पंजीकृत की गई. जिसमें पूर्व में मौत का आंकड़ा 14 से बढ़कर 2020 में 15 पहुंच गया.
जागरूकता की कमी से बढ़ रहा आंकड़ा
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉक्टर आरके कनौजिया का कहना था कि गत वर्ष मौत का आंकड़ा 14 था जो बढ़कर 15 हो गया है. फेफड़े की टीबी सबसे अधिक प्रभावित कर रही है. टीबी की दवा चलने के दौरान 3 माह में राहत मिल जाती है और लोग स्वस्थ महसूस करने लगते हैं. लेकिन कई लोग इसी दौरान ही दवाएं छोड़ देते हैं, जिससे टीबी घातक हो जाती है और क्रॉनिक स्थिति में पहुंच आती है. पोषण का टीबी में बेहद महत्वपूर्ण योगदान है और पोषण की कमी से अन्य रोग टीबी के साथ प्रभावी हो जाते हैं.
2021 में ऐसे काबू होगा टीबी
स्वास्थ्य अधिकारियों की तैयारियों पर नजर डालें तो एक्टिव केस फाइंडिंग के जरिए वे टीवी की रोकथाम को 2021 में प्रभावी करवाई करेंगे. इसके लिए एनजीओ की मदद ली जा रही है. आशा बहुओं के जरिए टीवी के लक्षण वाले मरीजों की जांच कराई जाएगी. उनकी पहचान कर उन्हें दवा खिलाई जाएगी और टीबी को नियंत्रित किया जाएगा.
टीबी से हांफ रहे फेफड़े
ट्यूबरकुलोसिस फेफड़ों के लिए अभी सबसे बड़ी तकलीफ बना हुआ है. टीबी के सभी श्रेणियों के मार्ग पर नजर डालें तो अभी फेफड़ा संक्रमण में आगरा 85% पर है. इसके बाद हड्डी में होने वाले टीबी रोग का नंबर आता है. सवाल ये है कि ऐसे में फेफड़े घुटन महसूस कर रहे हैं और महकमा हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है.
जागरूकता से दीजिए टीबी को मात
मनोरम पांडेय जो एक स्थानीय नागरिक हैं, उनका कहना था कि जागरूकता की कमी के कारण लोग दवाएं छोड़ देते हैं जो कि गलत है. जागरूकता के बिना टीबी को खत्म नहीं किया जा सकता है. पोषण बेहतर रखकर हम टीबी को मात दे सकते हैं. क्षय रोग को नियंत्रित करने और मरीजों को पौष्टिक भोजन देने के लिए सरकार की तरफ से ₹500 की प्रोत्साहन धनराशि दी जाति है जो जारी रहेगी. यह सभी प्रकार के टीबी संक्रमित मरीजों को दी जाती है, ताकि इससे भी लोग अपना पोषण बेहतर और गुणवत्ता पूर्ण कर सकें.