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सुल्तानपुर में गायब हुए राजनीतिक दलों के जातिगत कार्ड, जानें क्या है विश्लेषकों की राय

सुल्तानपुर में लंभुआ विधानसभा सीट (Lambhua vidhan sabha seat) पर अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट की संख्या अधिक देखी गई. मौजूदा विधायक देवमणि द्विवेदी इस आंकड़े में फिट नहीं बैठे और कुछ स्थानों पर उनका विरोध करते हुए पाया गया. वहीं, जातीय समीकरणों के आधार पर भाजपा की तरफ से सीताराम वर्मा को टिकट दिया गया.

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Published : Feb 15, 2022, 8:03 PM IST

सुलतानपुर: राजनीतिक दलों की तरफ से जातीय समीकरण के आधार पर प्रत्याशियों को दिए गए टिकट का समीकरण फिलहाल फेल हो गया है. विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा परिवेश में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच ध्रुवीकरण नजर आ रहा है. इस ध्रुवीकरण में भाजपा और सपा फायदे में होगी. वहीं, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को इस ध्रुवीकरण से नुकसान देखा जा रहा है.

सुल्तानपुर में लंभुआ विधानसभा सीट (Lambhua vidhan sabha seat) पर अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट की संख्या अधिक देखी गई. मौजूदा विधायक देवमणि द्विवेदी इस आंकड़े में फिट नहीं बैठे और कुछ स्थानों पर उनका विरोध करते हुए पाया गया. वहीं, जातीय समीकरणों के आधार पर भाजपा की तरफ से सीताराम वर्मा को टिकट दिया गया.

जातीय समीकरण पर वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद सिंह राजा का कहना है कि सुशासन और सुरक्षा दोनों को ही पार्टियों की तरफ से अहमियत मिलनी चाहिए. संविधान निर्माताओं ने यही सोचकर इसे शामिल किया कि सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए एक समान व्यवस्था लागू की जाएगी. इससे जातिवाद और धर्मवाद की तस्वीर कम हो जाएगी.

विश्लेषक

इस मुद्दे पर केएनआई महाविद्यालय की राजनीति विज्ञान की प्रवक्ता रंजना सिंह ने भी अपना विचार रखा है. रंजना सिंह का कहना है कि जातिवाद और धर्मवाद जोड़कर चलने वाले लोग देश और समाज के हित में नहीं होते हैं. मुझे नहीं लगता है कि जाति और धर्म के आधार पर किया गया टिकट का बंटवारा धरातल पर कोई असर दिखा पाता है. जनता समझदार है, वह इसका माकूल जवाब देती है. इस देश में किसी भी शासक सत्तासीन ने कुछ गलत किया है तो जनता ने उसका जवाब दिया है.

यह भी पढ़ें: भाजपा में शामिल हुए अपना दल (कमेरावादी) के प्रदेश अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व सांसद की बहू

वहीं वरिष्ठ पत्रकार राज खन्ना का कहना है कि राजनीतिक दलों ने जातीयता के आधार पर उम्मीदवार उतारने का प्रयास किया है, जिसे सोशल इंजीनियरिंग के रूप में देखा जा रहा है. 2014 के बाद यह तस्वीर देखने में आई है कि जातीय गोलबंदी टूटी है और इसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला है. वोटों का ध्रुवीकरण देखा जा रहा है, जिसका सीधा लाभ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को मिलते हुए देखा जा रहा है.

वहीं ब्राह्मणों की अधिक संख्या को लुभाने के लिए सपा ने संतोष पांडे को प्रत्याशी बनाकर जातीय कार्ड खेला है. सुल्तानपुर विधानसभा सीट में पूर्व पर्यटन मंत्री विनोद सिंह व्यवसायी हैं. इस लिहाज से क्षत्रिय और व्यवसायियों का वोट समेटने का प्रयास किया गया है. इसके अलावा ब्राह्मणों के बीच भी अच्छी छवि है. इस लिहाज से इन्हें अच्छा वोट मिलने के आसार बताए जा रहे हैं. वहीं मुस्लिम और यादव के वोटों का ध्रुवीकरण समाजवादी पार्टी की तरफ देखा जा रहा है.

उधर, इसौली विधानसभा में बाहुबली यश भद्र सिंह मोनू के समर्थकों की अधिक संख्या है. इसके अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति वोट इनकी तरफ आने के आसार हैं. इस फैक्टर पर बीएसपी ने इन्हें टिकट देकर दावेदार बनाया है. भारतीय जनता पार्टी ने यहां ब्राम्हण चेहरे का चुनाव किया है. ओमप्रकाश बजरंगी को प्रत्याशी बनाया है. वही एक लाख से अधिक मुस्लिम मतदाताओं को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने ताहिर अहमद पर दांव लगाया है. वह पूर्व सांसद भी रह चुके हैं और उनकी मुस्लिम मतदाताओं में अच्छी पैठ देखी जा रही है.

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सुलतानपुर: राजनीतिक दलों की तरफ से जातीय समीकरण के आधार पर प्रत्याशियों को दिए गए टिकट का समीकरण फिलहाल फेल हो गया है. विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा परिवेश में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच ध्रुवीकरण नजर आ रहा है. इस ध्रुवीकरण में भाजपा और सपा फायदे में होगी. वहीं, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को इस ध्रुवीकरण से नुकसान देखा जा रहा है.

सुल्तानपुर में लंभुआ विधानसभा सीट (Lambhua vidhan sabha seat) पर अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट की संख्या अधिक देखी गई. मौजूदा विधायक देवमणि द्विवेदी इस आंकड़े में फिट नहीं बैठे और कुछ स्थानों पर उनका विरोध करते हुए पाया गया. वहीं, जातीय समीकरणों के आधार पर भाजपा की तरफ से सीताराम वर्मा को टिकट दिया गया.

जातीय समीकरण पर वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद सिंह राजा का कहना है कि सुशासन और सुरक्षा दोनों को ही पार्टियों की तरफ से अहमियत मिलनी चाहिए. संविधान निर्माताओं ने यही सोचकर इसे शामिल किया कि सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए एक समान व्यवस्था लागू की जाएगी. इससे जातिवाद और धर्मवाद की तस्वीर कम हो जाएगी.

विश्लेषक

इस मुद्दे पर केएनआई महाविद्यालय की राजनीति विज्ञान की प्रवक्ता रंजना सिंह ने भी अपना विचार रखा है. रंजना सिंह का कहना है कि जातिवाद और धर्मवाद जोड़कर चलने वाले लोग देश और समाज के हित में नहीं होते हैं. मुझे नहीं लगता है कि जाति और धर्म के आधार पर किया गया टिकट का बंटवारा धरातल पर कोई असर दिखा पाता है. जनता समझदार है, वह इसका माकूल जवाब देती है. इस देश में किसी भी शासक सत्तासीन ने कुछ गलत किया है तो जनता ने उसका जवाब दिया है.

यह भी पढ़ें: भाजपा में शामिल हुए अपना दल (कमेरावादी) के प्रदेश अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व सांसद की बहू

वहीं वरिष्ठ पत्रकार राज खन्ना का कहना है कि राजनीतिक दलों ने जातीयता के आधार पर उम्मीदवार उतारने का प्रयास किया है, जिसे सोशल इंजीनियरिंग के रूप में देखा जा रहा है. 2014 के बाद यह तस्वीर देखने में आई है कि जातीय गोलबंदी टूटी है और इसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला है. वोटों का ध्रुवीकरण देखा जा रहा है, जिसका सीधा लाभ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को मिलते हुए देखा जा रहा है.

वहीं ब्राह्मणों की अधिक संख्या को लुभाने के लिए सपा ने संतोष पांडे को प्रत्याशी बनाकर जातीय कार्ड खेला है. सुल्तानपुर विधानसभा सीट में पूर्व पर्यटन मंत्री विनोद सिंह व्यवसायी हैं. इस लिहाज से क्षत्रिय और व्यवसायियों का वोट समेटने का प्रयास किया गया है. इसके अलावा ब्राह्मणों के बीच भी अच्छी छवि है. इस लिहाज से इन्हें अच्छा वोट मिलने के आसार बताए जा रहे हैं. वहीं मुस्लिम और यादव के वोटों का ध्रुवीकरण समाजवादी पार्टी की तरफ देखा जा रहा है.

उधर, इसौली विधानसभा में बाहुबली यश भद्र सिंह मोनू के समर्थकों की अधिक संख्या है. इसके अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति वोट इनकी तरफ आने के आसार हैं. इस फैक्टर पर बीएसपी ने इन्हें टिकट देकर दावेदार बनाया है. भारतीय जनता पार्टी ने यहां ब्राम्हण चेहरे का चुनाव किया है. ओमप्रकाश बजरंगी को प्रत्याशी बनाया है. वही एक लाख से अधिक मुस्लिम मतदाताओं को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने ताहिर अहमद पर दांव लगाया है. वह पूर्व सांसद भी रह चुके हैं और उनकी मुस्लिम मतदाताओं में अच्छी पैठ देखी जा रही है.

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