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गोदान और आल्हा में आया है बिसवां की तम्बाकू का जिक्र, कमजोर हो रहा कारोबार

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में मुंशी प्रेमचंद के साहित्य गोदान और आल्हा में बिसवां की तम्बाकू का जिक्र हुआ है. यहां की तम्बाकू और किमाम अपनी गुणवत्ता के लिए खास मशहूर थी. कारोबारियों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों के भीतर टैक्स की मार ने इस व्यवसाय का दम तोड़ दिया है.

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बिसवां की तम्बाकू का जिक्र गोदान और आल्हा मे है.
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Published : Dec 9, 2019, 1:58 PM IST

सीतापुर: जिले का बिसवां कस्बा कभी तम्बाकू और किमाम के कारोबार के लिए पहचाना जाता था. यहां की बनी तम्बाकू और किमाम अपनी गुणवत्ता के लिए खास मशहूर थी. दूर दराज तक इसकी आपूर्ति की जाती थी और नबाबों को भी इसकी महक खूब रास आती थी. इसकी खासियत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य गोदान में इसका जिक्र किया है. वहीं बुंदेलखंडी काव्य आल्हा में भी इसका उल्लेख किया गया है.

कम हो रहा है बिसवां की तम्बाकू का कारोबार.
उपन्यास गोदान में है किमाम का जिक्र
आल्हा में जिस 'कड़ी तम्बाकू बिसवां वाली जाको दियो पान में डार, ताको खावत जोगिया गिर गा, माता मानो कहा हमार' का उल्लेख किया गया है. वह इसी जनपद के बिसवां कस्बे में बनाई जाती थी. मुंशी प्रेमचंद ने भी अपने उपन्यास गोदान में भी यहां के बने किमाम का जिक्र किया है.

इस व्यवसाय से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि कभी तम्बाकू और किमाम का उत्पादन यहां का प्रमुख कारोबार था. अपनी खास किस्म और खुशबू के कारण यहां की बनी तम्बाकू और किमाम की बाहर तक मांग थी और उसकी आपूर्ति भी की जाती थी.

इसे भी पढ़ें- सीतापुर: जांच टीम के सामने ग्रामीणों ने खोली विकास कार्यों की पोल

टैक्स की मार से दम तोड़ रहा व्यवसाय
कारोबारियों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों के भीतर टैक्स की मार ने इस व्यवसाय का दम तोड़ दिया है. अब इसके उत्पादन की लागत भी बढ़ गई है और मुनाफा कम हो गया है. लिहाजा कभी साहित्य में अपना जलवा बिखेरनी वाली तम्बाकू और किमाम अब अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगी है. तम्बाकू व्यापारियों का तो यह भी कहना है कि यह पूरी बेल्ट तम्बाकू के उत्पादन लिए मशहूर थी. जो वर्ष 1972 के बाद शारदा सहायक नहर बनने के बाद इस काम से विमुख होती चली गई.

इसे भी पढ़ें- सीतापुर: महिला अस्पताल में जच्चा-बच्चा की मौत, परिजनों ने किया हंगामा

सीतापुर: जिले का बिसवां कस्बा कभी तम्बाकू और किमाम के कारोबार के लिए पहचाना जाता था. यहां की बनी तम्बाकू और किमाम अपनी गुणवत्ता के लिए खास मशहूर थी. दूर दराज तक इसकी आपूर्ति की जाती थी और नबाबों को भी इसकी महक खूब रास आती थी. इसकी खासियत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य गोदान में इसका जिक्र किया है. वहीं बुंदेलखंडी काव्य आल्हा में भी इसका उल्लेख किया गया है.

कम हो रहा है बिसवां की तम्बाकू का कारोबार.
उपन्यास गोदान में है किमाम का जिक्र
आल्हा में जिस 'कड़ी तम्बाकू बिसवां वाली जाको दियो पान में डार, ताको खावत जोगिया गिर गा, माता मानो कहा हमार' का उल्लेख किया गया है. वह इसी जनपद के बिसवां कस्बे में बनाई जाती थी. मुंशी प्रेमचंद ने भी अपने उपन्यास गोदान में भी यहां के बने किमाम का जिक्र किया है.

इस व्यवसाय से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि कभी तम्बाकू और किमाम का उत्पादन यहां का प्रमुख कारोबार था. अपनी खास किस्म और खुशबू के कारण यहां की बनी तम्बाकू और किमाम की बाहर तक मांग थी और उसकी आपूर्ति भी की जाती थी.

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टैक्स की मार से दम तोड़ रहा व्यवसाय
कारोबारियों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों के भीतर टैक्स की मार ने इस व्यवसाय का दम तोड़ दिया है. अब इसके उत्पादन की लागत भी बढ़ गई है और मुनाफा कम हो गया है. लिहाजा कभी साहित्य में अपना जलवा बिखेरनी वाली तम्बाकू और किमाम अब अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगी है. तम्बाकू व्यापारियों का तो यह भी कहना है कि यह पूरी बेल्ट तम्बाकू के उत्पादन लिए मशहूर थी. जो वर्ष 1972 के बाद शारदा सहायक नहर बनने के बाद इस काम से विमुख होती चली गई.

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Intro:सीतापुर: जिले का बिसवां कस्बा कभी तम्बाकू और किवाम के कारोबार के लिए पहचाना जाता था. यहां की बनी तम्बाकू और किवाम अपनी गुणवत्ता के लिए खास मशहूर थी.दूर दराज़ तक इसकी आपूर्ति की जाती थी और नबाबों को भी इसकी महक खूब रास आती थी. इसकी खासियत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य गोदान में इसका जिक्र किया है तो बुंदेलखंडी काव्य आल्हा में भी इसका उल्लेख किया गया है.


Body:आल्हा में जिस 'कड़ी तम्बाकू बिसवां वाली जाको दियो पान में डार, ताको खावत जोगिया गिर गा, माता मानो कहा हमार' का उल्लेख किया गया है वह इसी जनपद के बिसवां कस्बे में बनाई जाती थी. मुंशी प्रेमचंद ने भी अपने उपन्यास गोदान में भी यहां के बने किवाम का ज़िक्र किया है. इस व्यवसाय से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि कभी तम्बाकू और किवाम का उत्पादन यहां का प्रमुख कारोबार था.अपनी खास किस्म और खुशबू के कारण यहां की बनी तम्बाकू औऱ किवाम की बाहर तक मांग थी और उसकी आपूर्ति भी की जाती थी.


Conclusion:कारोबारियों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों के भीतर टैक्स की मार ने इस व्यवसाय का दम तोड़ दिया है. अब इसके उत्पादन की लागत भी बढ़ गई है और मुनाफ़ा कम हो गया है लिहाज़ा कभी साहित्य में अपना जलवा बिखेरनी वाली तम्बाकू और किवाम अब अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगी है.तम्बाकू व्यापारियों का तो यह भी कहना है कि यह पूरी बेल्ट तम्बाकू के उत्पादन लिए मशहूर थी जो वर्ष 1972 के बाद शारदा सहायक नहर बनने के बाद इस काम से विमुख होती चली गई.

बाइट-पुनीत भल्ला (तम्बाकू व्यापारी)
बाइट-पंकज गुप्ता (किवाम व्यापारी)

सीतापुर से नीरज श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट,9415084887
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