सीतापुर: जिले का बिसवां कस्बा कभी तम्बाकू और किमाम के कारोबार के लिए पहचाना जाता था. यहां की बनी तम्बाकू और किमाम अपनी गुणवत्ता के लिए खास मशहूर थी. दूर दराज तक इसकी आपूर्ति की जाती थी और नबाबों को भी इसकी महक खूब रास आती थी. इसकी खासियत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्य गोदान में इसका जिक्र किया है. वहीं बुंदेलखंडी काव्य आल्हा में भी इसका उल्लेख किया गया है.
इस व्यवसाय से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि कभी तम्बाकू और किमाम का उत्पादन यहां का प्रमुख कारोबार था. अपनी खास किस्म और खुशबू के कारण यहां की बनी तम्बाकू और किमाम की बाहर तक मांग थी और उसकी आपूर्ति भी की जाती थी.
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टैक्स की मार से दम तोड़ रहा व्यवसाय
कारोबारियों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों के भीतर टैक्स की मार ने इस व्यवसाय का दम तोड़ दिया है. अब इसके उत्पादन की लागत भी बढ़ गई है और मुनाफा कम हो गया है. लिहाजा कभी साहित्य में अपना जलवा बिखेरनी वाली तम्बाकू और किमाम अब अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगी है. तम्बाकू व्यापारियों का तो यह भी कहना है कि यह पूरी बेल्ट तम्बाकू के उत्पादन लिए मशहूर थी. जो वर्ष 1972 के बाद शारदा सहायक नहर बनने के बाद इस काम से विमुख होती चली गई.
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