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सीतापुर: इस बार नहीं उठा ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया

यूपी के सीतापुर जिले में मोहर्रम के दौरान ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया इस बार नहीं उठा. इस बार कोरोना के संक्रमण के कारण सदियों से चली आ रही इस रवायत को रोक दिया गया है. ताज़िया कमेटी ने सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए जनहित में इस कार्यक्रम पर रोक लगाने की बात कही है.

इस बार नहीं उठा ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया
इस बार नहीं उठा ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया
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Published : Aug 31, 2020, 1:40 PM IST

सीतापुर: गम-ए-हुसैन में उठने वाला 52 डंडे का ताजिया जिले की खास पहचान हुआ करता था. इसी खासियत के कारण ही मज़हब की दीवारों को तोड़कर लाखों लोग इसकी ताजियेदारी करने आते थे. यहां की एक खास पहचान है 52 डंडे का ताज़िया. आमतौर पर ताज़िये 10वीं मोहर्रम को कर्बला में दफन किये जाते हैं. लेकिन खैराबाद का ऐतिहासिक 52 डंडे का ताज़िया 11वीं मोहर्रम को दफ़न किया जाता है. लेकिन इस बार कोरोना के संक्रमण के कारण सदियों से चली आ रही इस रवायत को रोक दिया गया है. ताज़िया कमेटी ने सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए जनहित में इस कार्यक्रम पर रोक लगाने की बात कही है.

इस बार नहीं उठा ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया
क्या है 52 डंडे
के ताजिये का महत्व

इस ताज़िये के महत्व के बारे में जानकारों का कहना है कि करीब एक हज़ार साल से इस खास ताज़िये की रवायत चली आ रही है. सूफ़ी संत हज़रत यूसुफ़ खान गाज़ी ने यहां इस ताज़िये की प्रथा शुरू की थी. उन्हीं की दरगाह पर स्थित इमामबाड़े पर तीसरी मोहर्रम से यह ताज़िया बनाने का कार्य शुरू होता है. 9वीं मोहर्रम को उसे चौक पर रखा जाता है और दसवीं मोहर्रम को उठाने के बाद 11वीं मोहर्रम को कर्बला में दफ़न किया जाता है. इस ताज़िये की सबसे बड़ी खासियत इसमें लगे 52 डंडों के पीछे की कहानी है.

52 डंडे का ताजिया
खैराबाद की ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया

52 डंडे के ताजिये की कहानी

बताया जाता है कि ऐतिहासिक कस्बा खैराबाद में कभी 52 मोहल्ले हुआ करते थे, जिसके चलते सभी कौम और मोहल्लों को इसमें साझेदारी तय करने के लिए सभी मोहल्लों से एक-एक डंडा लगाकर इस ताज़िये को तैयार किया गया था. तभी से अब तक यहां 52 डंडे का ही ताज़िया बनाकर तैयार किया जाता है. जिन बुजुर्गों ने इसकी शुरुआत की थी उनकी वजह से इस ताज़िये को "बुढऊ बाबा" के नाम से भी जाना और पुकारा जाता है. यह ताज़िया कौमी एकता की बड़ी मिसाल है. इसमें मुसलमानों के साथ ही बड़ी संख्या में हिन्दू भी पूरी अकीदत के साथ शामिल होते हैं और मनौतियां मांगते हैं. मनौती पूरी होने पर ये लोग अगले साल इस ताज़िये पर फूल, रेवड़ी, इत्र आदि पेश कर शुक्राना अदा करते हैं.

SITAPUR NEWS
ताजिया दफन करने का स्थान
यह ताज़िया रौज़ा दरवाजा स्थित हज़रत यूसुफ खान की दरगाह से दसवीं मोहर्रम को उठाया जाता है और पूरे कस्बे का भ्रमण करता हुआ 11वीं मोहर्रम को कर्बला पहुंचता है, जहां शाम के समय इसे पूरे रस्मो रिवाज के साथ दफ़न किया जाता है. कर्बला में जिस स्थान पर इसे दफ़न किया जाता है, उस स्थान पर लोग दूध,बताशा,मीठा डालते हैं और अगरबत्ती जलाकर हज़रत इमाम हुसैन की शहादत का मंजर बयां करते हैं.
SITAPUR NEWS
खैराबाद का कर्बला मैदान
52 डंडा ताज़िया कमेटी के अध्यक्ष जावेद मुस्तफा टीटू ने बताया कि यह ताज़िया करीब एक हज़ार साल से उठ रहा है. साम्प्रदयिक एकता की इससे बड़ी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिले, जहां एक समय में दो से ढाई लाख आदमी इकट्ठा होता है और हिन्दू-मुसलमान दोनों एक साथ पूरी अकीदत के साथ इसमें शामिल होते हैं. पूरे जिले और प्रदेश के लोग ही नहीं देश के कोने कोने से और विदेश तक के लोग इसमें शिरकत करने के लिए आते हैं. लेकिन इस बार कोरोना की महामारी के कारण इस कार्यक्रम के होने से संक्रमण फैलने की आशंका के चलते पूरे कार्यक्रम पर रोक लगा दी गई है. क्योंकि यहां लाखों की भीड़ इकट्ठा होने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता था.

स्थानीय निवासी मोइन अल्वी का कहना है कि यह ताज़िया पूरे देश का मशहूर ताज़िया है. एक वक्त में इतनी बड़ी संख्या में लोंगो का हुजूम इकट्ठा होने का वाकया शायद ही कहीं दूसरी जगह सुनने में आता हो. यह ताज़िया कौमी एकता की सबसे बड़ी मिसाल है. गमे हुसैन में लोग ग़मज़दा तो हैं लेकिन समाजहित में वैश्विक महामारी को रोकने के लिए इस बार इसके आयोजन मे लगाई गई रोक पर सभी लोग सरकार के साथ हैं.

खैराबाद स्थित बड़े मखदूम साहब की दरगाह के सज्जादानशीन नज़मुल हसन उस्मानी उर्फ शोएब मियां ने बताया कि 52 डंडे का ताज़िया यहां की खास पहचान है. यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है. कस्बे के सभी मोहल्लों से एक एक डंडा एकत्र कर उससे ताज़िया तैयार करने का मक़सद ही सभी लोंगो को एक सूत्र में पिरोने का रहा है. शायद उसी का नतीजा है कि आज भी यहां के सभी धर्मों के लोग आपसी भाईचारे के साथ रहकर कौमी एकता की मिसाल पेश कर सकते हैं. इस बार कोविड 19 की गाइडलाइंस के अनुपालन में इस कार्यक्रम को रोक दिया गया है, जिसके चलते लोग अपने घरों में ही गमे हुसैन की रवायत को पूरी कर रहे हैं.

सीतापुर: गम-ए-हुसैन में उठने वाला 52 डंडे का ताजिया जिले की खास पहचान हुआ करता था. इसी खासियत के कारण ही मज़हब की दीवारों को तोड़कर लाखों लोग इसकी ताजियेदारी करने आते थे. यहां की एक खास पहचान है 52 डंडे का ताज़िया. आमतौर पर ताज़िये 10वीं मोहर्रम को कर्बला में दफन किये जाते हैं. लेकिन खैराबाद का ऐतिहासिक 52 डंडे का ताज़िया 11वीं मोहर्रम को दफ़न किया जाता है. लेकिन इस बार कोरोना के संक्रमण के कारण सदियों से चली आ रही इस रवायत को रोक दिया गया है. ताज़िया कमेटी ने सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए जनहित में इस कार्यक्रम पर रोक लगाने की बात कही है.

इस बार नहीं उठा ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया
क्या है 52 डंडे के ताजिये का महत्व

इस ताज़िये के महत्व के बारे में जानकारों का कहना है कि करीब एक हज़ार साल से इस खास ताज़िये की रवायत चली आ रही है. सूफ़ी संत हज़रत यूसुफ़ खान गाज़ी ने यहां इस ताज़िये की प्रथा शुरू की थी. उन्हीं की दरगाह पर स्थित इमामबाड़े पर तीसरी मोहर्रम से यह ताज़िया बनाने का कार्य शुरू होता है. 9वीं मोहर्रम को उसे चौक पर रखा जाता है और दसवीं मोहर्रम को उठाने के बाद 11वीं मोहर्रम को कर्बला में दफ़न किया जाता है. इस ताज़िये की सबसे बड़ी खासियत इसमें लगे 52 डंडों के पीछे की कहानी है.

52 डंडे का ताजिया
खैराबाद की ऐतिहासिक 52 डंडे का ताजिया

52 डंडे के ताजिये की कहानी

बताया जाता है कि ऐतिहासिक कस्बा खैराबाद में कभी 52 मोहल्ले हुआ करते थे, जिसके चलते सभी कौम और मोहल्लों को इसमें साझेदारी तय करने के लिए सभी मोहल्लों से एक-एक डंडा लगाकर इस ताज़िये को तैयार किया गया था. तभी से अब तक यहां 52 डंडे का ही ताज़िया बनाकर तैयार किया जाता है. जिन बुजुर्गों ने इसकी शुरुआत की थी उनकी वजह से इस ताज़िये को "बुढऊ बाबा" के नाम से भी जाना और पुकारा जाता है. यह ताज़िया कौमी एकता की बड़ी मिसाल है. इसमें मुसलमानों के साथ ही बड़ी संख्या में हिन्दू भी पूरी अकीदत के साथ शामिल होते हैं और मनौतियां मांगते हैं. मनौती पूरी होने पर ये लोग अगले साल इस ताज़िये पर फूल, रेवड़ी, इत्र आदि पेश कर शुक्राना अदा करते हैं.

SITAPUR NEWS
ताजिया दफन करने का स्थान
यह ताज़िया रौज़ा दरवाजा स्थित हज़रत यूसुफ खान की दरगाह से दसवीं मोहर्रम को उठाया जाता है और पूरे कस्बे का भ्रमण करता हुआ 11वीं मोहर्रम को कर्बला पहुंचता है, जहां शाम के समय इसे पूरे रस्मो रिवाज के साथ दफ़न किया जाता है. कर्बला में जिस स्थान पर इसे दफ़न किया जाता है, उस स्थान पर लोग दूध,बताशा,मीठा डालते हैं और अगरबत्ती जलाकर हज़रत इमाम हुसैन की शहादत का मंजर बयां करते हैं.
SITAPUR NEWS
खैराबाद का कर्बला मैदान
52 डंडा ताज़िया कमेटी के अध्यक्ष जावेद मुस्तफा टीटू ने बताया कि यह ताज़िया करीब एक हज़ार साल से उठ रहा है. साम्प्रदयिक एकता की इससे बड़ी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिले, जहां एक समय में दो से ढाई लाख आदमी इकट्ठा होता है और हिन्दू-मुसलमान दोनों एक साथ पूरी अकीदत के साथ इसमें शामिल होते हैं. पूरे जिले और प्रदेश के लोग ही नहीं देश के कोने कोने से और विदेश तक के लोग इसमें शिरकत करने के लिए आते हैं. लेकिन इस बार कोरोना की महामारी के कारण इस कार्यक्रम के होने से संक्रमण फैलने की आशंका के चलते पूरे कार्यक्रम पर रोक लगा दी गई है. क्योंकि यहां लाखों की भीड़ इकट्ठा होने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता था.

स्थानीय निवासी मोइन अल्वी का कहना है कि यह ताज़िया पूरे देश का मशहूर ताज़िया है. एक वक्त में इतनी बड़ी संख्या में लोंगो का हुजूम इकट्ठा होने का वाकया शायद ही कहीं दूसरी जगह सुनने में आता हो. यह ताज़िया कौमी एकता की सबसे बड़ी मिसाल है. गमे हुसैन में लोग ग़मज़दा तो हैं लेकिन समाजहित में वैश्विक महामारी को रोकने के लिए इस बार इसके आयोजन मे लगाई गई रोक पर सभी लोग सरकार के साथ हैं.

खैराबाद स्थित बड़े मखदूम साहब की दरगाह के सज्जादानशीन नज़मुल हसन उस्मानी उर्फ शोएब मियां ने बताया कि 52 डंडे का ताज़िया यहां की खास पहचान है. यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है. कस्बे के सभी मोहल्लों से एक एक डंडा एकत्र कर उससे ताज़िया तैयार करने का मक़सद ही सभी लोंगो को एक सूत्र में पिरोने का रहा है. शायद उसी का नतीजा है कि आज भी यहां के सभी धर्मों के लोग आपसी भाईचारे के साथ रहकर कौमी एकता की मिसाल पेश कर सकते हैं. इस बार कोविड 19 की गाइडलाइंस के अनुपालन में इस कार्यक्रम को रोक दिया गया है, जिसके चलते लोग अपने घरों में ही गमे हुसैन की रवायत को पूरी कर रहे हैं.

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