सीतापुर: भारत की आजादी की लड़ाई में यूं तो लाखों-करोड़ों हिंदुस्तानियों ने भाग लिया, लेकिन कुछ ऐसे सपूत भी थे जो इस आजादी की लड़ाई के प्रतीक बनकर उभरे. आजादी की लड़ाई में सीतापुर के लालबाग पार्क का अपना अलग ही इतिहास है. लालबाग पार्क आजादी की लड़ाई का गवाह तो रहा है. साथ ही आजादी के लिए हुई शहादत का भी यह पार्क चश्मदीद रहा है.
18 अगस्त 1942 की घटना का साक्षी लालबाग पार्क
18 अगस्त के दिन लालबाग पार्क पर ही छह वीर सपूत अंग्रेजों की गोलियों से शहीद हुए थे, जबकि सैकड़ों घायल भी हुए थे. देश की आजादी के खातिर सबने हंसते-हंसते कुर्बानी दी थी. आज भी वह घटना स्वतंत्रता संग्राम की कुर्बानियों की याद दिलाती है. अंग्रेजों ने 18 अगस्त 1942 की तारीख को लालबाग पार्क को यहां का दूसरा जलियांवाला बाग बना दिया. फिरंगियों की बंदूकों से निकली गोलियां पार्क में मौजूद देशभक्तों का सीना छलनी करती रहीं. आज यह स्थान सीतापुर में आजादी की लड़ाई के इतिहास में दर्ज हो गई.
लालबाग पार्क का इतिहास जहां हंसते-हंसते कुर्बान हुए थे वीर सपूत
महात्मा गांधी के आह्वान पर सैकड़ों स्वतंत्रता प्रेमी शहर के बीचोबीच स्थित लालबाग पार्क में सभा करने के लिए एकत्र हुए थे. अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करते हुए इन स्वतंत्रता प्रेमियों ने इंकलाब का नारा बुलंद किया. ब्रिटिश हुकूमत ने इस सभा पर रोक लगा दी थी, लेकिन आजादी के दीवानों को यह रोक मंजूर नहीं थी. उन्होंने अपना कार्यक्रम जारी रखा, जिस पर पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया. बदले में स्वतंत्रता प्रेमियों ने भी पुलिस पर पत्थरबाजी कर दी तो बौखलाई पुलिस ने उन पर गोलियां चला दी. इसमें तमाम लोग शहीद हो गए, जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए.
'जंग-ए-आजादी' का गवाह है शहीद लालबाग पार्क
लालबाग पार्क में स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए वीर सपूतों के खून से लाल हो गया था. इस कारण इस स्थान का नाम बदलकर पहले लालबाग पार्क कर दिया गया और अब उसका नामकरण अब शहीद पार्क कर दिया गया है. यहां पर एक शहीद स्तम्भ भी स्थापित है, जिसपर इन सभी शहीद स्वतंत्रता सेनानियों के नाम का उल्लेख किया गया है. लोगों का कहना है कि इस वाकये में सिर्फ छह लोगों की शहादत सरकारी अभिलेखों में दर्ज की गई. बाकी लोगों का नामोनिशान मिटा दिया गया.