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सीतापुर: परवल में सूत्रकृमि का प्रकोप, 50 फीसदी फसल खराब

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Published : Jul 20, 2020, 10:32 PM IST

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में परवल में सूत्रकृमि का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है. इस कारण लगभग 50 प्रतिशत फसल खराब हो चुकी है. वहीं बचाव के लिए किए गए उपायों से फसल की लागत भी बढ़ रही है.

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परवल की फसल हो रही खराब.

सीतापुर: जिले में इन दिनों परवल की फसल में सूत्रकृमि जीव का प्रकोप लगातार फैल रहा है. इसके प्रकोप से न सिर्फ 50 प्रतिशत फसलृ नष्ट हो गया है, बल्कि बचाव के उपाय करने से फसल की लागत भी बढ़ती जा रही है. इसी को लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने सूत्रकृमि की पुष्टि करते हुए इसके लक्षण बताने के साथ ही इससे बचाव के उपाय भी बताए हैं.

परवल की फसल हो रही खराब.

बड़े पैमाने पर होती है खेती
विकासखंड महोली में सब्जियों की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. ग्राम घरका तारा, महेवा, मस्जिद बाजार, मल्लपुर, तुलसीपुर इलाकों में इन दिनों परवल की फसल लगाई गई है. इस बार परवल में खासतौर पर सूत्रकृमियों का भारी प्रकोप देखा जा रहा है. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण किसान फसल चक्र नहीं अपना पाते और उन्हें सब्जियों की खेती पर ही आश्रित रहना पड़ता है. कद्दू वर्गीय सब्जियां सूत्रकृमियों के लिए मुख्य पोषी फसल है. लौकी, तोरई, कद्दू, परवल, कुमड़ा को विशेष तौर से यह अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है.

40 से 50 फीसदी फसल को नुकसान
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक सूत्रकृमियों के प्रकोप से 40 से 50 फीसदी उत्पादन प्रभावित हो रहा है. नग्न आंखों से दिखाई न देने वाला यह परजीवी कुछ फसलों के लिए बेहद नुकसानदायक है. इसकी खासियत यह है कि यह अपने आश्रयदाता को पूरी तरह मारता नहीं है, बल्कि पौधे से अपनी खुराक भर का पोषण लेता रहता है. धीरे-धीरे पौधे की जड़ों में मोटी-मोटी गांठे बन जाती हैं, जिसके अंदर यह जीव अपना जीवन निर्वहन करता रहता है. फलस्वरूप पौधा जिंदा तो रहता है किंतु बहुत अधिक कमजोर हो जाता है और पौधे में अन्य बीमारियां लगने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

सूत्रकृमियों का प्रकोप
पौधा ऊपर से पीला दिखाई पड़ता है, जिससे किसान यह समझता है कि पौधे में पोषक तत्व की जरूरत है. ऐसे में जब वह खेतों में नाइट्रोजन या रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करता है, तो सूत्रकृमियों की संख्या 3 से 4 गुना तक बढ़ जाती है. इससे ये जीव पौधों को और ज्यादा नुकसीव पहुंचाने में सक्षम हो जाते हैं.

उत्पादन में 50 फीसदी की गिरावट
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर डीएस श्रीवास्तव के मुताबिक सूत्रकृमि एक ऐसा जीव है, जो लगभग सभी फसलों की जड़ों को प्रारंभिक अवस्था में ही भेद कर अपना आश्रय बना लेता है. फिर पौधे को मिलने वाले भोजन से अपना गुजारा कर पौधे को दिन पर दिन बीमार एवं कमजोर कर देता है. फलस्वरुप उत्पादन 50 फीसदी तक कम हो जाता है. सर्वेक्षण के मुताबिक लगभग 80 फीसदी कृषकों को इस शत्रु के विषय में कोई जानकारी तक नहीं होती है.

सूत्रकृमि फसलों को पहुंचाते हैं हानि
कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ डीएस श्रीवास्तव ने जब प्रभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया एवं पौधों की जड़ों को उखाड़ कर देखा तो उसमें सूत्रकृमि द्वारा उत्पन्न गांठे नजर आईं. उन्होंने बताया कि इस जीव के कारण पौधों में वृद्धि का रुक जाना, प्रबलता की कमी, विकृत पौधा, विरूपित तना, विरूपित जड़ एवं फूल विकास में रुकावट आती है. सूत्रकृमि से बचाव हेतु फसलों को काटने के बाद जड़ को उखाड़कर जला देना चाहिए.

दूसरे खेतों में न जाए पानी
वहीं उन्होंने बताया कि सूत्रकृमि से प्रभावित खेत का पानी दूसरे खेत में नहीं ले जाना चाहिए अन्यथा, दूसरे खेतों में भी कृमिसूत्र चले जाएंगे. इससे बचने के सबसे आसान तरीका है कि किसान भाइयों को गर्मी के दिनों में खेत की गहरी जुताई कर, खेत एक माह के लिए खुला छोड़ देना चाहिए. बुवाई से पहले खेत में नीम की खली 250 किलोग्राम या कारबोफ्यूरान 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में मिला देना चाहिए.

सीतापुर: जिले में इन दिनों परवल की फसल में सूत्रकृमि जीव का प्रकोप लगातार फैल रहा है. इसके प्रकोप से न सिर्फ 50 प्रतिशत फसलृ नष्ट हो गया है, बल्कि बचाव के उपाय करने से फसल की लागत भी बढ़ती जा रही है. इसी को लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने सूत्रकृमि की पुष्टि करते हुए इसके लक्षण बताने के साथ ही इससे बचाव के उपाय भी बताए हैं.

परवल की फसल हो रही खराब.

बड़े पैमाने पर होती है खेती
विकासखंड महोली में सब्जियों की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. ग्राम घरका तारा, महेवा, मस्जिद बाजार, मल्लपुर, तुलसीपुर इलाकों में इन दिनों परवल की फसल लगाई गई है. इस बार परवल में खासतौर पर सूत्रकृमियों का भारी प्रकोप देखा जा रहा है. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण किसान फसल चक्र नहीं अपना पाते और उन्हें सब्जियों की खेती पर ही आश्रित रहना पड़ता है. कद्दू वर्गीय सब्जियां सूत्रकृमियों के लिए मुख्य पोषी फसल है. लौकी, तोरई, कद्दू, परवल, कुमड़ा को विशेष तौर से यह अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है.

40 से 50 फीसदी फसल को नुकसान
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक सूत्रकृमियों के प्रकोप से 40 से 50 फीसदी उत्पादन प्रभावित हो रहा है. नग्न आंखों से दिखाई न देने वाला यह परजीवी कुछ फसलों के लिए बेहद नुकसानदायक है. इसकी खासियत यह है कि यह अपने आश्रयदाता को पूरी तरह मारता नहीं है, बल्कि पौधे से अपनी खुराक भर का पोषण लेता रहता है. धीरे-धीरे पौधे की जड़ों में मोटी-मोटी गांठे बन जाती हैं, जिसके अंदर यह जीव अपना जीवन निर्वहन करता रहता है. फलस्वरूप पौधा जिंदा तो रहता है किंतु बहुत अधिक कमजोर हो जाता है और पौधे में अन्य बीमारियां लगने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

सूत्रकृमियों का प्रकोप
पौधा ऊपर से पीला दिखाई पड़ता है, जिससे किसान यह समझता है कि पौधे में पोषक तत्व की जरूरत है. ऐसे में जब वह खेतों में नाइट्रोजन या रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करता है, तो सूत्रकृमियों की संख्या 3 से 4 गुना तक बढ़ जाती है. इससे ये जीव पौधों को और ज्यादा नुकसीव पहुंचाने में सक्षम हो जाते हैं.

उत्पादन में 50 फीसदी की गिरावट
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर डीएस श्रीवास्तव के मुताबिक सूत्रकृमि एक ऐसा जीव है, जो लगभग सभी फसलों की जड़ों को प्रारंभिक अवस्था में ही भेद कर अपना आश्रय बना लेता है. फिर पौधे को मिलने वाले भोजन से अपना गुजारा कर पौधे को दिन पर दिन बीमार एवं कमजोर कर देता है. फलस्वरुप उत्पादन 50 फीसदी तक कम हो जाता है. सर्वेक्षण के मुताबिक लगभग 80 फीसदी कृषकों को इस शत्रु के विषय में कोई जानकारी तक नहीं होती है.

सूत्रकृमि फसलों को पहुंचाते हैं हानि
कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ डीएस श्रीवास्तव ने जब प्रभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया एवं पौधों की जड़ों को उखाड़ कर देखा तो उसमें सूत्रकृमि द्वारा उत्पन्न गांठे नजर आईं. उन्होंने बताया कि इस जीव के कारण पौधों में वृद्धि का रुक जाना, प्रबलता की कमी, विकृत पौधा, विरूपित तना, विरूपित जड़ एवं फूल विकास में रुकावट आती है. सूत्रकृमि से बचाव हेतु फसलों को काटने के बाद जड़ को उखाड़कर जला देना चाहिए.

दूसरे खेतों में न जाए पानी
वहीं उन्होंने बताया कि सूत्रकृमि से प्रभावित खेत का पानी दूसरे खेत में नहीं ले जाना चाहिए अन्यथा, दूसरे खेतों में भी कृमिसूत्र चले जाएंगे. इससे बचने के सबसे आसान तरीका है कि किसान भाइयों को गर्मी के दिनों में खेत की गहरी जुताई कर, खेत एक माह के लिए खुला छोड़ देना चाहिए. बुवाई से पहले खेत में नीम की खली 250 किलोग्राम या कारबोफ्यूरान 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में मिला देना चाहिए.

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