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Lockdown Effect: सीतापुर में प्रवासी मजदूरों के परिजन बेचैन, कहा- अब नहीं भेजेंगे परदेश

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Published : May 11, 2020, 6:12 PM IST

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के नेरी कलां गांव के ग्रामीणों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि हमारे अपने दूसरे राज्यों में फंसे हैं और बहुत सी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं. गुहार लगाने के बाद भी प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है.

problems of migrant worker increased due to lockdown
घर के बाहर बैठी महिलाएं.

सीतापुर: जिले में नेरी कलां गांव के लोगों की आंखों से आंसू रुक नहीं रहे हैं. इसका कारण ऐसे वक्त में इनके अपनों का दूसरे प्रदेशों में फंसे होना है. उनके हालात जानकर ये बेसहारा लोग प्रशासन से मदद की गुहार तो लगा रहे हैं, लेकिन इनकी गुहार कागजों तक ही सीमित रह गई है.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

दरअसल, नेशनल हाईवे-24 पर विकास खण्ड एलिया की एक ग्रामसभा नेरी कलां के कुछ लोग अपने परिवार के साथ रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में गए थे. सोचा था कि कुछ कमाएंगे तो सुकून की जिंदगी बसर कर लेंगे, लेकिन कोरोना के संक्रमण के कारण जारी लॉकडाउन ने उनके सामने खाने तक की समस्या ला दी है.

कुछ लोगों के आने की मिली सूचना
नेरी कलां गांव की ही रहने वाली रानी देवी ने बताया कि परिवार के करीब एक दर्जन लोग गेहूं काटने के रोजगार के सिलसिले में हरियाणा और दिल्ली गए थे, जहां लॉकडाउन लागू होने के कारण फंस गए हैं. इनमें कुछ लोग वहां से चोरी-छिपे निकले तो एक ट्रक वाले ने उन्हें राजस्थान पहुंचा दिया. जहां स्थानीय लोगों ने उनकी सहायता की. मोबाइल फोन से उनमें से कुछ लोगों के वापस आने की सूचना मिल रही है, जबकि अन्य लोग अभी वहां फंसे हुए हैं.

दोबारा नहीं भेजेंगे बाहर काम करने
वहीं गांव की रहने वाली सीतावती की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. सीतावती ने बताया कि उनका बेटा-बहू और देवर-देवरानी दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में काम करने गए थे. ये सभी लोग लॉकडाउन के कारण अभी वहीं फंसे हुए हैं. बस उनसे मोबाइल पर बात हो जा रही है, लेकिन उनकी परेशानियां जानकर कलेजा मुंह को आ रहा है. एक बार वह सब वापस आ जाएं फिर यहीं काम करेंगे. अब दोबारा यहां से बाहर काम करने नहीं जाएंगे. जब इस मामले में जिलाधिकारी से बात की गई तो उनका कहना था कि दूसरे प्रदेशों में फंसे लोगों को जल्द लाने की व्यवस्था की जाएगी.

इस ग्रामसभा के 50 से 60 लोग दूसरे राज्यों में काम करने गये थे. इनमें से कल 10 लोग आ चुके हैं, जिन्हें स्कूल में रुकवा दिया गया है. 23 अन्य लोग रास्ते में हैं, जो आ रहे हैं. शेष सभी लोग अभी दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए हैं.
-दुर्गेश राठौर, ग्राम प्रधान

सीतापुर: जिले में नेरी कलां गांव के लोगों की आंखों से आंसू रुक नहीं रहे हैं. इसका कारण ऐसे वक्त में इनके अपनों का दूसरे प्रदेशों में फंसे होना है. उनके हालात जानकर ये बेसहारा लोग प्रशासन से मदद की गुहार तो लगा रहे हैं, लेकिन इनकी गुहार कागजों तक ही सीमित रह गई है.

देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

दरअसल, नेशनल हाईवे-24 पर विकास खण्ड एलिया की एक ग्रामसभा नेरी कलां के कुछ लोग अपने परिवार के साथ रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में गए थे. सोचा था कि कुछ कमाएंगे तो सुकून की जिंदगी बसर कर लेंगे, लेकिन कोरोना के संक्रमण के कारण जारी लॉकडाउन ने उनके सामने खाने तक की समस्या ला दी है.

कुछ लोगों के आने की मिली सूचना
नेरी कलां गांव की ही रहने वाली रानी देवी ने बताया कि परिवार के करीब एक दर्जन लोग गेहूं काटने के रोजगार के सिलसिले में हरियाणा और दिल्ली गए थे, जहां लॉकडाउन लागू होने के कारण फंस गए हैं. इनमें कुछ लोग वहां से चोरी-छिपे निकले तो एक ट्रक वाले ने उन्हें राजस्थान पहुंचा दिया. जहां स्थानीय लोगों ने उनकी सहायता की. मोबाइल फोन से उनमें से कुछ लोगों के वापस आने की सूचना मिल रही है, जबकि अन्य लोग अभी वहां फंसे हुए हैं.

दोबारा नहीं भेजेंगे बाहर काम करने
वहीं गांव की रहने वाली सीतावती की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. सीतावती ने बताया कि उनका बेटा-बहू और देवर-देवरानी दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में काम करने गए थे. ये सभी लोग लॉकडाउन के कारण अभी वहीं फंसे हुए हैं. बस उनसे मोबाइल पर बात हो जा रही है, लेकिन उनकी परेशानियां जानकर कलेजा मुंह को आ रहा है. एक बार वह सब वापस आ जाएं फिर यहीं काम करेंगे. अब दोबारा यहां से बाहर काम करने नहीं जाएंगे. जब इस मामले में जिलाधिकारी से बात की गई तो उनका कहना था कि दूसरे प्रदेशों में फंसे लोगों को जल्द लाने की व्यवस्था की जाएगी.

इस ग्रामसभा के 50 से 60 लोग दूसरे राज्यों में काम करने गये थे. इनमें से कल 10 लोग आ चुके हैं, जिन्हें स्कूल में रुकवा दिया गया है. 23 अन्य लोग रास्ते में हैं, जो आ रहे हैं. शेष सभी लोग अभी दूसरे प्रदेशों में फंसे हुए हैं.
-दुर्गेश राठौर, ग्राम प्रधान

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