लखनऊ : यूपी की बिजली निजी हाथों में दिए जाने की तैयारी को लेकर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने बुधवार को विद्युत नियामक आयोग में पावर काॅरपोरेशन प्रबंधन के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की. उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 2013 में निजीकरण के मामले में विद्युत नियामक आयोग ने यह आदेश दिया था कि भविष्य में जब भी कभी निजीकरण या फ्रेंचाइजी करण की कार्रवाई की जाएगी तो सबसे पहले विद्युत नियामक आयोग को बताना होगा कि चयन का आधार क्या है और इससे उपभोक्ताओं को क्या लाभ होगा? ऐसे में पावर काॅरपोरेशन प्रबंधन के खिलाफ अवमानना का मामला बनता है.
उपभोक्ता परिषद ने कुछ विधिक सवाल भी उठाए. कहा कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर लगभग 33,122 करोड़ सर प्लस निकल रहा है. भविष्य में जो भी निजी घराने आएंगे क्या उसकी भरपाई करेंगे? यह भी कहा कि वर्तमान में दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के उपभोक्ताओं की बिजली दर कम रहे ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार 3,716 करोड़ की राजकीय सब्सिडी देती है और वहीं पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को 3,463 करोड़ की राजकीय सब्सिडी देती है. इसका क्या होगा? क्या सरकार देश के किसी भी निजी घराने को सब्सिडी देगी? वर्तमान में निजीकरण के प्रयोग के तहत मुंबई में टाटा और अडानी की जो घरेलू बिजली दर है, उसकी बात की जाए तो 101 से 300 यूनिट तक 11 रुपए 46 पैसे है. 301 से 500 यूनिट पर 15 रुपए 72 पैसे है. 500 यूनिट के ऊपर 17 रुपए 81 पैसे है, तो क्या उत्तर प्रदेश में भी 15 से 20 रुपए का टैरिफ उपभोक्ताओं को देना पड़ेगा?
उत्तर प्रदेश में सभी बिजली कंपनियों के लिए आरडीएसएस योजना के तहत लगभग 42,968 करोड़ का कार्य कराया जा रहा है, जिसमें पूर्वांचल में लगभग 8,759 करोड़ और दक्षिणांचल में लगभग 12,300 करोड़ और इसी प्रकार बिजनेस प्लान में भी पूर्वांचल में लगभग 1204 करोड़ और दक्षिणांचल में लगभग 1190 करोड़ का काम सुधार के लिए कराया जाएगा. ऐसे में आयोग इस पर विचार करे कि अरबों रुपया खर्च करके कंपनी की हालत को सुधार कर टाटा, रिलायंस, अडानी, टोरेंट या किसी अन्य निजी घराने को बेचना उद्योगपतियों के पक्ष में निर्णय लेने वाली बात नहीं है. जिस प्रकार से पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन टाटा का गुणगान कर रहा है, उससे ऐसा लगता है कि ट्रिपल पी फिक्सिंग होने वाली है.
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने विद्युत नियामक आयोग को 24 साल में 77 करोड़ से घाटा एक लाख करोड़ पहुंचने पर उसका कारण बताया. कहा कि इसकी जांच कराई जाए क्योंकि पिछले 24 सालों से पावर कॉरपोरेशन की बागडोर नौकरशाहों के हाथ में है, क्या इसके जिम्मेदार वह नहीं हैं? 1959 में बने राज्य विद्युत परिषद का कुल घाटा जब इंजीनियरों के हाथ में बागडोर थी तो 2000 तक केवल 10000 करोड़ का था. ऐसे में इसको तबाह करने में नौकरशाह का हाथ है या अभियंता का, इसकी भी जांच होनी चाहिए.
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