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सीतापुर: बिसवां में मुगलकाल से बन रहे ताजिये - sitapur latest news

उत्तर प्रदेश के सीतापुर के बिसवां में ताजिया की बहुत सी दुकानें सज गई हैं. इस ताजिया बाजार में दूरदराज इलाकों से लोग ताजिया खरीदने के लिये आते हैं.

बिसवां के प्रसिद्ध ताजिया.
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Published : Sep 8, 2019, 4:06 PM IST

सीतापुर: जिले के बिसवां नगर के मोहल्ला थवाई टोला में ताजियों की दर्जनों दुकानें सज गई हैं. इस बाजार में सौ से लेकर 90 हजार तक की कीमत के ताजिए मौजूद हैं. पूरे भारत में बिसवां के ताजिए मशहूर हैं.

बिसवां की प्रसिद्ध ताजिया.
  • बिसवां में मुगल काल से ताजिया बनना शुरू हुए थे.
  • बिसवां तब एक छोटा सा कस्बा था, धीरे-धीरे कुछ परिवारों ने इसको पैतृक व्यवसाय के रूप में अपना लिया.
  • बिसवां सुंदर एवं कलात्मक ताजिया बनाने का केंद्र बन गया.
  • पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फखरुद्दीन अली अहमद ने भी बिसवां के ताजियों की सुंदरता की सराहना की थी.
  • कस्बे के मोहल्ला थवाई टोला में ताजिया की दर्जनों दुकानें सज जाती हैं.
  • बिसवां बाजार में सौ से लेकर 90 हजार तक की कीमत के ताजिए मौजूद हैं.
  • प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने अपने मशहूर उपन्यास गोदान में बिसवा के ताजिया और किवाम का जिक्र किया है.

इसे भी पढ़ें- मऊ में नहीं उठेगा ताजिया जुलूस, जानिये क्या है वजह

पहली मोहर्रम से 10 मोहर्रम तक लगने वाली इस ताजिया बाजार में गोंडा, बनारस गोरखपुर, इलाहाबाद से लेकर हरदोई, बलिया, बिहार, नेपाल, बांग्लादेश आदि के दूरदराज इलाकों से लोग ताजिया खरीदने आते हैं. जिन्हें ताजिया बनाने का हुनर अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है. नवाबी दौर में ताजिया बनाने वालों की हौसला अफजाई और कदर होती थी. जमीदारों और नवाबों से इनाम के साथ ही नजराने भी मिलते थे, किंतु बदलते रस्मो-रिवाज तथा फन की कदरदानों की कमी के चलते ताजिया निर्माण की कला खत्म होती जा रही है.

सीतापुर: जिले के बिसवां नगर के मोहल्ला थवाई टोला में ताजियों की दर्जनों दुकानें सज गई हैं. इस बाजार में सौ से लेकर 90 हजार तक की कीमत के ताजिए मौजूद हैं. पूरे भारत में बिसवां के ताजिए मशहूर हैं.

बिसवां की प्रसिद्ध ताजिया.
  • बिसवां में मुगल काल से ताजिया बनना शुरू हुए थे.
  • बिसवां तब एक छोटा सा कस्बा था, धीरे-धीरे कुछ परिवारों ने इसको पैतृक व्यवसाय के रूप में अपना लिया.
  • बिसवां सुंदर एवं कलात्मक ताजिया बनाने का केंद्र बन गया.
  • पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फखरुद्दीन अली अहमद ने भी बिसवां के ताजियों की सुंदरता की सराहना की थी.
  • कस्बे के मोहल्ला थवाई टोला में ताजिया की दर्जनों दुकानें सज जाती हैं.
  • बिसवां बाजार में सौ से लेकर 90 हजार तक की कीमत के ताजिए मौजूद हैं.
  • प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने अपने मशहूर उपन्यास गोदान में बिसवा के ताजिया और किवाम का जिक्र किया है.

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पहली मोहर्रम से 10 मोहर्रम तक लगने वाली इस ताजिया बाजार में गोंडा, बनारस गोरखपुर, इलाहाबाद से लेकर हरदोई, बलिया, बिहार, नेपाल, बांग्लादेश आदि के दूरदराज इलाकों से लोग ताजिया खरीदने आते हैं. जिन्हें ताजिया बनाने का हुनर अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है. नवाबी दौर में ताजिया बनाने वालों की हौसला अफजाई और कदर होती थी. जमीदारों और नवाबों से इनाम के साथ ही नजराने भी मिलते थे, किंतु बदलते रस्मो-रिवाज तथा फन की कदरदानों की कमी के चलते ताजिया निर्माण की कला खत्म होती जा रही है.

Intro:बिसवां नगर के मोहल्ला थवाई टोला मे ताजियो की दर्जनो दुकाने सज जाती हैं इस बाजार में ₹100 से लेकर ₹90000 तक की कीमत के ताजिए मौजूद रहते हैं पूरे भारत में बिसवा के ताजिए मशहूर है।


Body:बिसवा नगर में मुगल काल से ताजिया बनना शुरू हुए थे। जब यह एक छोटा सा कस्बा था धीरे धीरे कुछ परिवारों ने इसको पैतृक व्यवसाय के रूप में अपना लिया। बिस्वा सुंदर एवं कलात्मक ताजिया बनाने का केंद्र बन गया। पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फखरुद्दीन अली अहमद ने भी बिसवा के ताजियों की सुंदरता की सराहना की थी ।कस्बे के मोहल्ला थवाई टोला में ताजियो की दर्जनों दुकानें सज जाती हैं इस बाजार में ₹100 से लेकर ₹90000 तक की कीमत के ताजिए मौजूद रहते हैं पूरे भारत में बिसवा के ताजिए मशहूर हैं ।प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद अपनी मशहूर उपन्यास गोदान मे बिसवा के ताजियो और किवाम का जिक्र किया है पहली मोहर्रम से 10 मोहर्रम तक लगने वाली इस ताजिया बाजार में गोंडा बनारस गोरखपुर इलाहाबाद से लेकर हरदोई बलिया बिहार नेपाल बांग्लादेश आदि के दूरदराज इलाको से लोग ताजिया खरीदने आते हैं ताजिया बनाने का हुनर अपने पूर्वजो से विरासत मे मिला है नवाबी दौर में ताजिया बनाने वालो की हौसला अफजाई और कद्र होती थी जमीदारो और नवाबो से इनाम के साथ ही नजराने भी मिलते थे किंतु बदलते रस्मो रिवाज तथा फन की कद्रदानो की कमी के चलते ताजिया निर्माण कला खत्म होती जा रही है ।


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