सीतापुर: जिले के बिसवां नगर के मोहल्ला थवाई टोला में ताजियों की दर्जनों दुकानें सज गई हैं. इस बाजार में सौ से लेकर 90 हजार तक की कीमत के ताजिए मौजूद हैं. पूरे भारत में बिसवां के ताजिए मशहूर हैं.
- बिसवां में मुगल काल से ताजिया बनना शुरू हुए थे.
- बिसवां तब एक छोटा सा कस्बा था, धीरे-धीरे कुछ परिवारों ने इसको पैतृक व्यवसाय के रूप में अपना लिया.
- बिसवां सुंदर एवं कलात्मक ताजिया बनाने का केंद्र बन गया.
- पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फखरुद्दीन अली अहमद ने भी बिसवां के ताजियों की सुंदरता की सराहना की थी.
- कस्बे के मोहल्ला थवाई टोला में ताजिया की दर्जनों दुकानें सज जाती हैं.
- बिसवां बाजार में सौ से लेकर 90 हजार तक की कीमत के ताजिए मौजूद हैं.
- प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने अपने मशहूर उपन्यास गोदान में बिसवा के ताजिया और किवाम का जिक्र किया है.
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पहली मोहर्रम से 10 मोहर्रम तक लगने वाली इस ताजिया बाजार में गोंडा, बनारस गोरखपुर, इलाहाबाद से लेकर हरदोई, बलिया, बिहार, नेपाल, बांग्लादेश आदि के दूरदराज इलाकों से लोग ताजिया खरीदने आते हैं. जिन्हें ताजिया बनाने का हुनर अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है. नवाबी दौर में ताजिया बनाने वालों की हौसला अफजाई और कदर होती थी. जमीदारों और नवाबों से इनाम के साथ ही नजराने भी मिलते थे, किंतु बदलते रस्मो-रिवाज तथा फन की कदरदानों की कमी के चलते ताजिया निर्माण की कला खत्म होती जा रही है.